रायपुर। छत्तीसगढ़ में सरकार आरक्षण मामले पर विधानसभा का विशेष सत्र बुला सकती है। इसकी जानकारी खुद आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने दी है। बताया गया कि 17 अक्टूबर को राज्य कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव पर चर्चा होगी। अगर सहमति बन गई तो सरकार इसी महीने एक दिन का विशेष सत्र बुलाएगी। इस सत्र के साथ ही आरक्षण मुद्दे पर राजनीतिक लड़ाई की जमीन तैयार हो जाएगी।
आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने सोमवार को प्रेस से चर्चा में कहा, हमारी सरकार इस मामले को लेकर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की तैयारी कर रही हैं। इस मामले को 17 अक्टूबर को कैबिनेट की बैठक में भी रखेंगे। कवासी लखमा ने कहा, आरक्षण मामले को भाजपा ने अच्छी तरीके से कोर्ट में नहीं रखा।
मंत्री कवासी लखमा के मुताबिक इसकी वजह से आदिवासी समाज को नुकसान हुआ है। हमारी सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को अच्छे वकीलों के माध्यम से रखेगी। अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वकील अब इस मामले पर सरकार का पक्ष रखेंगे। आबकारी मंत्री ने कहा, हम भी चाहते हैं कि आदिवासी समाज को 32% आरक्षण मिले, ताकि बस्तर और सरगुजा का आदिवासी समाज विकास के पथ पर आगे बढ़े।
इससे पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी आबादी के अनुपात में आरक्षण देने की बात करते रहे हैं। उन्होंने कहा है, कांग्रेस आबादी के अनुपात में आरक्षण की पक्षधर है। हम चाहते हैं कि संविधान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज को जो अधिकार मिला हुआ है वह बना रहे। यही नहीं पिछड़ा वर्गों के लिए मंडल आयोग ने जो सिफारिशें की हैं वह भी मिले और संसद ने सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए आरक्षण की जो व्यवस्था की है वह भी लागू रहे। बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले के बाद इसे किस तरह किया जाए उस पर मंथन जारी है।
सर्व आदिवासी समाज ने आरक्षण बचाने के लिए आज प्रदेश भर में प्रदर्शन शुरू किया है। यह तस्वीर बीजापुर की है।
आदिवासी समाज सड़कों पर है
आरक्षण पर उच्च न्यायालय के फैसले के बाद आदिवासी समाज में भारी बेचैनी है। इसको लेकर सर्व आदिवासी समाज का सोहन पोटाई धड़ा सड़कों पर है। बस्तर और दुर्ग संभाग के कई आदिवासी बहुल जिलों में चक्काजाम शुरू हो चुका है। दूसरे जिलों में समाज के लोग धरने पर बैठे हैं। सर्व आदिवासी समाज के भारत सिंह धड़े ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात कर अध्यादेश लाकर 32% आरक्षण देने की मांग की है। मुख्यमंत्री ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि सरकार आरक्षण बचाने के लिए हर संभव कदम उठाएगी।
राजनीतिक हमला तेज हुआ है
2018 के चुनाव में कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत बस्तर और सरगुजा संभाग के आदिवासी बहुल सीटों पर हुई है। इन्हीं वोटरों के दम पर कांग्रेस लोकसभा चुनाव में भी दो सीटें जीत पाई। आरक्षण मामले में अदालत में सरकार की हार ने प्रदेश की राजनीति को भी गर्म कर दिया है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने इसे अवसर के तौर पर लिया है। दो दिन पहले भाजपा ने प्रदेश भर में प्रदर्शन किए हैं। भाजपा का आरोप है कि सरकार ने जानबूझकर आरक्षण खत्म हो जाने दिया। ठीक ढंग से मुकदमा नहीं लड़ा और केस हार गए। भाजपा नेताओं का आरोप है कि इस मामले में सरकार ने कोई बड़ा वकील भी खड़ा नहीं किया।
बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले से राजनीति भड़क उठी है।
आरक्षण मामले में अब तक क्या हुआ है
राज्य सरकार ने 2012 में आरक्षण के अनुपात में बदलाव किया था। इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग का आरक्षण 32% कर दिया गया। वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 12% किया गया। इस कानून को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। बाद में कई और याचिकाएं दाखिल हुईं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितंबर को इसपर फैसला सुनाते हुए राज्य के लोक सेवा आरक्षण अधिनियम को रद्द कर दिया। इसकी वजह से अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 32% से घटकर 20% पर आ गया है। वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 12% से बढ़कर 16% और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14% हो गया है। शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण खत्म होने की स्थिति है। वहीं सरगुजा संभाग के जिलों में जिला कॉडर का आरक्षण भी खत्म हो गया है।