लोक सभा चुनाव : एनडीए 400 सीटें पार करेगी या नहीं 5 राज्य तय करेंगे ? सिर्फ 2 से ही बीजेपी को ज्यादा उम्मीद

नईदिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार एनडीए के लिए 400 सीटों से ज्यादा और बीजेपी के लिए 370 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। अगर 2019 के लोकसभा प्रदर्शनों के आधार पर आकलन करें तो यह तभी मुमकिन है, जब एनडीए का प्रदर्शन इन 5 राज्यों में बेहतर हो। ये पांच राज्य हैं- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल। इन पाचों में भाजपा ने सबसे अच्छा प्रदर्शन पिछली बार बंगाल में किया था। लेकिन, तेलंगाना छोड़कर अन्य राज्यों में उसे एक भी सीटें नहीं मिली थीं।

अभी तक के जितने चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के अनुमान आए हैं और जिस तरह से भाजपा ने एनडीए का कुनबा बढ़ाया है, उससे अगर मान भी लिया जाए कि बाकी राज्यों में एनडीए का प्रदर्शन कमोवेश पिछली बार जैसा ही रहा; तो भी जबतक बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए इन पांचों राज्यों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करेगा, 400 सीटों के पार जाना, बहुत ही मुश्किल है।

तमिलनाडु
तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं। यहां पिछली बार बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी। उसकी तब की सहयोगी, एआईएडीएमके ने जरूर 1 सीट जीती थी। इस बार वह भी एनडीए से बाहर हो चुकी है।

बीजेपी ने यहां दूसरे छोटे-छोटे दलों से गठबंधन किया है और कुछ पार्टियों का उसमें विलय भी हुआ है। पार्टी ने जमीन तैयार करने के लिए बहुत कड़ी मेहनत भी की है। लेकिन, फिर भी वहां इस बार चुनाव नतीजे पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में हो जाएंगे, इसकी संभावना बहुत ही कम लग रही है।

केरल
केरल में लोकसभा की 20 सीटें हैं। बीजेपी यहां आजतक ‘कमल’ खिलाने का सपना ही देखती रही है। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डबल डिजिट में सीटें मिलने की उम्मीद जरूर जताई है।

निश्चित रूप से पार्टी ने यहां जमीनी स्तर पर अपना जनाधार बढ़ाने की बहुत कोशिश भी की है और उसे सफलता भी मिली है। बीजेपी ने दक्षिण के इस राज्य में भी एनडीए का कुनबा भी बढ़ाया है। कई सीटों पर पार्टी संघर्ष में भी दिखाई दे रही है।

लेकिन, यहां का चुनाव एकतरफा बीजेपी के पक्ष में हो जाएगा, यह बात फिलहाल दूर की कौड़ी लग रही है। जबकि, एनडीए का आंकड़ा 400 के पार ले जाने के लिए दक्षिण के एक-दो राज्यों में उसके पक्ष में अप्रत्याशित परिणाम आने जरूरी हैं।

तेलंगाना
तेलंगाना में लोकसभा की लोकसभा की 17 सीटें हैं। भाजपा पिछले कुछ वर्षों में यहां एक तीसरी शक्ति बनकर स्थापित हुई है। सिकंदराबाद जैसी सीटों पर वह कई चुनाव जीत चुकी है। पिछली बार चार-चार लोकसभा सीटें जीती भी थी। इस बार उसकी उम्मीदवार माधवी लता ने हैदराबाद में भी मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।

पिछले साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव के परिणाम कांग्रेस के पक्ष में गए हैं। उसके बाद मुख्य विपक्षी पार्टी बीआरएस के कई नेताओं ने भाजपा का भी रुख किया है। लेकिन, बीजेपी तेलंगाना का चुनाव परिणाम एकतरफा अपने पक्ष में करने की स्थिति में आ चुकी है, यह कहना अभी काफी जल्दबाजी है।

आंध्र प्रदेश
ऊपर के तीनों राज्यों की मदद से 400 सीटों के आंकड़ों को पार करने के लिए एनडीए को किसी चुनावी चमत्कार की उम्मीद हो सकती है। लेकिन, आंध्र प्रदेश में इसकी संभावना खारिज नहीं की जा सकती।

आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें हैं। पिछली बार वाईएसआरसीपी को 22 सीटें मिली थीं और टीडीपी ने अकेले लड़कर 3 सीटें जीती थी। यह ऐसा चुनाव था, जब संयुक्त आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू बड़े एंटी-इंकंबेंसी का सामना कर रहे थे।

वहीं वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के जगन मोहन रेड्डी नए-नए थे। उनकी लोकप्रियता आसमान पर थी। फिर भी दोनों दलों के वोट शेयर में 10% से भी कम का अंतर था। आज परिस्थितियां बदली हुई हैं। एंटी-इंकंबेंसी का सामना मुख्यमंत्री जगन रेड्डी की पार्टी को करना पड़ रहा है।

उधर नायडू जेल जाने की वजह से सहानुभूति के रथ पर सवार हैं। उनकी पार्टी की एनडीए में वापसी हो चुकी है और बीजेपी-टीडीपी और पवन कल्याण की जनसेना पार्टी गठबंधन में चुनाव लड़ रही है।

ऐसे में यह राज्य भाजपा और एनडीए के लक्ष्य के लिए फिट साबित हो सकता है। वहीं, कांग्रेस के लिए अभी भी दक्षिण भारत में सिर्फ यही राज्य सबसे ज्यादा परेशानी खड़ी कर रहा है।

पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं। 2019 में बीजेपी ने 2 से सीधे 18 सीटें जीतकर राजनीतिक पंडितों के लिए भी रिफ्रेशर कोर्स करने की स्थिति पैदा कर दी थी। सत्ताधारी ममता बनर्जी के सामने एंटी-इंकंबेंसी के अलावा संदेशखाली का संकट मंडरा रहा है।

ऊपर से सीएए लागू करके मोदी सरकार ने मतुआ, नमोशूद्र और राजबंशी (अनुसूचित जाति) समुदाय के वोट के लिए बहुत बड़ा दांव चल दिया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कई महिने पहले बीजेपी कार्यकर्ता और नेताओं को 35 सीटें जीतने का टारगेट देकर आए हैं।

टीएमसी अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है। इसलिए, पश्चिम बंगाल भी इस बार बीजेपी को 370 पार कराने में योगदान कर सकता है। नहीं तो, यह लक्ष्य पाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण होगा।