मुंबई हमले के दौरान 9 साल की थी देविका, आज भी जेहन में जिंदा है दहशत, कोर्ट में की थी कसाब की पहचान

नईदिल्ली : मुंबई में हुए आतंकी हमले 26/11 को आज 15 साल हो गए. आज ही के दिन, 26 नवंबर को मुंबई में हुए आतंकी हमलों से पूरा देश दहल गया था. हमले के मास्टमाइंड अजमल कसाब को फांसी दी गई थी. आतंकी हमले में घायल जिस लड़की ने कोर्ट में कसाब की पहचान की थी. उसका नाम देविका है. उस समय उसकी उम्र सिर्फ 9 साल की थी. आतंकियों ने उसके पैर में गोली मार दी थी. कसाब को फांसी की सजा सुनाए जाने में इस लड़की की गवाही बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हुई थी.

हमले के समय देविका की उम्र महज नौ साल थी. पिता और भाई के साथ वह मुंबई के क्षत्रपति शिवाजी महाराज रेलवे टर्मिनस पर ट्रेन का इंतजार कर रही थी. अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट शुरू होती है. एक गोली सीधे उस मासूम के दाहिने पैर में जा लगती है और वह गिर जाती है. पिता-भाई मदद की गुहार लगाते हैं, लेकिन वहां तो हर आदमी केवल भाग रहा था. तब किसी को पता भी नहीं था कि यह आतंकी हमला है. बाद में पुलिस के आने के बाद उसे मदद मिली और पता चला कि यह आंतकी हमला है और मुंबई में कई जगहों पर हुआ है.

जेहन में जिंदा है हमलों की दहशत

26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले में घायल देविका और अजमल कसाब को फांसी पर लटकाए जाने में इस मासूम की गवाही बेहद महत्वपूर्ण साबित हुई थी. 15 साल हो गए इस हमले को. इस दौरान देविका बड़ी हो गई है. वह पढ़ाई कर रही है औग आईपीएस बनना चाहती है. आतंकियों के सफाए में योगदान देना चाहती है. वह एक मामूली परिवार से आती है. इस हमले से दो साल पहले उसकी मां का निधन हो गया था. उन्हें कैंसर था. तब उसकी उम्र बमुश्किल सात साल थी. पिता और भाई ने उसे मिलकर मां का प्यार दिया. इस हमले के बाद उसकी जिंदगी बदल गई. पहले करीब दो महीने अस्पताल में गुजरे. वह ठीक तो हो गई लेकिन रात में सोते समय भी कई बार वह चौंककर उठ जाती. गोलीबारी की वह घटना वह अभी तक नहीं भूल पाई है. हमले की दहशत आज भी उसके जेहन में जिंदा है.

आतंकी हमले ने बदल दी जिंदगी

देविका पुलिस के लिए चश्मदीद गवाह थी और सबसे कम उम्र की थी. यह बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा था. लंबे समय तक उसके आसपास पुलिस का पहरा होता था. एक ही घटना को उसे बार-बार दोहराना पड़ता था. सिपाही से लेकर कमिश्नर तक एक ही सवाल पूछते थे. वह बार-बार एक ही जवाब देती. नतीजा, उसका जीवन एकदम बदल सा गया. उम्र छोटी थी तो पिता उसे छोड़कर कहीं जा नहीं पाते. सुरक्षा का जोखिम भी था क्योंकि आतंकी हमला हुआ था और यह महत्वपूर्ण गवाह थी. ऐसे में परिवार के आसपास सुरक्षा घेरा भी था.

नहीं मिलता था किराए पर घर

इस घटना के बाद से देविका और उसके पूरे परिवार का पूजा जीवन बदल गया. कोई किराए पर घर देने को तैयार नहीं होता, जो पड़ोसी थे, वे बात नहीं करते. डर के मारे सबने दूरी बना ली. स्कूल में देविका के साथी भी बात नहीं करते. परिवार एकदम अकेला हो गया. उसकी आवासीय समस्या हल करने को सरकार ने भी कोई मदद नहीं की जबकि मुंबई में उसके लिए यह बेहद जरूरी था. यह बेटी हाईकोर्ट गई कि सुरक्षा खतरों को देखते हुए उसे एक अदद सरकारी आवास दे दिया जाए, जिससे वह और परिवार के सदस्य सुरक्षित जीवन जी सकें. इस हमले के कारण उसकी पूरी पढ़ाई बाधित हो गई और 24 साल की उम्र में अभी वह ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही है.

बैशाखी के सहारे जाती थी कोर्ट

उसके पैर में गोली लगी थी और इस कारण वह बैशाखी के सहारे चलती थी और कोर्ट में गवाही देने जाती थी. कसाब जब उसके सामने था तो वह उसके सामने डटकर खड़ी रहती थी. कोर्ट से सामने देविका ने कसाब की पहचान और गवाही उसके पिता और अन्य लोगों की भी हुई और कसाब को फांसी की सजा हुई. वह इसी साल जनवरी में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल हुई थी. राहुल ने उसके संघर्षों को अपने ट्विटर एकाउंट पर साझा भी किया था और साथ देने का वायदा भी किया.