रायपुर। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने छत्तीसगढ़ के 10 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सेवाएं दे रहे करीब 600 नियमित और संविदा डाक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर ली है। स्वास्थ्य सचिव ने डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन (डीएमई) को इसका ड्राफ्ट तैयार करने के निर्देश दिए हैं।
बैन के पीछे वजह ये है कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों में सरकार डॉक्टरों का मरीजों पर ज्यादा फोकस चाहती है। हालांकि प्राइवेट प्रैक्टिस बैन के बाद डॉक्टरों को किस तरह आर्थिक तौर पर राहत दी जा सके, इसके लिए एम्स तथा अन्य बड़े केंद्रीय संस्थानों में डाक्टरों के सैलरी स्ट्रक्चर का भी अध्ययन शुरू हो गया है।
निजी प्रैक्टिस पर बैन लगाने की दशा में डॉक्टरों को सैलरी में राहत देने की संभावना है। स्वास्थ्य विभाग ने हाल में अंदरूनी तौर पर सरकारी अस्पतालों की कार्यप्रणाली को लेकर जानकारियां जुटाई थीं। इसमें यह बात सामने आई थी कि इन अस्पतालों में डॉक्टर ड्यूटी टाइम पर भी पूरा समय नहीं दे रहे। सुबह की ओपीडी को किसी तरह पूरी की जा रही है, लेकिन इसके बाद अधिकांश डाक्टर शाम को अपने क्लीनिक में ही बैठ रहे हैं।
इससे सरकारी अस्पतालों में ओपीडी के बाद आने वाले मरीजों को समय पर बेहतर इलाज नहीं मिल पा रहा है। जबकि कंसल्टेंट की सेवा शर्तों में ओपीडी में बैठने के साथ-साथ वार्डों में राउंड लेना और इमरजेंसी में इलाज करना शामिल है। अभी ऐसा हो रहा है कि सीनियर डाक्टर फोन पर जूनियर को ब्रीफ करने लगे हैं और ट्रीटमेंट भी लिखवा देते हैं। उसी आधार पर इलाज हो जाता है।
8 साल पहले भी था प्रस्ताव
हेल्थ अफसरों ने बताया कि 8 साल पहले तत्कालीन डीएमई डॉ. सुबीर मुखर्जी के समय डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर प्रतिबंध का प्रस्ताव बना था। इसके ड्राफ्ट में यह बात शामिल थी कि अगर डॉक्टरों का सैलेरी स्ट्रक्चर अच्छा या एम्स के समकक्ष हो, तो इससे सरकारी अस्पताल में इलाज की व्यवस्था बेहतर होगी। भास्कर ने कुछ रिटायर्ड डीन और डीएमई से बात की तो उनका मानना है कि बैन लगाने के बाद सैलरी के मामले में एम्स जैसी व्यवस्था लागू करना संभव है।
एम्स जैसी सैलरी हो तो प्रैक्टिस की जरूरत नहीं : एसोसिएशन
मेडिकल कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अरविंद नेरल के मुताबिक प्राइवेट प्रैक्टिस पर बैन से उन्हें प्रॉब्लम हो सकती है, जिनकी अच्छी प्रैक्टिस है। अगर एम्स के बराबर सैलेरी स्ट्रक्चर किया जाए तो इससे प्रदेश के सरकारी सेवारत डाक्टर खुश होंगे और प्राइवेट प्रैक्टिस की जरुरत नहीं होगी। उन्होंने कहा कि अभी एसोसिएशन के पास ऐसी सूचना नहीं आई है। आने पर बैठक बुलाकर चर्चा की जाएगी।
प्राइवेट प्रैक्टिस की एकमात्र वजह अच्छी आमदनी
इस पत्रकार ने 10 सरकारी मेडिकल कॉलेजों के दो दर्जन से ज्यादा डॉक्टरों से बात करके यह पता लगाने की कोशिश की कि आखिर प्राइवेट प्रैक्टिस क्यों चल रही है, तो पैसा ही एकमात्र कारण के तौर पर सामने आया। डॉक्टरों ने कहा कि सरकारी नौकरी में वेतन कम है, ऐसे में प्राइवेट प्रैक्टिस विवशता है।
प्राइवेट प्रैक्टिस को डॉक्टर कितनी गंभीरता से ले रहे हैं, उसका एक उदाहरण यह भी है कि शासन ने अंबिकापुर, महासमुंद, कांकेर, रायगढ़ और राजनांदगांव मेडिकल कॉलेजों के लिए रायपुर मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरों के तबादले किए। लेकिन अधिकांश 6 महीने से सालभर में वापस रायपुर लौट आए, क्योंकि यहां इनकी प्रैक्टिस अच्छी-खासी चल रही थी। इनमें अधिकांश बड़े नाम हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि प्रदेश के मेडिकल कॉलेज-अस्पतालों में नौकरी कर रहे 90 प्रतिशत डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे हैं। डॉक्टरों के खुद के क्लीनिक-अस्पताल हैं या फिर बड़े निजी अस्पतालों में सेवाएं दे रहे हैं। शासकीय सेवा नियमावली में यह नियम-विरुद्ध नहीं है, क्योंकि डॉक्टर नॉन प्रैक्टिशनर अलाउंस (एनपीए) नहीं लेते। ये डॉक्टर ड्यूटी टाइम के बाद 2 घंटे प्राइवेट प्रैक्टिस कर सकते हैं। लेकिन समस्या यह आई है कि डॉक्टर ड्यूटी खत्म होने के पहले ही अस्पताल छोड़ रहे हैं। इसे लेकर कई डॉक्टरों को चेतावनी और नोटिस तक जारी हो चुके हैं।