नई दिल्ली। संविधान बचाओ बनाम आपातकाल की जंग ने नई लोकसभा के पहले ही सत्र में सरकार और विपक्ष के बीच टकराव की मजबूत जमीन तैयार कर दी है। इसका असर वर्तमान सत्र के बचे चार कार्य दिवसों पर पड़ना तय है। कांग्रेस की अगुवाई में इंडिया गठबंधन के आम चुनाव के बाद संविधान बचाओ मुहिम को जारी रखने की रणनीति का जवाब देते हुए आपातकाल मामले को पूरी ताकत से उठा कर सरकार ने भी अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं। दरअसल कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष आम चुनाव में लाभ का सौदा साबित हुए संविधान पर खतरे की बनाई गई अवधारणा को भविष्य में और मजबूत करना चाहती है।
सत्र के दौरान संविधान बचाओ मार्च, इंडिया ब्लॉक में शामिल दलों के एक-एक सदस्यों का संविधान की प्रति के साथ शपथ ग्रहण इसी रणनीति का हिस्सा है। स्पीकर पद का चुनाव, डिप्टी स्पीकर पद की मांग कर विपक्ष इसी धारणा को मजबूत कर रही थी कि सरकार संविधान के बताए रास्ते पर नहीं है।
आपातकाल पर तिहरा वार कर सरकार ने दिखाए तेवर
इंडिया ब्लॉक की रणनीति के जवाब में सरकार ने कांग्रेस को घेरने के लिए आपातकाल पर तिहरा वार किया। बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष ने आपातकाल के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पेश किया। बुधवार को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने इसे संविधान पर हमला और लोकतंत्र का काला अध्याय बताया। ऐसा कर सरकार इंडिया ब्लॉक में शामिल गैरकांग्रेसी दलों को असहज करना चाहती है। इसके अलावा देश को संदेश देना चाहती है कि संविधान को सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस ने ही पहुंचाया।
पीएम दो को लोकसभा, तीन को राज्यसभा में देंगे जवाब
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 जुलाई को लोकसभा में तो 3 जुलाई को राज्यसभा में चर्चा का जवाब देंगे।
अंतिम चार कार्य दिवस पर खतरे के बादल
वर्तमान सत्र के अब चार कार्यदिवस शेष हैं। इस दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर दोनों सदनों में चर्चा होगी। विपक्ष की रणनीति चर्चा के दौरान अपने भाषण के केंद्र में संविधान पर कथित आसन्न खतरे को रखने की होगी। दूसरी ओर सरकार की कोशिश संविधान के मोर्चे पर ही कांग्रेस की घेराबंदी करने की होगी।