छत्तीसगढ़ः आरक्षण मसले पर भड़के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, बोले- अपना स्टैंड बदल रहीं राज्यपाल

रायपुर। राज्यपाल ने 14 दिन बीतने के बाद भी आरक्षण के विधानसभा से पारित प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इस पर अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की नाराजगी खुलकर सामने आई है। उन्होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि राज्यपाल की ओर से पहले कहा गया था कि वो फौरन हस्ताक्षर करेंगी। अब स्टैंड बदला जा रहा है। मुख्यमंत्री ने इस बात पर भी आपत्ति दर्ज कराई है कि विधानसभा से पारित किए जाने के बाद भी प्रस्ताव पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

तीन दिनों तक मुख्यमंत्री महासमुंद जिले में भेंट मुलाकात कार्यक्रम के बाद रायपुर लौटे। उन्होंने एयरपोर्ट पर आरक्षण मसले पर राजभवन की ओर से विभागों से किए जा रहे सवालों पर कहा- उन्हें वो अधिकार ही नहीं। राजभवन के विधिक सलाहकार हैं, गलत सलाह दे रहे हैं । पहले राज्यपाल ने कहा था कि जैसे ही विधानसभा से प्रस्ताव आएगा मैं हस्ताक्षर करूंगी। आरक्षण किसी एक वर्ग के लिए नहीं होता है। सारे नियम होते हैं क्या राजभवन को पता नहीं, विधानसभा से बड़ा है क्या कोई विभाग ?

CM ने तीखे अंदाज में कहा- विधानसभा से पारित होने के बाद किसी विभाग से जानकारी नहीं ली जाती। भाजपा के लोगों के इशारों पर राजभवन का खेल हो रहा है। राज्यपाल की ओर से स्टैंड बदलता जा रहा है। फिर कहती हैं कि केवल आदिवासियों के लिए बोली थी, आरक्षण सिर्फ उनका नहीं सभी वर्गों का है। आरक्षण की पूरी प्रक्रिया होती है।

विधानसभा में जो कुछ होता है राजभवन में सुनाई देता है
अपने बयान के दौरान मुख्यमंत्री ने ये भी बताया कि विधानसभा की सारी कार्रवाई एक स्पीकर के जरिए राजभवन में ट्रांसमीट की जाती है। वहां बैठे-बैठे अफसर या राज्यपाल पूरी कार्रवाई को सुन सकते हैं। सीएम ने कहा- विधानसभा की कार्यवाही सीधा राजभवन में सुनाई देती है। वहां स्पीकर लगा रहता है, क्या जब आरक्षण प्रस्ताव पारित हुआ तो सारी प्रकिया के बारे में जानकारी नहीं थी राजभवन को। भाजपा की कठपुतली की तरह राजभवन के अधिकारी उनके निर्देशों पर काम कर रहे हैं। ये प्रदेश के हित में नहीं है।

विवाद क्यों बढ़ा
2 दिसंबर को मंत्रियों ने विधानसभा में पास किया गया आरक्षण का प्रस्ताव राज्यपाल को दिया। उनके हस्ताक्षर के बाद प्रदेश में नई आरक्षण व्यवस्था लागू होगी। मगर अब राजभवन ने राज्य सरकार से वो आधार पूछा है, जिसके अनुसार 76 प्रतिशत आरक्षण व्यवस्था बनाई गई। बता दें कि 2 दिसंबर को विशेष सत्र में आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद से राज्यपाल विधि विशेषज्ञों से इस संबंध में चर्चा कर रहीं थी। उन्होंने हस्ताक्षर करने से पहले राज्य सरकार से 10 बिंदुओं पर जानकारी मांगी है। राजभवन सचिवालय की मानें तो इन 10 सवालों के जवाब आने के बाद ही आरक्षण विधेयक पर आगे कोई कार्रवाई हो सकेगी।

साइन से पहले राज्यपाल के सरकार से 10 सवाल

  • संशोधित विधेयक में क्रमांक 18-19 पारित करने के पूर्व अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के संबंध में मात्रात्मक विवरण (डाटा) संग्रहित किया गया था?
  • सुप्रीम कोर्ट में इंद्रा साहनी मामले के अनुसार 50 प्रतिशत से अधिक विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थतियों में ही आरक्षण दिया जा सकता है। अत: उक्त विशेष बाध्यकारी परिस्थिति का विवरण क्या है?
  • राज्य शासन ने हाईकोर्ट में 19 सितंबर 2022 को 8 सारणी में विवरण भेजा था, जिस पर कोर्ट ने कहा था कि ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं है, कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दिया जाए। इस निर्णय के बाद ऐसी क्या विशेष परिस्थिति उत्पन्न हो गई, जिसके कारण आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई?
  • सुप्रीम कोर्ट में इंद्रा साहनी के मामले में कहा गया था कि एससी-एसटी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए नागरिकों में आते हैं। इस संबंध में राज्य के एससी-एसटी व्यक्ति किस प्रकार पिछड़े हुए हैं?
  • मंत्री परिषद में महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्य के आरक्षण के प्रतिशत का उल्लेख है। इन राज्यों में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक किए जाने से पहले आयोग का गठन किया गया था। छत्तीसगढ़ में इसके लिए कौन सी कमेटी गठित की गई?
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने क्वांटिफाइबल डाटा आयोग के गठन का उल्लेख किया है, जिसकी रिपोर्ट शासन के पास है। यह रिपोर्ट राजभवन में प्रस्तुत क्यों नहीं की गई?
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने विभागीय प्रस्ताव अर्थात प्रस्तावित संशोधन के संबंध में शासन के विधि एवं विधायी कार्य विभाग का अभिमत अपेक्षित होना लिखा है। छत्तीसगढ़ लोक सेवा अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन में शासन के विधि एवं विधायी कार्य विभाग का क्या अभिमत है?
  • विधेयक में नवीन धारा स्थापित कर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 4 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने का प्रावधान किया गया है। क्या शासन को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए संविधान के अनुच्छेद 16(6) के तहत पृथक से अधिनियम लाना चाहिए था?
  • हाईकोर्ट में राज्य शासन ने बताया है कि एससी-एसटी के व्यक्ति कम संख्या में चयनित हो रहे हैं। ऐसे में यह बताएं कि एससी-एसटी राज्य की सेवाओं में क्यों चयनित नहीं हो रहे हैं?
  • एसटी को 32, ओबीसी को 27, एससी को 13, इस प्रकार कुल 72 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यह आरक्षण लागू करने से प्रशासन की दक्षता का ध्यान रखा गया और क्या इस संबंध में कोई सर्वेक्षण किया गया है?

अब आगे क्या…

  • राज्य सरकार जब इन 10 सवालों के जवाब राजभवन भेजेगा तो राज्यपाल विधि विशेषज्ञों से चर्चा करेंगी।
  • डाटा का परीक्षण किया जाएगा और संवैधानिक तौर पर तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र से इसकी तुलना होगी।
  • इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के आधार पर संशोधित विधेयक की जांच होगी।
  • विधि विशेषज्ञों से यह जानकारी जुटाई जाएगी कि क्या बिल को कोर्ट में चैलेंज तो नहीं कर पाएगा।

विधेयक पर बवाल की मुख्य वजह

  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिले 4 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, जबकि केंद्र ने आरक्षण व्यवस्था को 50 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत तक आरक्षण देने को कहा है।
  • ओबीसी का आरक्षण 16 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया गया।
  • एससी वर्ग का आरक्षण 16 से घटाकर 13 प्रतिशत कर दिया गया।

राज्यपाल बोलीं मैंने सिर्फ आदिवासियों के लिए कहा था
राज्यपाल अनुसूईया उइके अन्य पिछड़ा वर्ग-OBC वर्ग को दिये गये 27% आरक्षण की वजह से आरक्षण विधेयकों पर हस्ताक्षर करने से हिचक रही हैं। राज्यपाल ने मीडिया से बातचीत में कहा, मैंने केवल आदिवासी वर्ग का आरक्षण बढ़ाने के लिए सरकार को विशेष सत्र बुलाने का सुझाव दिया था। उन्होंने सबका बढ़ा दिया। अब जब कोर्ट ने 58% आरक्षण को अवैधानिक कह दिया है तो 76% आरक्षण का बचाव कैसे करेगी सरकार।

धमतरी पहुंची राज्यपाल अनुसूईया उइके ने रेस्ट हाउस में मीडिया से बात की। आरक्षण विधेयक को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, हाईकोर्ट ने 2012 के विधेयक में 58% आरक्षण के प्रावधान को अवैधानिक कर दिया था। इससे प्रदेश में असंतोष का वातावरण था। आदिवासियों का आरक्षण 32% से घटकर 20% पर आ गया। सर्व आदिवासी समाज ने पूरे प्रदेश में जन आंदोलन शुरू कर दिया। सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों ने आवेदन दिया। तब मैंने सीएम साहब को एक पत्र लिखा था। मैं व्यक्तिगत तौर पर भी जानकारी ले रही थी। मैंने केवल जनजातीय समाज के लिए ही सत्र बुलाने की मांग की थी।