
नई दिल्ली। किस्मत भी हिम्मतवालों का साथ देती है, मोहम्मद शमी पर यह बात सौ फीसदी लागू होती है। निजी जिंदगी की उलझनें हों या निष्ठा पर सवाल या फिर 2019 विश्व कप के बाद वनडे, टी-20 टीम से बाहर होना शमी ने न हिम्मत हारी और न मेहनत छोड़ी। शमी ने न सिर्फ वनडे टीम में जगह बनाई बल्कि विश्व कप टीम में भी शामिल हुए। विश्व कप के लिए भी वह प्रबंधन की प्राथमिक योजनाओं का हिस्सा नहीं थे। वह पहले 4 मैचों से बाहर बैठे। हार्दिक पंड्या के चोटिल होने के बाद उन्हें अंतिम एकादश में मौका दिया, जिसे उन्होंने दोनों हाथों से भुनाया।
…तो लाल गेंद के गेंदबाज बनकर रह जाओ
शमी के कोच बदरुद्दीन बताते हैं कि विश्व कप के अंतिम 11 में जगह नहीं मिलने से शमी निराश थे, लेकिन उन्हें मौका मिला तो उन्होंने फिर अपने को साबित किया। एक समय वह था जब सफेद गेंद के प्रारूप से बाहर होने पर शमी इस गेंद पर महारत हासिल करने को छटपटा रहे थे। उस दौरान उन्होंने यही कहा कि जैसे लाल गेंद पर मेहनत की है, वैसी सफेद गेंद पर करो। ऐसा नहीं करना है तो लाल गेंद के गेंदबाज बनकर रह जाओ। इसके बाद उन्होंने दिन-रात एक किया।
शमी ने अपनी ताकत पर किया काम
शमी ने इस विश्व कप में कुछ अतिरिक्त नहीं करते ही अपनी ताकत पर काम करते ही गेंद को आगे रखा है। बदरुद्दीन बताते हैं कि सेमीफाइनल में कॉन्वे का विकेट इसका उदाहरण है। गेंद की सीम एकदम सीधी थी। अब यह बल्लेबाज को समझना है कि गेंद पड़कर अंदर आएगी या बाहर जाएगी। इसमें चूक होने पर शमी को विकेट मिला। शमी ने दूसरे गेंदबाजों की तरह कभी भी तिरछी सीम का इस्तेमाल नहीं किया।
23 में से 8 विकेट बाएं हाथ के बल्लेबाजों के
इस विश्व कप में शमी ने महज 10.9 के स्ट्राइक रेट से 23 विकेट लिए हैं। इनमें उन्होंने तीन बार पांच या उससे अधिक विकेट एक मैच में चटकाए हैं। वह बाएं हाथ के बल्लेबाजों के खिलाफ खतरनाक रहे हैं। 23 में 8 विकेट उन्होंने बाएं हाथ के बल्लेबाजों के लिए हैं। इनमें कॉन्वे, रविंद्र, लाथम, स्टोक्स जैसे बल्लेबाज शामिल हैं। शमी ने विश्व कप में अपने 54 विकेट पूरे कर लिए हैं। यह भारतीय रिकॉर्ड है। विश्व कप में वह एक मैच में 4 बार 5 विकेट ले चुके हैं।