बिलासपुर। यातायात और स्वास्थ्य विभाग ने स्कूल बसों और ड्राइवर-हेल्परों की फिटनेस जांच में गंभीर लापरवाही बरती है। जहां आरटीओ ने बसों को सिर्फ चालू कराकर फिटनेस सर्टिफिकेट दे दिया वहीं स्वास्थ्य विभाग ने आंख और कान की जांच किए बगैर ही ड्राइवर हेल्परों को तंदुरूस्त बता दिया है। सवाल यह उठता है कि क्या इतनी सी जांच से घर से स्कूल पहुंचने वाले हजारों बच्चों की जान महफूज है। नियम की बात करें तो वाहनों को चलाकर प्रदूषण की जांच के साथ ही कल पुर्जों को बारीकी से परखने के बाद ही फिटनेस दिया जा सकता है। ड्राइविंग और हेल्पर के लिए आंख और कान की सजगता जरूरी है।
आरटीओ ने पहले से लाए फिटनेस प्रमाण पत्र को मान लिया आधार
समय रविवार सुबह 11 बजे। स्थान पुलिस मैदान। पुलिस, यातायात व आरटीओ की तीन सदस्यीय टीम स्कूल बसों में चढ़कर महज एक मिनट रुक रही थी। फिर दूसरी- तीसरी बस। ऐसा करते-करते दोपहर के 1.30 बज गए और 158 बसों की जांच पूरी हो गई। इसमें से 118 को पास कर दिया गया, जबकि 40 को फेल। अगर 11 से 1.30 बजे को मिनट में गिना जाए तो 150 मिनट होते हैं। यानी कि महज एक मिनट में बसों को फिट और अनफिट करार दिया गया है, जबकि स्कूल बसों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जो 16 बिंदु निर्धारित किए हैं, उसे देखने में ही 10 से 15 मिनट लग सकते हैं। टीम ने ये निर्णय बस चालकों के पास पहले से मौजूद फिटनेस प्रमाण पत्र को आधार मानकर दिया है।
संयुक्त टीम में टीआई प्रशांत शर्मा, पारुल ठाकुर व रवि शर्मा शामिल रहे। टीम के सदस्य बस के दरवाजे चढ़कर अंदर का दृश्य देखते थे और इस बीच बसों को चालू कराकर रखा जाता था। फिर एक मिनट में एक बस से उतर कर दूसरी बस की जांच की जाती रही। जांच टीम के अनुसार उन्होंने बसों के अंदर बैठक व्यवस्था, हार्न, प्रेशर ब्रेक, अग्नि शमन यंत्र , आदि की जांच की है।
स्वास्थ्य विभाग की टीम सिर्फ ब्लड प्रेशर और शुगर टेस्ट करती रही
स्वास्थ्य विभाग ड्राइवरों और हेल्परों की स्वास्थ्य जांचने आधी-अधूरी टीम लेकर पहुंची थी। टीम सुबह 11 से दोपहर 1 बजे तक ड्राइवर-हेल्परों की बीपी और शुगर टेस्ट करती रही। जब आंख-कान जांच की व्यवस्था नहीं होने पर ड्राइवर-हेल्पर लौटने लगे और कुछ लोगों ने हंगामा किया तो आनन-फानन में एक अंटेडर को बुलवाकर आंख-कान की औपचारिक जांच कराई गई। अंटेडर को जिनकी आंख-कान कमजोर लगी, उनकी आंख-कान में ड्राॅप डलवाकर विदा कर दिया गया।
स्वास्थ्य विभाग की ओर हम क्लीनिक की टीम को भेज दिया गया था। वाहन चलाने के लिए ड्राइवर-हेल्पर के आंख-कान का दुरुस्त होना बहुत जरूरी है, क्योंकि आंखों के कमजोर होने पर सामने चल रहे वाहन धुंधला दिखाई देता है। आंखों का कलर बैंड होने पर चौक-चौराहों में लगे सिग्नल की लाइटों का रंग पहचान में नहीं आता। वहीं कान कमजोर होने से ठीक से सुनाई नहीं देती। यानी कि जिस ड्राइवर का कान कमजोर है, उसे पीछे से आ रहे वाहनों का हार्न भी नहीं सुनाई देगा। आंख या कान दोनों में से कोई भी कमजोर है तो एक्सीडेंट का खतरा हर समय बना रहता है।
बिना मेडिकल जांच कराए 99 बसों के ड्राइवर-हेल्पर लौट गए
आरटीओ ने कुल 158 बसों की जांच करने का दावा किया है। यानी कि इनके ड्राइवर-हेल्पर की संख्या 316 है। इधर, स्वास्थ्य विभाग 118 लोगों की जांच करने की बात कह रहा है। मतलब कि उन्होंने 59 बसों के ही ड्राइवर-हेल्परों की जांच की है। शेष 99 बसों के ड्राइवर और हेल्पर बिना कराए ही लौट गए हैं। दरअसल, मौके पर स्वास्थ्य विभाग की पर्याप्त टीम नहीं थी। इसलिए इन ड्राइवर-हेल्परों ने जांच की औपचारिता से गुजरना मुनासिब नहीं समझा।
अनफिट करने का ये हैं कारण
संयुक्त टीम ने जिन 40 बसों को अनफिट करार दिया है, उसमें से 4 बसों का फिटनेस प्रमाण पत्र एक्सपायर हो चुका है। 2 का बीमा नहीं है। 12 बसों में पीयूसी नहीं है। 4 में सीसीटीवी नहीं, 9 का फायर एक्सपायर हो चुका है, जबकि दो बसों में प्रेशन हार्न नहीं है।
ड्राइवर-हेल्परों की फिटनेस जांच के लिए बनी थी टीम
“स्कूल बस चलाने वालों के बॉडी फिटनेस की जांच के लिए टीम बनाने निर्देश दिया गया था। वाहन चालकों की बीपी शुगर के अलावा आंख, कान की जांच करने वाले होने चाहिए थे। किसकी ड्यूटी थी, यह जानकारी ली जाएगी।”
-डॉ अनिल श्रीवास्तव, सीएमएचओ, बिलासपुर
“सभी बसों को चलाकर देखने के बाद ही फिटनेस देने के लिए कहा गया था। जांच के दौरान बसों को चलाया भी गया है।”
-अमित बेक, आरटीओ, बिलासपुर