मुरली श्रीशंकर – फोटो : सोशल मीडिया
बर्मिंघम। राष्ट्रमंडल खेलों में मुरली श्रीशंकर ने सातवें दिन इतिहास रच दिया। उन्होंने पुरुषों के लॉन्ग जंप के फाइनल में देश के लिए रजत पदक जीता। भारत को 12 साल बाद इस खेल में पदक मिला है। वहीं, लॉन्ग जंप में 44 साल बाद किसी पुरुष ने पदक जीता है। मुरली लॉन्ग जंप में राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतने वाले दूसरे भारतीय पुरुष और रजत पदक जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष एथलीट हैं। उनसे पहले 1978 में सुरेश बाबू ने इस खेल में कांस्य जीता था। महिलाओं में 2002 में अंजू बॉबी और 2010 में प्रज्यूषा मलाइखल भी लॉन्ग जंप में पदक जीत चुकी हैं। अंजू बॉबी जॉर्ज ने कांस्य और प्रज्यूषा ने रजत पदक जीता था।
23 साल के मुरली श्रीशंकर इस साल शानदार फॉर्म में हैं। अप्रैल में फेडरेशन कप के फाइनल में उन्होंने 8.36 मीटर लंबी जंप के साथ राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था। इसी के साथ उन्होंने राष्ट्रमंडल खेल 2022 में भी जगह बनाई थी। वह लॉन्ग जंप में विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2022 के फाइनल में जगह बनाने वाले पहले भारतीय पुरुष हैं। फेडरेशन कप में कमाल करने के अलावा श्रीशंकर ने ग्रीस में 8.31 मीटर लंबी जंप लगाई थी।
2018 में पथरी की वजह से नहीं ले पाए थे भाग
साल 2018 में श्रीशंकर पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने वाले थे, लेकिन उन्हें पथरी की समस्या हो गई थी और प्रतियोगिता से सिर्फ 10 दिन पहले उन्हें अपना नाम वापस लेना पड़ा था। इसके बाद 2018 में ही उन्होंने पटिलाया में हुई फेडरेशन कप सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 7.99 मीटर लंबी छलांग लगाकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। इसी साल उन्होंने 8.20 मीटर लंबी छलांग लगाकर राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था। इस प्रतियोगिता में भी उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था।
पिता भी रहे हैं एथलीट
श्रीशंकर के पिता एस. मुरली ही उनके कोच हैं। श्रीशंकर का कहना है कि उनके शरीर को उनके पिता उनसे बेहतर समझते हैं। श्रीशंकर के पिता पूर्व ट्रिपल जंप एथलीट थे और दक्षिण एशियाई खेलों में रजत पदक विजेता रहे हैं। 1992 एशियाई जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उनकी मां के.एस. बिजिमोल 800 मीटर रेस में रजत पदक जीती थीं।
श्रीशंकर के पिता मुरली एक समय पर शराब के शौकीन थे, लेकिन बेटे के खेल पर ध्यान देने के लिए उन्होंने इससे दूरी बना ली। टोक्यो ओलंपिक में श्रीशंकर के फेल होने के बाद मुरली ने ही अपने बेटे को संभाला था। उस समय श्रीशंकर काफी दबाव में थे और डिप्रेशन में भी चले गए थे। वह खेल छोड़कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहते थे। ऐसे में उनके पिता ने उन्हें संभाला और अब श्रीशंकर ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया।