छत्तीसगढ़: परिसीमन के बाद बदल जाएगा प्रदेश का राजनीतिक भूगोल, जानिए कितनी बढ़ेंगी लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा की सीटें

रायपुर। छत्तीसगढ़ के राजनीतिक भूगोल में लगातार बदलाव हो रहा है। आजादी के बाद अब तक हुए छह परिसीमन से यहां राजनीतिक और जातिगत समीकरण बदले हैं। अंग्रेजों के समय छत्तीसगढ़ मध्य प्रांत और बरार प्रांत के नाम जाना जाता रहा है, जो कि 1950 तक अस्तित्व में था। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद देश में पहली बार 1951 में आम चुनाव हुए। तब यहां विधानसभा सीटों की संख्या 61 थी। वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। राज्य में 2003 के बाद 90 विधानसभा सीट हैं। तबसे अब तक सीटों की संख्या बरकरार है मगर परिसीमन के कारण कई विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व खत्म हुआ और नए विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आए हैं।

प्रदेश में परिसीमान एक बार फिर चर्चा में है। लोकसभा और राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पारित होने के बाद प्रदेश की करीब 30 विधानसभा सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो सकती है। जनगणना 2026 में होगी, जिसके बाद परिसीमन हो सकता है। 2002 में संशोधित अनुच्छेद 82 के मुताबिक परिसीमन प्रक्रिया 2026 के बाद हुई पहली जनगणना के आधार पर की जा सकती है।

वर्षवार प्रदेश में विधानसभा सीटें

वर्ष विधानसभा सीटें

1951 : 61 

1957 : 57 

1962 : 81 

1967 : 83 

2003 : 90 

2008 : 90 

परिसीमन में खत्म हुई सीटें- सूरजपुर, पाल, पिलखा, बगीचा, तपकरा, सरिया, जरहागांव, सिपत, पामगढ़, मालखरोदा, रायपुर शहर, मंदिरहसौद, पल्लारी, भटगांव, भानपुरी, केसलूर, मारो, धमधा, खेरथा, चौकी और विरेन्द्र नगर। 

अस्तित्व में आई नई सीटें- भरतपुर-सोनहट, भटगांव, प्रतापपुर, रामानुजगंज, कुनकुरी, कोरबा, बेलतरा, जैजैपुर, पामगढ़, बिलागईगढ़, रायपुर पश्चिम, रायपुर उत्तर, रायपुर दक्षिण, दुर्ग ग्रामीण, वैशालीनगर, अहिवारा, नवागढ़, पंडरिया, मोहला-मानपुर, अंतागढ़ और बस्तर। 

अस्तित्व में आई 21 सीटों पर इनकी रही सत्ता

पार्टी 2003 : 2008 : 2013 : 2018

भाजपा 12 : 12 : 15 : 03 

कांग्रेस 08 : 08 : 05 : 16 

बीएसपी 01 : 01 : 01 : 02 

परिसीमन के बाद इस तरह बदला स्वरूप

रायपुर का गुढ़ियारी भी रहा विधानसभा क्षेत्र

रायपुर का गुढ़ियारी भी विधानसभा क्षेत्र रहा है। 1951 के परिसीमन में इसका अस्तित्व खत्म हो गया। इसके साथ ही नरगोड़ा, पेंड्रा, पचेड़ा, पांडुका और बोरी डेकर विधानसभा क्षेत्र भी खत्म हो गया। राजनांदगांव पहले नंदगांव और सूरजपुर सुरईपुर के नाम से जाना जाता था। 

इनका क्षेत्र बदला पर नाम नहीं

प्रदेश के कुछ विधानसभा सीटों के क्षेत्र में बदलाव हुआ पर नाम अभी भी पुराना है। इनमें कवर्धा, बेमेतरा, दुर्ग, खैरागढ़, डोंगरगढ़, डोगरगांव, बालोद, कांकेर, नारायणपुर, केशकाल, जगदलपुर, चित्रकोट, सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, धमतरी, कुरूद, आरंग, कसडोल, भाटापारा, राजिम, महासमुंद, बसना, सरायपाली, कोटा, तखतपुर, मुंगेली, रामपुर, कटघोरा, बिलासपुर, मस्तुरी, मनेंद्रगढ़, सामरी, सीतापुर, अंबिकापुर, जशपुर, सक्ती, रायगढ़ , सारंगढ़, चंद्रपुर, चांपा, पामगढ़ और अकलतरा शामिल है। 

बदले जातिगत समीकरण भी

1951 में अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 184 सीटें थीं। इनमें 61 सीटें छत्तीसगढ़ की रहीं हैं। अनुसूचित जनजाति के लिए आठ सीट आरक्षित थीं। अनुसूचित जाति के लिए 1957 में आरक्षण मिलना आरंभ हुआ। 1957 में अविभाजित मध्यप्रदेश में 218 सीटों में छत्तीसगढ़ के लिए 57 सीटें थीं। इनमें 22 अनुसूचित जनजाति, 11 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं। 1962 के परिसीमन में प्रदेश में कुल 81 सीट हो गईं। इनमें 22 अनुसूचित जनजाति, 13 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं। 1967 में 28 सीटें अनुसूचित जनजाति, 08 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं। 2003 तक 34 सीटें अनुसूचित जनजाति, 10 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं। अभी 29 सीटें अनुसूचित जनजाति, 10 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं।

2026 में होने वाले परिसीमन में बढ़ जाएंगी 6 लोकसभा सीटें

2026 में होने वाले परिसीमन में छत्तीसगढ़ में 6 लोकसभा सीटें और बढ़ जाएंगी। यानि छत्तीसगढ़ में 11 से बढ़कर 17 लोकसभा सीटें हो जाएंगी। जबकि राज्यसभा की सीटें भी 7 हो जाएंगी। केंद्र में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व 24 हो जाएगा। अब सवाल ये है कि 6 जो बढ़ेंगी वे कौन सी हो सकती हैं। क्या एक सीट में सिर्फ 4-5 विधानसभा सीटें ही आएंगी या कि राज्य की विधानसभा में भी सीटें बढ़ाई जाएंगी। अभी 11 सीटों में 8 विधानसभा सीटों का औसत है। यूपी जैसे बड़े राज्य में यह औसत 5 सीटों का है। यदि विधानसभा सीटें बढ़ाए बिना लोकसभा क्षेत्र बढ़ाए जाते हैं तो कौन सी 6 नई सीटें बन सकती हैं, आइए समझते हैं:

अभी छत्तीसगढ़ में सरगुजा, रायगढ़, जांजगीर, बिलासपुर, कोरबा, रायपुर, महासमुंद, दुर्ग, राजनांदगांव, कांकेर और बस्तर लोकसभा सीटें हैं। 17 कुल सीट होने की स्थिति में 6 कौन सी सीटें बनेंगी यह समझना कठिन है, लेकिन बड़े शहरों और आबादी क्षेत्रों को देखें तो इनके संभावित नाम खोजे जा सकते हैं।

नामों को लेकर होती है सियासत 

आमतौर पर किसी भी एस्टेबिलिशमेंट के नामों को लेकर सियासत होती है। जैसे हाल ही में छत्तीसगढ़ में जो जिले बनाए गए हैं वे बहुत लंबे नाम के हैं, क्योंकि जिला मुख्यालय में एक से अधिक शहरों के नाम शामिल किए गए हैं। ऐसा ही लोकसभा क्षेत्रों के नाम में भी होता है। कई बार प्रत्याशी अपने स्तर पर ही लोकसभा क्षेत्रों के नाम में क्षेत्र में आने वाले बड़े शहर या इलाके का नाम जोड़ लेते हैं। इस हिसाब से देखें तो छत्तीसगढ़ में 6 नई लोकसभा सीटों के नाम को लेकर बहुत माथापच्ची होगी।

पहली सीट बन सकती है कोरिया 

सरगुजा और कोरबा लोकसभा क्षेत्रों में अभी 16 विधानसभा सीटें आती हैं। इनकी भौगोलिक संरचना ऐसी है, जिसमें से एक सीट अलग बनाई जा सकती है। जैसे कि कोरबा में सरगुजा संभाग की 3 सीटें आती हैं। यह मनेंद्रगढ़ और कोरिया जिले में पड़ती हैं। एक नई सीट कोरिया बनाई जा सकती है, जिसमें कोरबा की तीन विधानसभा सीटें और सरगुजा की 2 विधानसभा सीटें डाली जा सकती हैं। इसके बाद 16 विधानसभा सीटों में 3 लोकसभा क्षेत्र हो जाएंगे। यानि सरगुजा में 6, कोरबा में 5 और तीसरी संभावित लोकसभा सीट कोरिया में 5 विधानसभा क्षेत्र शामिल किए जा सकते हैं।

दूसरी सीट सारंगढ़ हो सकती है बहाल 

रायगढ़, जांजगीर लोकसभा क्षेत्रों में अभी 16 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से भी एक सीट बढ़ाई जा सकती है। इसे सारंगढ़ नाम से उकेरा जा  सकता है। इसमें रायगढ़ की खरसिया, सारंगढ़, धरमजयगढ़ और जांजगीर की चंद्रपुर और बिलाईगढ़ को लिया जा सकता है। इसके बाद रायगढ़ में 5, जांजगीर में 6 और नई लोकसभा सीट सारंगढ़ में 5 सीटें आ जाएंगी। सारंगढ़ 2008 के परिसीमन से पहले लोकसभा क्षेत्र हुआ करता था, इस लिहाज से देखें तो यह बहाल हो सकता है।

तीसरी सीट कवर्धा के नाम से हो सकती है 

बिलासपुर लोकसभा से मुंगेली, लोरमी, कोटा और राजनांदगांव लोकसभा से पंडरिया, कवर्धा सीट निकालकर नई सीट कवर्धा बन सकती है। इसके बाद राजनांदगांव में 6, बिलासपुर में 5 और नई कवर्धा लोकसभा में 5 विधानसभा सीटें आ जाएंगी।

चौथी लोकसभा सीट का नाम होगा धमतरी 

मौजूदा महासमुंद लोकसभा से धमतरी, बिंद्रानवागढ़, कुरुद, राजिम और कांकेर से सिहावा निकालकर यहां एक नई सीट धमतरी बनाई जा सकती है। इसमें 5 विधानसभा सीटें आएंगी। जबकि महासमुंद में रायपुर की आरंग देकर इसमें भी 5 सीटें की जा सकती हैं। यानि महासमुंद में 5, धमतरी में 5 विधानसभा सीटें हो जाएंगी।

पांचवां लोकसभा क्षेत्र चंदखुरी, ग्रेटर रायपुर या कौशल्या के नाम पर 

रायपुर की भाटापारा, बलौदाबाजार, धरसींवा, बेमेतरा और नवागढ़  मिलाकर एक नई सीट बनाई जा सकती है। यानि ग्रेटर रायपुर या कौशल्या जन्मस्थल लोकसभा या चंदखुरी कौशल्या नगर लोकसभा नाम से 5 सीटों वाली यह सीट बनाई जा सकती है।

छठवां नारायणपुर एक अलग क्षेत्र बन सकता है 

कांकेर की नारायणपुर, डोंडीलोहारा, संजारी और राजनांदगांव की मुहला-मानपुर, खुज्जी मिलाकर एक नई सीट पश्चिम बस्तर में नारायपुर नाम से बनाई जा सकती है।

तब फिर ऐसी उभरेगी तस्वीर 

  1. सरगुजा- 6 सीटें (प्रतापपुर, रामानुंजगंज, सामरी, लुंड्रा, अंबिकापुर और सीतापुर)
  2. कोरिया- 5 सीटें (कोरिया, भरतपुर, मनेंद्रगढ़, प्रेमनगर और भटगांव)
  3. कोरबा- 5 सीटें (कोरबा, कटघोरा, पाली-तानाखार, रामपुर और मरवाही)
  4. जांजगीर- 6 सीटें (अकलतरा, जांजगीर, सक्ती, जैजैपुर, कसडोल और पामगढ़)
  5. रायगढ़- 5 सीटें (जशपुर, पत्थलगांव, कुनकुरी, लैलुंगा और रायगढ़)
  6. सारंगढ़- 5 सीटें (सारंगढ़, खरसिया, धरमजयगढ़, चंद्रपुर और बिलाईगढ़)
  7. बिलासपुर- 5 सीटें (मस्तूरी, बेलतरा, बिल्हा, तखतपुर और बिलासपुर)
  8. कवर्धा- 5 सीटें (कोटा, मुंगेली, लोरमी, पंडरिया और कवर्धा)
  9. राजनांदगांव- 6 सीटें (खैरागढ़, डोंगरगढ़, डोंगरगांव, राजनांदगांव, साजा और अहिवारा)
  10. दुर्ग- 6 सीटें (पाटन, दुर्ग सिटी, दुर्ग ग्रामीण, भिलाई नगर, वैशाली नगर)
  11. रायपुर- 5 सीटें (रायपुर (प.), रायपुर (उ.) रायपुर (द.) रायपुर ग्रामीण और अभनपुर)
  12. कौशल्या चंदखुरी- 5 सीटें (बलौदाबाजार, भाटापारा, बेमेतरा, नवागढ़ और धरसींवा)
  13. महासमुंद- 5 सीटें (सरायपाली, बसना, खल्लारी, महासमुंद और आरंग)
  14. धमतरी- 5 सीटें (धमतरी, कुरुद, सिहावा, राजिम और बिंद्रानवागढ़)
  15. कांकेर- 5 सीटें (कांकेर, भानुप्रतापपुर, केशकाल, कोंडागांव और अंतागढ़)
  16. बस्तर- 6 सीटें (जगदलपुर, कोंटा, बस्तर, चित्रकोट, बीजापुर और दंतेवाड़ा)
  17. नारायणपुर- 5 सीटें (नारायणपुर, खुज्जी, मुहला-मानपुर, डोंडीलोहारा व संजारी)

विधानसभा की बढ जाएंगी 40 से 50 सीटें 

आगामी परिसीमन 2026 में छत्तीसगढ़ विधानसभा की सीटें बढ़ाई जाएंगी। सेंसस की कैल्कुलेटिव रिपोर्ट के मुताबिक 2026 में छत्तीसगढ़ की कुल आबादी 3 करोड़ हो जाएगी। इनमें ढाई करोड़ मतदाता होंगे। यानि छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में औसत 2 लाख 77 हजार मतदाता और 3 लाख 33 हजार आबादी होगी। 2018 के मुताबिक छत्तीसगढ़ में प्रति विधानसभा आबादी 3 लाख 3 हजार और मतदाताओं की संख्या 2 लाख 5 हजार है। 2019 में हुए लोकसभा चुनावों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में प्रति लोकसभा जनसंख्या औसत 24 लाख 81 हजार है, जबकि मतदाताओं की संख्या 17 लाख 27 हजार है। 2026 में जब सीटें 11 से बढ़कर 17 हो जाएंगी तो मतदाता का औसत 14 लाख 21 हजार हो जाएगा। जबकि आबादी का औसत प्रति लोकसभा 17 लाख 64 हजार होगा। फिर भी मानक से यह ज्यादा ही होगा। ऐसे में विधानसभा में भी सीटें बढ़ाई जा सकती हैं। साल 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए लोकसभा और विधानसभा की सीटों की संख्या पर 2001 में होने वाली जनगणना तक रोक लगी दी गई थी। इसके पीछे तर्क यह था कि सीटें बढ़वाने के चक्कर में राज्य की इकाइयां जनसंख्या वृद्धि दर घटाने में मदद नहीं करेंगी। साल 2002 में फिर से 84वां संविधान संशोधन करके इस रोक को 2026 तक बढ़ाया गया था। अब यह अभी तक नहीं बढ़ाया गया है, इसलिए 2026 में संभावना है कि सीटें बढ़ाई जाएं।

क्या होते हैं सीटें बढ़ाने के क्राइटेरिया 

सीटें बढ़ाने के मौलिक मापदंड तो आबादी को ही रखा जाता है, लेकिन भारत में इसमें एक महत्वपूर्ण ख्याल यह भी रखा जाता है कि कहीं कोई राज्य पूरी तरह से उपेक्षित तो नहीं हो जा रहा। इसलिए ही केरल जो छत्तीसगढ़ से तिगुना छोटा होकर भी 20 लोकसभा सीटों वाला राज्य है।

तो छत्तीसगढ़ में कितनी होंगी विधानसभा सीटें 

2026 में होने वाले परिसीमन के लिए 2021 की जनगणना आधार बनाई जाती, लेकिन यह जनगणना अभी तक नहीं हो पाई है। अगर यह 2024-25 में हो जाती है तो इसके आधार पर ही परिसीमन होगा। कैल्कुलेटिव आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ की जनसंख्या 3 करोड़ तक हो जाएगी, जिनमें ढाई करोड़ वोटर्स होंगे। ढाई करोड़ वोटर मौजूदा 90 सीटों के हिसाब से 2 लाख 6 हजार के औसत वाले हैं, यह 2026 में बढ़कर 2 लाख 77 हजार हो जाएंगे। स्टैंडर्ड के मुताबिक एक विधानसभा में डेढ़ लाख से अधिकतम 2 लाख वोटर्स होने चाहिए। अगर इसे 2 लाख वोटर्स के औसत पर भी लाना होगा तो ढाई करोड़ मतदाताओं के लिए छत्तीसगढ़ में 130 से 140 सीटें की जा सकती हैं। 130 सीटों की स्थिति में मतदाताओं का औसत 1 लाख 92 हजार और 140 की स्थिति में 1 लाख 78 हजार तक हो जाएगा। यह भी आदर्श स्थिति नहीं होगी, लेकिन मौजूदा से बेहतर होगा।

यानि बढ़ जाएंगी 40 से 50 सीटें 

इसके मायने है कि छत्तीसगढ़ की आबादी, जरूरत, केंद्र में प्रतिनिधित्व और प्रतिनिधियों पर अतिरिक्त बोझ सब पर ध्यान दिया जाए तो सीटों की संख्या बढ़ाकर 130 से 140 करना होगी। फिलवक्त इसे लेकर कोई ऑफिशियल स्टेटमेंट नहीं है, लेकिन परिसीमन की कवायद के नजदीक आते है एक स्टैंडर्ड बनाया जाएगा। निर्वाचन से जुड़े अफसरों के मुताबिक संभव है 2029 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव बढ़ी हुई सीटों के साथ हों।

कौन सी सीटें बढ़ेंगी?

अब सवाल है कि कौन सी सीटें बढ़ेंगी। इसका जवाब बहुत कठिन है। क्योंकि यह तब के राजनीतिक, सामाजिक, जनसंख्या अनुपात पर निर्भर करेगा। जैसे कि जिले की जनसंख्या के आधार पर तय होगा कि वहां कितने सीटें बनाई जाएं और कौन सी बनाई जाएं। प्रदेशभर की आबादी का संतुलन बनाते हुए ऐसी सीटों को बनाया जाएगा जिनमें समान रूप से भौगोलिक और आबादी का प्रतिनिधित्व शामिल हो सके।