नईदिल्ली I चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के रिटायरमेंट की उम्र एक समान करने की जरूरत बताई है. जस्टिस ललित ने कहा कि उनको उम्मीद है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली में जो बदलाव किया वह जारी रहेगा क्योंकि इस बदलाव में सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों की सहमति है.
जस्टिस ललित अपने कार्यकाल के आखिरी दिन कोर्ट कवर करने वाले पत्रकारों से चाय पर मुलाकात के दौरान बात कर रहे थे. सीजेआई ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में जनसंख्या सिद्धांत (आबादी के आधार पर) का पालन किया जाए तो सुप्रीम कोर्ट में 150 जज होंगे. सीजेआई जस्टिस यूयू ललित मंगलवार को रिटायर हो रहे हैं. बुधवार को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ नए सीजेआई बनेंगे.
सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली में किए बदलाव की जारी रहने की उम्मीद
जस्टिस ललित ने कहा कि उनको उम्मीद है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली में जो बदलाव किया वह जारी रहेगा, क्योंकि इस बदलाव में सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों की सहमति है. जस्टिस ललित ने कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान सरकार से सम्बंध सौहार्द्रपूर्ण रहे. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने 74 दिन के अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण फैसले दिए और कार्यवाही के सीधे प्रसारण और मामलों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया में बदलाव जैसे कदमों की शुरुआत की. वह न्यायपालिका के ऐसे दूसरे प्रमुख रहे जिन्हें बार से सीधे उच्चतम न्यायालय की पीठ में पदोन्नत किया गया.
नौ नवंबर, 1957 को जन्मे न्यायमूर्ति ललित को 13 अगस्त, 2014 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और उन्होंने 27 अगस्त, 2022 को 49वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में शपथ ली थी। आठ नवंबर उनके कार्यकाल का अंतिम दिन है. न्यायमूर्ति ललित देश के दूसरे ऐसे प्रधान न्यायाधीश हैं, जो बार से सीधे उच्चतम न्यायालय की पीठ में पदोन्नत हुए। उनसे पहले न्यायमूर्ति एस. एम. सीकरी मार्च 1964 में शीर्ष अदालत की पीठ में सीधे पदोन्नत होने वाले पहले वकील थे. वह जनवरी 1971 में 13वें सीजेआई बने थे. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं.
प्रधान न्यायाधीश के कार्यकाल के अंतिम दिन उनके नेतृत्व वाली संविधान पीठ ने 3 : 2 के बहुमत से, सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर तबके (ईडब्ल्यूएस) से संबंधित लोगों को दाखिलों और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले 103 वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा और कहा कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.