रायपुर I छत्तीसगढ़ विधानसभा की शुक्रवार को ऐतिहासिक बैठक होने जा रही है। विशेष सत्र के दूसरे दिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए आरक्षण का नया अनुपात तय करने वाला विधेयक पेश करने वाले हैं। इसी के साथ विधानसभा एक संकल्प भी पारित करने जा रहा है। इसमें केंद्र सरकार से आग्रह किया जाएगा कि वे आरक्षण कानून को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल कर लें।
तय योजना के मुताबिक शुक्रवार को कार्यवाही के दूसरे हिस्से में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक 2022 को पेश करेंगे। इसके साथ ही शैक्षणिक संस्था (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक को भी पेश किया जाना है। सत्ता पक्ष और विपक्ष की चर्चा के बाद इन विधेयकों को पारित कराने की तैयारी है। राज्य कैबिनेट ने इन विधेयकों को प्रारूप को 24 नवम्बर को हुई बैठक में मंजूरी दी थी। इन दोनों विधेयकों में आदिवासी वर्ग-ST को 32%, अनुसूचित जाति-SC को 13% और अन्य पिछड़ा वर्ग-OBC को 27% आरक्षण का अनुपात तय हुआ है। सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% आरक्षण देने का भी प्रस्ताव है। इसको मिलाकर छत्तीसगढ़ में 76% आरक्षण हो जाएगा।
19 सितम्बर तक प्रदेश में 68% आरक्षण था। इनमें से अनुसूचित जाति को 12%, अनुसूचित जनजाति को 32% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण के साथ सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 10% आरक्षण की व्यवस्था थी। 19 सितम्बर को आए बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खत्म हो गया। उसके बाद सरकार ने नया विधेयक लाकर आरक्षण बहाल करने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गुरुवार को भानुप्रतापपुर की चुनावी सभा में कहा, भाजपा ने कभी OBC को आरक्षण का फायदा नहीं दिया। भाजपा की गलती की वजह से आरक्षण कानून निरस्त हुआ। उनकी सरकार अब नया कानून बनाकर SC-ST वर्गों को उनकी आबादी के अनुपात में, OBC को मंडल आयोग की सिफारिश के मुताबिक और EWS को संसद के मुताबिक आरक्षण देने जा रही है।
संयुक्त विपक्ष लाएगा आरक्षण अनुपात बढ़ाने का प्रस्ताव
आरक्षण के नये कोटे से SC वर्ग नाराज है। संयुक्त विपक्ष को इसमें राजनीतिक मौका नजर आ रहा है। एक दिन पहले जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को एक पत्र लिखा। उनका सुझाव था, अनुसूचित जाति को 16%, अनुसूचित जनजाति को 32% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण मिले। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों यानी EWS को 10% आरक्षण मिले और उसमें भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए भी आरक्षण का प्रावधान हो। छत्तीसगढ़ के मूल निवासियों को 100% आरक्षण का प्रावधान किया जाये। गुरुवार को विधानसभा परिसर में बसपा और भाजपा भी ऐसी ही मांग के साथ आ गए। नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल ने कहा, सरकार इस विधेयक का राजनीतिक फायदा लेना चाहती है। हम संशोधन के बाद ही विधेयक को समर्थन करेंगे।
विधेयक पारित हुआ तो संकल्प आएगा
दोनों विधेयकों के पारित होने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विधानसभा में एक शासकीय संकल्प भी पेश करने वाले हैं। इसमें केंद्र सरकार से आग्रह किया जाना है कि वह छत्तीसगढ़ के दोनों आरक्षण कानूनों को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए आवश्यक कदम उठाए। संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल विषयों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती। यानी सामान्य तौर पर इसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
4,337 करोड़ का अनुपूरक बजट भी आएगा
इससे पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस वित्तीय वर्ष का दूसरा अनुपूरक बजट पेश करने वाले हैं। यह बजट चार हजार 337 करोड़ 75 लाख 93 हजार 832 करोड़ का हाेगा। इस अनुपूरक बजट को शुक्रवार को ही पारित किया जाना है।
विधेयक पारित होते ही आरक्षण नहीं मिलेगा
- अगर राज्यपाल इस विधेयक पर तुरंत हस्ताक्षर कर दें और अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित हो जाए तो उस दिन से यह लागू हो जाएगा।
- अगर सरकार इस कानून पर अनुच्छेद (31ग) के तहत राष्ट्रपति की सम्मति चाहे, तो राज्यपाल के अनुच्छेद 201 के अधीन कार्रवाई के बाद (केंद्र द्वारा कानूनी सलाह लेने समेत) चरणबद्ध प्रक्रिया पूरा होने तक इंतजार करना होगा।
- नवीं अनुसूची में शामिल कराना चाहे तो संविधान संशोधन अधिनियम पारित करने की चरणबद्ध प्रक्रिया पूर्ति के लिए और भी लंबा इंतजार करना होगा।
- यह प्रक्रिया पूरी होने तक राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के अधीन विधेयक पर हस्ताक्षर के साथ ही अधिनियमों की वैधता को हाई कोर्ट में कोई भी चुनौती दे सकता है। ऐसे में इस कानून को लागू करने पर स्टे भी मिल सकता है।
नये विधेयकों के साथ कानूनी अड़चने भी जुड़ी हैं
संविधानिक मामलों के विशेषज्ञ बी.के. मनीष का कहना है, सरकार जो विधेयक ला रही है, वह उसका अधिकार है, लेकिन उसके साथ कई कानूनी अड़चने हैं जो इसे कानूनी लड़ाई में फंसा सकती हैं। सबसे पहली बात यह कि अधिनियमों में सिर्फ जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यह 1992 में आए मंडल फैसले और 2022 में ही आए पीएमके (तमिलनाडु) बनाम माईलेरुमपेरुमाल फैसले का उल्लंघन है। OBC को 27% आरक्षण देने का फ़ैसला 42 साल पुरानी मंडल आयोग की केंद्र शासन अधीन सेवाओं पर दी गई सिफारिश पर आधारित है। यह भी 2021 में आए मराठा आरक्षण फैसले का उल्लंघन है। कुल आरक्षण का 50% की सीमा से बहुत अधिक होना भी एक बड़ी पेचीदगी है। अनुसूचित क्षेत्र को इस बार विशिष्ट परिस्थिति के तौर पर पेश किया गया लेकिन श्रेणी 1-2 की नौकरियों में अनुसूचित क्षेत्रों की कोई अलग हिस्सेदारी ही नहीं है। यह 1992 के मंडल फैसले का उल्लंघन है। प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आंकड़े विभाग-श्रेणीवार जमा किए गए हैं न कि कॉडर-वार। यह भी मंडल फैसले और 2022 के जरनैल सिंह फैसले का उल्लंघन है।