रायपुर। धान की भूसी से तैयार होने वाली अंग्रेजी दवाएं अब पांच मिनट में असर दिखाएंगी। शोध में सामने आया है कि धान के भूसी से तैयार टेबलेट (गोली) शरीर में महज पांच मिनट में ही घुल जा रही है, जबकि टेबलेट तैयार करने के लिए उपयोगी रसायनिक तत्व जैसे मिथाइल सेलूलोज, हाइड्रोक्सी प्रोपाइल मिथाइल सेलूलोज, एरोसिल्स मिथाइल आदि एक्सीपिएंट्स से बने टेबलेट को शरीर में घुलने में 10 से 30 मिनट का समय लगता है।
शोधकर्ता व शासकीय कन्या पालीटेक्निक कालेज रायपुर में फार्मेसी विभाग के व्याख्याता डा. खोमेंद्र कुमार सार्वा ने बताया कि धान के किस्म सरोना, आया-36, एचएमटी, सफरी व महामाया धान के भूसे का पाउडर तैयार किया गया। इसके बाद इसे लैब में शोध कर टेबलेट का रूप दिया गया। दवाएं बनने के बाद परीक्षण में सामने आया कि दवा का सेवन करने पर इसे शरीर में घुलने में महज पांच मिनट का समय लग रहा है। ऐसे में यदि दवा के तत्व डाला जाए तो यह शरीर में जल्दी असर करेगा। शोध को वल्र्ड जर्नल आफ फार्मास्युटिकल रिसर्च में प्रकाशित किया गया है।
शोध को लेकर ऐसे आया विचार
दवाओं को लेकर अध्ययन के दौरान टेबलेट तैयार करने के लिए रासायनिक तत्वों के कम से कम उपयोग या बिना उपयोग के दवा बनाने का विचार आया। चूंकि गांव में गाय के आहार आहार के लिए धान के भूसे का उपयोग होता है। पानी में फूल जाने और घुलने के साथ ही टेबलेट तैयार करने वाले उपयोगी तत्व भी शामिल हैं। इसे लेकर शोध का विचार आया। इसके बाद उत्तम किस्म के धान के भूसे पर अध्ययन उपयोग किया गया। टेबलेट के लिए एक वर्ष से अधिक समय तक चला अध्ययन सफल रहा।
एलोपैथी व आयुर्वेद दोनों में कारगर
भूसे से तैयार टेबलेट में एलोपैथी व आयुर्वेदिक दोनों दवा के लिए कारगर होगा। इस टेबलेट में किसी भी तरह के दवाओं के तत्व मिलाए जा सकते हैं। चूंकि बीमारी के आधार पर दवाओं के अलग-अलग तत्व उपयोग किए जाते हैं। ऐसे में चार चरणों में दवाओं के तत्वों के आधार पर इसका शोध कार्य किया जाएगा। आगे के अध्ययन के लिए राज्य योजना आयोग को प्रस्ताव भेजा गया है, जिसपर जल्द ही मंजूरी मिल सकती है।
बेहद कम लागत में धान के भूसे से टेबलेट तैयार किया जा सकता है। रासायनिक तत्वों से बने टेबलेट की तुलना में यह अधिक असरकारक तो है ही। आगे बीमारियों के आधार पर दवाओं की श्रेणियों के आधार पर इसका अध्ययन शुरू किया जाएगा।
-डा. खोमेंद्र कुमार सार्वा, शोधकर्ता, शासकीय कन्या पालीटेक्निक कालेज रायपुर
चिकित्सा क्षेत्र में यह शोध मिल का पत्थर साबित हो सकता है। टेबलेट तैयार करने के लिए उपयोग होने वाले एक किलोग्राम एक्सीपिएंट्स की कीमत 10 हजार रुपये तक है। जबकि धान के भूसे आसानी से उपलब्ध हैं, इससे कोई साइड इफेक्ट होने की आंशका भी नहीं।