नईदिल्ली I सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका पर बुधवार को अहम सुनवाई की है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के प्रति कड़ा रुख अपनाया. सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि चुनाव आयुक्त को प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई कदम उठाना हो लेकिन आयुक्त कमजोर होगा तो वो कोई कदम ही नहीं उठा पाएगा.
जस्टिस जोसेफ ने कहा ‘मैं यहां काल्पनिक तौर पर सिर्फ उदाहरण के लिए पीएम की बात कह रहा हूं. आयुक्त को स्वतंत्र, निष्पक्ष होना चाहिए. इसके लिए ज़रूरी है कि उनका चयन सिर्फ कैबिनेट के बजाए उससे कहीं ज़्यादा बड़ी बॉडी की ओर से हो. राजनीतिक नेता बातें तो करते रहे हैं, पर ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ.’ जस्टिस केएम जोसफ ने कहा कि अगर कोई कदम नहीं उठाया जाता है तो क्या यह सिस्टम के पूरी तरह से बिखरने का मामला नहीं होगा?
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि सीजेआई सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में शामिल हैं. वहां लोकतंत्र को कहां से खतरा है. हमारी अदालतों ने फैसले दिए हैं और उन्हें कार्यपालिका ने स्वीकार किया है.
सरकार यस मैन को नियुक्त करती है: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस जोसेफ ने कहा कोई भी सरकार एक यस मैन को नियुक्त करती है और उसके जैसी सोच होती है. आप उसे सुरक्षा का आश्वासन देते हैं, देखने में तो सब ठीक है लेकिन जो क्वालिटी की कमी है उसका क्या, उसके कार्यों की स्वतंत्रता है या नहीं? पद के साथ कुछ स्वतंत्रता जुड़ी हुई है. यह वह गुण है जिसकी आवश्यकता है. दरअसल, केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कोलेजियम जैसी व्यवस्था कायम करने की मांग वाली याचिका का विरोध किया है.
यह कानूनी प्रक्रिया के तहत होता है: सरकार
इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा हां, बिल्कुल यह एक आवश्यकता है. लेकिन यह एक विचार प्रक्रिया है. 1991 के बाद मुझे कोई ट्रिगर पॉइंट नहीं मिल रहा है कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. जस्टिस जोसेफ ने कहा कि 2017 में सुनील अरोड़ा की नियुक्ति को देखिए. जवाब में एजी ने कहा कि जिस व्यक्ति को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया है, उसे वरिष्ठता के आधार पर मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नामित किया जा सकता है.
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने संविधान पीठ से कहा कि सवाल ये है कि कौन व्यवस्था में बदलाव कर सकता है. इसका जवाब ये है कि राष्ट्रपति नियुक्ति करते हैं, जो चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर आधारित होती है. यह कानूनी प्रक्रिया के तहत होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति का चरित्र विभिन्न मानकों से समाहित होता है. इन्हीं में से एक मानक है स्वतंत्रता. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि कैसे एक चुनाव आयुक्त ने इस्तीफा दे दिया था. हालांकि कोर्ट ने इस दौरान किसी का नाम नहीं लिया. उसकी ओर से यह बात कही गई कि मुख्य बिंदु यह है कि नियुक्ति प्रक्रिया की प्रणाली में सिर्फ केंद्रीय कैबिनेट के जरिये नाम तय कर लेने की अपेक्षा लार्जर बॉडी की जरूरत होती है.