नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 के अंतिम चरण के लिए एक जून को मतदान होगा और चार जून को परिणाम घोषित किए जाएंगे। इस चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी इंडिया गठबंधन दोनों की ओर से जीत के दावे किए जा रहे हैं। इस चुनाव का परिणाम चाहे जो भी हो, लेकिन यह तय माना जा रहा है कि इन चुनाव परिणामों से उन राज्यों के विधानसभा चुनाव भी अवश्य प्रभावित होंगे, जहां इसी साल के अंत में या अगले वर्ष के प्रारंभ में विधानसभा चुनाव होंगे। हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, तो दिल्ली में अगले वर्ष की जनवरी-फरवरी माह में चुनाव होंगे।
भाजपा ने हरियाणा में लगातार दो बार विधानसभा में सरकार बनाकर एक इतिहास बनाया है। इस बार उसके सामने हरियाणा में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की कठिन चुनौती होगी। 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने हरियाणा में सात सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि 2019 के चुनाव में उसने सभी दस सीटों पर बड़ी जीत हासिल कर विपक्ष का सफाया कर दिया था। अब यदि इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में बेहतर चुनाव परिणाम आते हैं, तो इसका विधानसभा चुनावों पर भी बेहतर असर पड़ेगा और उसके लिए संभावनाएं कुछ बेहतर हो जाएंगी। लेकिन जिस तरह का अनुमान लगाया जा रहा है, यदि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह रोक ली, तो कांग्रेस विधानसभा चुनावों में भी उत्साह के साथ उतरेगी और भाजपा के लिए चुनौती कठिन हो जाएगी।
महाराष्ट्र की चुनौती कठिन
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों में अपनी बढ़त बनाए रखना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन ने 2014 में महाराष्ट्र में 42 और 2019 में 41 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार उसकी महत्त्वपूर्ण सहयोगी शिवसेना उसके साथ नहीं थी। हालांकि, शिवसेना और एनसीपी के एक-एक बागी धड़े उसके साथ आ मिले थे। ऐसे में इस चुनाव में चुनाव परिणाम किस ओर जाएंगे, इस पर अभी बहुत भरोसे के साथ कुछ भी कहना मुश्किल है।
लेकिन इतना तय है कि यदि एनडीए ने 2024 में भी महाराष्ट्र में बेहतर जीत हासिल की तो इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में उसका दावा मजबूत हो जाएगा। लोकसभा चुनाव में शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार गुट) के कमजोर रह जाने की स्थिति में राज्य में नए राजनीतिक समीकरणों के पैदा होने की संभावना बन सकती है। लेकिन यदि महागठबंधन ने इस लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल की, तो विधानसभा चुनावों में वह पूरी ताकत के साथ उतरेगी और भाजपा के लिए सत्ता में वापसी करने की राह कठिन हो जाएगी। ऐसी स्थिति में शिवसेना के बागी गुट एकनाथ शिंदे और एनसीपी के बागी नेता अजित पवार के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा और भाजपा के नए चाणक्य बनकर उभर रहे देवेंद्र फडणवीस के राजनीतिक कौशल के लिए नई परीक्षा की घड़ी आ जाएगी।
झारखंड के परिणाम से तय होगा हेमंत सोरेन का भविष्य
इसी तरह झारखंड में भी लोकसभा चुनाव परिणामों की बेसब्री से प्रतीक्षा की जा रही है। झारखंड के लोकसभा चुनाव परिणाम भी इस बात की ओर इशारा कर सकते हैं कि इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में किसका दावा मजबूत रहने वाला है। इन चुनाव परिणामों से हेमंत सोरेन का भविष्य भी तय हो सकता है, जो एक घोटाले में इस समय जेल में हैं और उनकी पार्टी के नेता चंपई सोरेन राज्य की बागडोर संभाल रहे हैं। हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन की भूमिका इन परिस्थितियों में बहुत महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
दिल्ली में क्या होगा?
दिल्ली के लोकसभा चुनाव परिणाम के आधार पर विधानसभा चुनाव के संभावित परिणामों की भविष्यवाणी करना बेहद खतरनाक हो सकता है। इसका सबसे बड़ा कारण दिल्ली की वह जनता है, जो लगातार दो बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सभी सातों सीटों पर जिता देती है, तो विधानसभा चुनाव आने पर उसकी प्राथमिकता बदल जाती है और वह आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को सत्ता सौंप देती है। भाजपा नेता अभी से लोकसभा चुनावों में वोटिंग का पैटर्न देखते हुए दावा कर रहे हैं कि भाजपा इस बार भी दिल्ली की सभी सातों सीटों पर जीत हासिल करेगी।
लेकिन भाजपा नेताओं का यह दावा भी है कि इस बार पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी बड़ी जीत हासिल कर सकती है। उनका कहना है कि अब अरविंद केजरीवाल की असलियत खुलकर सामने आ गई है। वे शराब घोटाले, शिक्षा-स्वास्थ्य घोटाले में फंस चुके हैं। आम आदमी पार्टी के बड़े-बड़े नेता जेल में हैं और जनता के सामने उनकी सच्चाई खुलकर सामने आ चुकी है। भाजपा को अनुमान है कि अगले वर्ष जब जनवरी-फरवरी में दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होंगे, केजरीवाल की हार होगी और भाजपा का दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने का सपना साकार हो सकेगा।