जगदलपुर। दशहरे की रात एक तरफ जहां देश के अलग-अलग जगहों पर रावण का दहन किया जाता है तो वहीं बस्तर में रथ की परिक्रमा करवाई जाती है। बुधवार की रात आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के छत्र को 8 चक्कों वाले विजय रथ पर विराजित कर रथ की नगर परिक्रमा करवाई गई। सैकड़ों लोगों ने मिलकर 2 मंजिला रथ को खींचा। जिसके बाद आधी रात को 55 गांव के ग्रामीणों ने रथ की चोरी कर भीतर रैनी की रस्म अदा की। आज राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव (राजा) इस रथ को ग्रामीणों के कब्जे से लेने जाएंगे। यह परंपरा करीब 610 सालों से चली आ रही है।
दशहरे में उमड़ी लोगों की भीड़।
दरअसल, किलेपाल, करेकोट, गड़िया समेत 55 गांव के लोगों ने भीतर रैनी की रस्म अदा की है। जगदलपुर में स्थित राज महल के मुख्य द्वार के सामने से 8 चक्के वाले दो मंजिला विजय रथ को चुराकर कुम्हडाकोट गांव के जंगल में लेकर गए हैं। जहां पेड़ों के नीचे रथ को छिपाकर रखा गया है।आज इस रथ को ग्रामीणों से वापस लेने के लिए राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव जाएंगे। फिर यहां पहले नए फसल के अनाज को ग्रामीणों के साथ पकाने के बाद इसे खाएंगे। नवाखाई की रस्म अदा करेंगे।
रथ की नगर परिक्रमा करवाई गई।
गुरुवार को ग्रामीणों से रथ वापस लेकर वे देर शाम तक राज महल लौटेंगे। रथ चोरी करने की परंपरा को भीतर रैनी और जब राजा रथ को वापस लेकर आते हैं तो इस परंपरा को बाहर रैनी कहा जाता है। हालांकि, बदलते वक्त के साथ बस्तर के गांवों की तस्वीरें जरूर बदली है। लेकिन, बस्तर दशहरा की रस्म सदियों से वैसे ही चली आ रही है। आज के आधुनिक दौर में भी सदियों से चली आ रही परंपरा के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं किया गया है। यह वजह है कि 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा आज विश्व प्रसिद्ध है।