छत्तीसगढ़: आदिपुरुष बैन को लेकर बोले सीएम भूपेश- ‘सबसे अच्छा तरीका है फिल्म देखने ही ना जाएं’

रायपुर।प्रदेश में फिल्म आदिपुरूष को लेकर सियासत तेज हो गई है। केन्द्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह ने प्रदेश में फिल्म को बैन करने की मांग की है, जिसे लेकर सीएम भूपेश बघेल ने कहा है कि सबसे अच्छा तरीका है कि लोग उस फिल्म को देखने ही ना जाएं। क्योंकि फिल्म के बारे में सब कुछ सुन लेने के बाद जबरदस्ती देखने जाना सही नहीं है। उन्होंने कहा कि पैसा आपका, समय आपका है, आप किस में व्यतीत करना चाहते हैं, यह महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि जब इस तरह से हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचाने की बात होती है तब सेंसर बोर्ड को ये देखना चाहिए था कि जिस तरह से हमारे आराध्य हैं उनके मुख से इस तरह के डायलॉग बुलवाना सही नहीं है और ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सबसे पहले फिल्म को लेकर जतायी थी आपत्ति
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी फिल्म में पात्रों के चित्रण और डायलॉग को लेकर आपत्ति जताई थी और इसकी निंदा की थी । मुख्यमंत्री ने तंज कसते हुए कहा था कि फिल्म में बजरंग बली से बजरंग दल वाले शब्द बुलवाए गए हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि हमारे जितने भी आराध्य देव हैं उनकी छवि बिगाड़ने का काम हो रहा है। पिछले कुछ सालों से भगवान राम और हनुमान का भक्ति से सराबोर सौम्य चेहरा दिखाई देता, ये तस्वीर हमारे पुरखों ने बनायी थी। बचपन से ही हमारा परिचय हनुमान से ज्ञान,शक्ति और भक्ति के प्रतीक के रूप में कराया गया है लेकिन इस फिल्म में भगवान राम को युद्धक राम और हनुमान को एंग्री बर्ड के तौर पर दिखाया जा रहा है।
आदिपुरूष में संवाद और भाषा अमर्यादित है। तुलसी रामायण में भगवान राम को मर्यादा पुरूषोत्तम बताया गया और मर्यादित शब्दों का चयन किया गया है लेकिन आदिपुरूष में हनुमान के पात्र का डायलॉग बेहद ही निम्न स्तर का है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फिल्म आदिपुरुष में रामायण के पात्रों द्वारा बोले गए डायलॉग पर आपत्ति जताई है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फिल्म आदिपुरुष में रामायण के पात्रों द्वारा बोले गए डायलॉग पर आपत्ति जताई है।

कबीर स्मृति महोत्सव में शामिल हुए सीएम भूपेश बघेल
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल रविवार अंबेडकर अस्पताल के अटल बिहारी वाजपेयी ऑडिटोरियम में आयोजित सद्गुरू कबीर स्मृति महोत्सव में शामिल हुए। यहां सीएम ने मंच से कहा की सुख की खोज हमारे देश में हमारे संत महात्मा ऋषि मुनि विद्वानों ने की और जितने संत महापुरुष हिंदुस्तान में है उतने कहीं नहीं। इसी कारण से अनेक पंथ संप्रदाय विचारधाराएं आपको भारत में मिलेंगी। सीएम ने कहा कि भक्ति का जो आंदोलन चला वह हमारे लिए भक्तिकाल था। जिसमें अनेक भक्ति काल के संत हुए हमको एक नई दिशा दे गए।
भक्ति काल के संतों ने इंसान को ईश्वर के समक्ष खड़ा कर दिया। लेकिन समस्या वहीं से शुरू होती है जब आप सीमित चीजों में सुख खोजेंगे तो आपको सीमित समय के लिए सुख मिलेगा, जब असीमित चीजों से वस्तु से आप सुखी हो जाएंगे तो आपको सुख उसमें मिलेगा। हमारी समस्या दो प्रकार की होती है तन की और मन की , तन बीमार पड़ जाए तो हम दवाई ले लेते हैं लेकिन मन बीमार हो जाए तो उसको नापने की कोई मशीन नहीं है।
मन की समस्या और बीमारी है उसको दूर करना हो तो गुरुजनों के पास जाना होता है।

राजधानी के अंबेडकर अस्पताल के सभागृह में कबीर महोत्सव का आयोजन किया गया था

राजधानी के अंबेडकर अस्पताल के सभागृह में कबीर महोत्सव का आयोजन किया गया था

कबीर का बड़ा प्रभाव छत्तीसगढ़ में रहा है। कबीर की जुबानी है वह छत्तीसगढ़ के कण कण में बसा है इसीलिए सबसे ज्यादा कबीरपंथी हमारे छत्तीसगढ़ में हैं।यही कारण है की यहां के लोग कम चीजों में संतुष्ट होने वालों में से हैं और उनके जीवन में सरलता और सहजता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मंच से आगे कहा कि छत्तीसगढ़ को पहले नक्सलियों के नाम से जाना जाता था।लोग कोयला खदान या फिर अन्य खदानों के नाम से जानते थे। लेकिन छत्तीसगढ़ बहुत कुछ है यहाँ राम , बुद्ध , कबीर मिलेंगे विभिन्न संस्कृति और परम्पराओं का ज्ञान भरा पड़ा है, इसलिए हमारा दायित्व है जो छत्तीसगढ़ में है उसे दुनिया के सामने लाएं।

कबीर पंथ के लोग बड़ी संख्या में यहां मौजूद रहे

कबीर पंथ के लोग बड़ी संख्या में यहां मौजूद रहे

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कबीर का बड़ा प्रभाव छत्तीसगढ़ में रहा है और विभिन्न जाति के लोग कबीर पंथ को मानते हैं क्योंकि उस समय कबीर जी ने ही हमारी जो कुरीतियां हैं हमारे अंदर जो अंधविश्वास है उसको बहुत ही प्रखरता से चिन्हित किया और उन्होंने प्रेम का संदेश पूरे समाज को दिया।प्रेम और भाईचारा से ही हम लोग भारतीय समाज को बचा सकते हैं और कबीर का जो संदेश है वह ना केवल देश के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए है।कबीर को मानने वाले बड़ी संख्या में है और कबीर के जो आश्रम हैं उन्हें अनुदान भी दिया गया जिससे बहुत सारी उनकी जो जरूरतें थीं उस हिसाब से ही उन लोगों ने मांग की थी।