नई दिल्ली। ‘माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक देख मेरा इंतजार देख।‘ पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह प्रखर अर्थशास्त्री तो थे ही, मगर शेर-ओ-शायरी में भी उनकी गहरी रुचि थी। अक्सर संसद के अंदर और बाहर वे राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को शायरी के जरिये जवाब देते थे।
2009 से 2014 के बीच संसद में उनकी शायरी का मुकाबला तब से शुरू हुआ जब भाजपा की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज विपक्ष की नेता बनीं। इन दोनों दिवंगत नेताओं की शायरी की जुगलबंदी ने कई बार संसद के माहौल को हास्य में बदला। आज जब पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और भाजपा नेता सुषमा स्वराज हमारे बीच नहीं हैं तो उनके बीच 2011 में विकीलीक्स केबल को लेकर चला शेर ओ शायरी का दौर याद आ रहा है। दोनों नेताओं ने शायराना अंदाज में एक-दूसरे पर हमला बोला।
2011 में जब संसद में विकीलीक्स केबल को लेकर हंगामा हुआ तो विपक्षी सांसदों ने सत्तारूढ़ कांग्रेस पर आरोप लगाए। इस दौरान विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री पर शहाब जाफरी की पंक्तियों के साथ हमला बोला। उन्होंने कहा था कि ‘तू इधर उधर की न बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा, हमें रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।’
विपक्ष की नेता के इस हमले का जवाब तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने भी शायराना अंदाज में दिया। उन्होंने अल्लामा इकबाल का शेर पढ़ा। उन्होंने कहा कि ‘ माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक देख मेरा इंतजार देख।’ इस शेर को सुनकर सुषमा स्वराज के चेहरे पर मुस्कान तैर गई और सदन में ठहाके गूंजने लगे।
हमको उनसे है वफा की उम्मीद…
इसके बाद 2013 में जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान भी दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर शायराना अंदाज में हमला किया। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने मिर्जा गालिब का शेर पढ़कर भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने पढ़ा था कि ‘हमको उनसे है वफा की उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है’।
इसके जवाब में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा था कि शायरी का एक अदब होता है कि शेर का कभी उधार नहीं रखा जाता, इसलिए मैं प्रधानमंत्री का यह उधार चुकता करना चाहती हूं। एक नहीं दो शेर पढ़कर। इसके बाद सुषमा जी ने शेर पढ़ा कि ‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता’। इसके बाद उन्होंने दूसरा कलाम यूं पढ़ा कि ‘तुम्हें वफा याद नहीं, हमें जफा याद नहीं, जिंदगी और मौत के दो ही तो तराने हैं, एक तुम्हें याद नहीं एक हमें याद नहीं’।