
दमोह । मध्य प्रदेश के दमोह से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने पूरे देश को चौंका दिया है। मामला एक डॉक्टर की पहचान चोरी यानी आइडेंटिटी थेफ्ट से जुड़ा है, वह भी भारत के किसी डॉक्टर की नहीं, बल्कि ब्रिटेन के नामी-गिरामी डॉक्टर की पहचान चोरी का। इस एक चालबाजी का शिकार हुए हैं कथित तौर पर 7 मरीज, जो कि दिल की बीमारियों के इलाज के लिए इस चर्चित डॉक्टर की देखरेख में भर्ती हुए थे, लेकिन इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर गंवानी पड़ी।
मध्य प्रदेश के दमोह से उजागर हुआ फर्जी डॉक्टर से जुड़ा यह मामला क्या है? एक शख्स ने कैसे ब्रिटिश डॉक्टर की पहचान चुरा ली और उसकी बदौलत दर्जन भर फर्जी सर्जरी को भी अंजाम दे दिया? इस फर्जी डॉक्टर का काम करने का तरीका क्या था? इससे जुड़े किन-किन मामलों का अब तक खुलासा हुआ है? इसके अलावा प्रशासन पूरे मामले में क्या कार्रवाई कर रहा है? आइये जानते हैं…
क्या है दमोह में फर्जी डॉक्टर से जुड़ा पूरा मामला?
फर्जी डॉक्टर और उसके फर्जी इलाज से जुड़ा यह पूरा मामला मध्य प्रदेश के दमोह में स्थित मिशन हॉस्पिटल का है। यहां के कार्डियोलॉजी विभाग में कुछ महीने पहले ही एक डॉक्टर की नियुक्ति हुई। नाम था- डॉक्टर एन. जॉन कैम, एक लंदन आधारित कार्डियोलॉजिस्ट जिसे दिल की बीमारियों के इलाज के लिए जाना जाता है।
इस फर्जी डॉक्टर की अब जो पहचान सामने आई है, उसके मुताबिक, इसका नाम नरेंद्र विक्रमादित्य यादव है, जिसने जॉन कैम की पहचान चोरी कर ली और खुद को लंदन में प्रशिक्षित डॉक्टर बताकर अस्पताल में नियुक्ति तक पा गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस फर्जी डॉक्टर ने दिसंबर 2024 को अस्पताल में फर्जी दस्तावेजों के जरिए नियुक्ति पाई। इस दौरान अस्पताल ने उसे ठीक से जांच किए बिना आठ लाख रुपये प्रतिमाह वेतन देने का कॉन्ट्रैक्ट भी किया। इसके बाद अस्पताल में मरीजों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ शुरू हुआ।
इ़स डॉक्टर ने दिसंबर 2024 से फरवरी 2025 तक अस्पताल में काम किया और मरीजों की एंजियोग्राफी से लेकर उनकी एंजियोप्लास्टी तक की। चौंकाने वाली बात यह है कि यह अस्पताल सरकार की आयुष्मान भारत स्कीम के तहत गरीबों का इलाज भी करता था। ऐसे में फर्जी डॉक्टर ने सार्वजनिक फंड्स का लंबे समय तक नुकसान किया और अस्पताल प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगी।
फर्जी डॉक्टर कैसे ले रहा था मरीजों की जिंदगी?
नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के मोडस ऑपरेंडाई को लेकर मृतकों के परिजनों ने खुलासा किया है। दमोह के पुराना बाजार-2 निवासी रहीसा बेगम (63) के बेटे नबी कुरैशी ने बताया कि 9 जनवरी को उनकी मां के सीने में दर्द उठा था। वह 10 जनवरी को उन्हें जिला अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने मिशन अस्पताल भेज दिया। उन्होंने बताया कि आयुष्मान से इलाज होना था, लेकिन मिशन अस्पताल में 50 हजार रुपए मांगे गए। जब बिना जांच के ही अस्पताल में रुपए मांगे गए तो नबी ने मां को निजी अस्पताल में डॉ. डीएम संगतानी के यहां ले गए। उन्होंने फिर मिशन अस्पताल में भर्ती करा दिया। ऐसे में नबी ने 5 हजार रुपए जमा किए।
रहीसा की जांच फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. एन जॉन कैम ने कराई। रिपोर्ट में एक नस 92 तो दूसरी 85 प्रतिशत ब्लॉक मिली। डॉ. कैम ने कहा-सर्जरी होगी। 14 जनवरी को रहीसा को भर्ती कराया। 15 जनवरी दोपहर 12 बजे सर्जरी हुई और साढ़े 12 बजे रहीसा की मौत हो गई। फर्जी डॉक्टर ने कहा- सर्जरी के दौरान दूसरा हार्ट अटैक आया था। 15 दिन बाद जांच रिपोर्ट दी। पहले सभी ने इसे सामान्य मौत माना। हालांकि, अब गड़बड़ी के आरोप लगे हैं।
दूसरी तरफ दमोह के भरतला गांव निवासी मंगल सिंह की मौत हुई है। उनके बेटे जितेंद्र ने बताया कि वह चार फरवरी को अपने पिता को मिशन अस्पताल लेकर गया था। यहां एंजियोग्राफी की गई। रिपोर्ट में बताया कि हार्ट का ऑपरेशन करना होगा। लेकिन ऑपरेशन के कुछ घंटों में मौत हो गई। जितेंद्र ने बताया ऑपरेशन से पहले और बाद में डॉक्टर नहीं मिले। फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट ने ही उसके पिता का ऑपरेशन किया था।
कैसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा?
इस पूरे मामले का खुलासा तब हुआ, जब दमोह के बरी गांव के कृष्णा पटेल फरवरी में अपने दादाजी का इलाज कराने के लिए उन्हें मिशन अस्पताल ले गए। यहां उन्हें भर्ती कराया गया और एंजियोग्राफी के लिए 50 हजार रुपये मांगे गए। एंजियोग्राफी रिपोर्ट के आधार पर ओपन हार्ट सर्जरी की बात कही गई। कृष्णा के मुताबिक, जब उन्होंने अस्पताल में कहा कि एंजियोग्राफी 10 हजार रुपये में हो जाती है और इसके नतीजों को लेकर सवाल किए तो डॉक्टर कैम के बहरूपिये ने उनसे खराब तरह से बात की और सर्जरी के लिए किसी और अस्पताल जाने की बात कही। इसके बाद कृष्णा अपने दादा को लेकर जबलपुर पहुंचा और वहां इलाज कराया।
कृष्णा के मुताबिक, इस पूरे घटनाक्रम के बाद उसे मिशन अस्पताल के डॉक्टर कैम को लेकर शक हो गया था। उसने बताया कि फर्जी डॉक्टर के खिलाफ उसने जबलपुर और नरसिंहपुर से दस्तावेज इकट्ठे किए इसके बाद बाल आयोग अध्यक्ष दीपक तिवारी को मामले की शिकायत की। दीपक तिवारी ने मामले की जानकारी कलेक्टर को दी तो जांच शुरू हुई। हालांकि, इसकी भनक फर्जी डॉक्टर को लग चुकी थी। ऐसे में उसने फरवरी में ही इस्तीफा दे दिया और दमोह छोड़कर फरार हो गया।
डेढ़ महीने तक कैसे फरार रहा फर्जी डॉक्टर?
पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू की तो फर्जी डॉक्टर से उसके काम की जानकारी मांगी गई। हालांकि, खुद को फंसता देख डॉ. कैम का बहरूपिया 12 फरवरी को ही दमोह में अपने होटल से फरार हो गया। इसके बाद पुलिस ने जांच तेज की तो फर्जी डॉक्टर की पहचान से जुड़े कई खुलासे हुए। उसकी पहचान नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के तौर पर सामने आई। इतना ही नहीं यह भी पता चला कि उसने फरार होने से ठीक पहले पोर्टेबल इको मशीन चोरी कर ली थी, जिसकी कीमत 5-7 लाख रुपये के आसपास थी। उसके खिलाफ चोरी का भी मामला दर्ज हुआ।
पुलिस ने खंगाली फर्जी डॉक्टर की तीन राज्यों में फैली हिस्ट्री
जांच में यह भी पता चला कि विक्रमादित्य यादव ने करीब 20 साल पहले छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में भी काम किया था। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि 2006 में इस फर्जी डॉक्टर ने अपनी नकली पहचान- डॉक्टर एन. जॉन कैम के नाम का इस्तेमाल करते हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर राजेंद्र प्रसाद शुक्ल का बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में इलाज किया था। इसके बाद उसने हैदराबाद में डॉक्टर के तौर पर सेवाएं दीं। यहां तक कि उसने लंबे समय तक मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में भी खुद को डॉक्टर दिखाया और यहां मरीजों के इलाज किए।
कैसे पकड़ा गया यह फर्जी डॉक्टर?
दमोह के सीएमएचओ मुकेश जैन के प्रतिवेदन पर 6 अप्रैल को कोतवाली पुलिस ने मामला दर्ज किया। आरोपी डॉक्टर के खिलाफ बीएनएस की धारा 318 (4), 338, 336(3), 340(2), 3(5) और मध्य प्रदेश आयुर्वेज्ञान परिषद अधिनियम 1987 की धारा 24 के तहत मामला दर्ज किया गया और उसे पकड़ने की कोशिशें शुरू कर दी गईं।
एफआईआर दर्ज होने के बाद दमोह की साइबर टीम लगातार आरोपी डॉक्टर की लोकेशन ले रही थी। इसके जरिए आरोपी के प्रयागराज में होने की जानकारी मिली। जब पुलिस की टीम प्रयागराज पहुंची, तो आरोपी का मोबाइल बंद हो गया। टीम ने दमोह साइबर सेल से संपर्क किया, जहां साइबर टीम ने प्रयागराज में मौजूद पुलिस टीम को बताया कि डॉक्टर की कॉन्टैक्ट लिस्ट में प्रयागराज में एक व्यक्ति से हाल ही में आरोपी डॉक्टर की बात हुई है।
साइबर सेल की तरफ से भेजी गई जानकारी के आधार पर पुलिस उस लोकेशन पर पहुंची, जहां फर्जी डॉक्टर ने फोन किया था। यहां एक व्यक्ति चिकन बेचता मिला। पूछताछ की तो दुकानदार ने कुछ भी बताने से मना कर दिया, लेकिन जब पुलिस सख्त हुई और उसका मोबाइल चेक किया, तो उसमें आरोपी डॉक्टर से उसकी व्हाट्सएप चैट मिल गई। इसके बाद पुलिस को डॉक्टर की सही लोकेशन ट्रैक कर ली।
पुलिस टीम प्रयागराज के औद्योगिक थाना क्षेत्र इलाके में ओमेक्स अदनानी बिल्डिंग 5/11 टावर ए के पास पहुंची, तो वहां आरोपी डॉक्टर की कार खड़ी मिल गई, जिससे यह तय हो गया कि आरोपी डॉक्टर यहीं कहीं आसपास है। मल्टी बिल्डिंग में अकेले रह रहे डॉक्टर की लोकेशन ट्रेस होने के बाद दमोह पुलिस ने प्रयागराज पुलिस को इसकी सूचना दी और घेराराबंदी कर आरोपी को उसके घर से गिरफ्तार कर लिया।
सोमवार रात प्रयागराज से गिरफ्तार आरोपी डॉक्टर को पुलिस रात करीब 11:30 बजे दमोह लेकर पहुंची। आरोपी को पहले देहात थाना ले जाया गया। उसके बाद रात करीब 1:00 बजे आरोपी डॉक्टर को पूछताछ के लिए पुलिस कंट्रोल रूम ले जाया गया जहां खुद दमोह एसपी श्रुत कीर्ति सोमवंशी ने देर रात तक आरोपी से पूछताछ की। हालांकि अभी तक पुलिस ने आरोपी के द्वारा दी गई जानकारी से जुड़ा कोई भी खुलासा नहीं किया है। दूसरी तरफ दमोह के सीएमएचओ ने चार ऑपरेशन में तीन लोगों की जान जाने की पुष्टि की है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बिठाई जांच
दूसरी तरफ राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की टीम सोमवार को ही दमोह पहुंच गई। दमोह कलेक्टर कलेक्टर सुधीर कोचर ने बताया कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की तीन सदस्यीय टीम ने प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों से चर्चा की है। इसके अलावा टीम पीड़ित परिवार के लोगों से भी मिल रही है। साथ ही ऑपरेशन से संबंधित कागजातों को भी देखा जा रहा है। ये क्रम अभी लगातार चलेगा। आयोग की टीम नौ अप्रैल दोपहर तक रहेगी। टीम जो भी प्रमाण मांग रही है, वो सभी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। आयोग के निष्कर्षों के बाद स्थिति साफ हो जाएगी। वहीं टीम के सदस्यों से मीडिया ने बात करनी चाही। इस पर सदस्यों ने कहा कि वे जांच के बाद ही कुछ कहने की स्थिति में होंगे।