31 मार्च 2026 से पहले होगा नक्सलवाद खत्म; शाह की गारंटी को पूरा करने में जुटे सशस्त्र बल, अब सरेंडर या गोली ही विकल्प

Naxalism will end in 375 days forces are busy in fulfilling Amit Shah guarantee option is surrender or bullet

नई दिल्ली । केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में अहम घोषणा करते हुए कहा कि 31 मार्च 2026 से पहले देश के सभी हिस्सों से नक्सलवाद पूरी तरह खत्म हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने का संकल्प लिया है। 375 दिन में नक्सली खत्म, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की इस गारंटी को पूरा करने में सीआरपीएफ, डीआरजी, एसटीएफ, बीएसएफ और आईटीबीपी के जवान जुट गए हैं।

हालांकि, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में प्रमुख जगहों पर सीआरपीएफ और इसकी विशेष इकाई ‘कोबरा’ ही माओवादियों से लोहा ले रही है। इन बलों ने ऐसी रणनीति बनाई है, जिसमें नक्सलियों के पास दो ही विकल्प, ‘सरेंडर’ करो या ‘गोली’ खाओ, बचे हैं। अब ऐसा कोई इलाका नहीं बचा है, जहां सुरक्षा बलों की पहुंच न हो। वे महज 48 घंटे में ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ स्थापित कर आगे बढ़ रहे हैं। अब नक्सलियों के लिए जंगलों में अधिक दूरी तक पीछे भागना भी संभव नहीं हो रहा। उनकी सप्लाई चेन कट चुकी है। नक्सलियों की नई भर्ती तो पूरी तरह बंद हो चुकी है। इतना ही नहीं, घने जंगलों में स्थित नक्सलियों के ट्रेनिंग सेंटर भी तबाह किए जा रहे हैं।

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सुरक्षा बलों की ताबड़तोड़ कार्रवाई

आगामी 375 दिनों में नक्सलवाद खत्म हो जाएगा, गृह मंत्री की इस मुहिम का असर दिखने लगा है। घने जंगल में और नक्सलियों के गढ़ में पहुंचकर सीआरपीएफ व दूसरे बलों के जवान 48 घंटे में ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ स्थापित कर रहे हैं। अब इसी एफओबी के चक्रव्यूह में फंसकर नक्सली मारे जा रहे हैं। सुरक्षा बलों ने ऐसा जाल बिछाया है कि जिसमें नक्सलियों के पास दो ही विकल्प बचते हैं। एक, वे सरेंडर कर दें और दूसरा, सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में गोली खाने के लिए तैयार रहें। नक्सलियों के गढ़ में अभी तक 290 से ज्यादा कैंप स्थापित किए जा चुके हैं। 2024 में 58 कैंप स्थापित हुए थे। इस वर्ष 88 कैंप यानी एफओबी स्थापित किए जाने के प्रस्ताव पर काम शुरु हो चुका है। ये कैंप नक्सल के किले को ढहाने में आखिरी किल साबित हो रहे हैं। जिस तेजी से ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ स्थापित हो रहे हैं, उससे यह बात साफ है कि तय अवधि में नक्सलवाद को खत्म कर दिया जाएगा। सुरक्षा बल, नक्सलियों के गढ़ में जाकर उन्हें ललकार रहे हैं। 

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सुरक्षा बलों की ताबड़तोड़ कार्रवाई

इस साल जनवरी में ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर क्षेत्र, गरियाबंद में  ऑपरेशन ग्रुप ई30, सीआरपीएफ कोबरा 207, सीआरपीएफ 65 एवं 211 बटालियन और एसओजी (स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप) की संयुक्त पार्टी के साथ हुई एक बड़ी मुठभेड़ में 16 नक्सली मारे गए थे। भारी संख्या में हथियार और गोला बारूद बरामद हुआ। उस ऑपरेशन में एक करोड़ रुपये का इनामी नक्सली जयराम चलपती भी ढेर हुआ था। फरवरी में बीजापुर के नेशनल पार्क इलाके में हुई मुठभेड़ में 29 नक्सली मारे गए थे।

20 मार्च को बस्तर संभाग के चार जिलों के बॉर्डर पर दो मुठभेड़ में 30 नक्सली मारे गए हैं। इस वर्ष 130 नक्सली ढेर हो चुके हैं। सुरक्षा बलों के ऑपरेशन में शामिल अधिकारी बताते हैं, अब नक्सलियों के सामने दो ही रास्ते बचे हैं। वे सरेंडर कर दें या मरने के लिए तैयार रहें। 

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सुरक्षा बलों की ताबड़तोड़ कार्रवाई

सुरक्षा बलों ने नक्सलियों का हर वो ठिकाना ढूंढ निकाला है, जो अभी तक एक पहेली बना हुआ था। उनके स्मारक गिराए जा रहे हैं। ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ या कैंप स्थापित होने के कारण एक चक्रव्यूह बनता जा रहा है। इसी में नक्सली फंसते जा रहे हैं। जंगल में सुरक्षा बल चारों तरफ से घेरा डालकर आगे बढ़ रहे हैं। एक एफओबी को स्थापित करने में दो या तीन दिन लगते हैं। भले ही जवानों को टैंट या कच्चे में रहना पड़े, मगर वे आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। एक माह बाद ही नए कैंप का ले आउट प्लान तैयार हो जाता है। ऐसे में नक्सली, जंगल में कहां तक पीछे भागेंगे। उनकी हर तरह की सप्लाई चेन, मसलन रसद, दवाएं, राशन और मुखबिरी, सब खत्म होती जा रही हैं। उनके ट्रेनिंग कैंप तबाह किए जा रहे हैं। नतीजा, अब नई भर्ती प्रारंभ नहीं हो पा रही है। इतना ही नहीं, अब नक्सलियों की ट्रेनिंग के लिए न तो जगह बची है और न ही युवक।   

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सुरक्षा बलों की ताबड़तोड़ कार्रवाई

कोबरा व सीआरपीएफ के सहयोग से सुरक्षा बलों ने विभिन्न राज्यों के नक्सल प्रभावित इलाकों में 290 से अधिक नए शिविर खोले हैं। महज दस पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर दो-दो सुरक्षा कैंप या ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ स्थापित किए जा रहे हैं। इस स्थिति में नक्सलियों की कमर टूट रही है। पहले नक्सलियों द्वारा बटालियन को साथ लेकर सुरक्षा बलों पर हमला बोला जाता था। उसके बाद वे कंपनी पर सिमट गए। अब कंपनी की बजाए नक्सली एक छोटी सी टीम तक सिमटते जा रहे हैं। जंगल में ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ स्थापित करना आसान काम नहीं होता। इस काम में आईईडी ब्लास्ट, यूबीजीएल (अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर) अटैक या नक्सली हमले का जोखिम सदैव बना रहता है। सीआरपीएफ द्वारा जहां पर कैंप स्थापित किया जाता है, उससे पहले वहां कोई नहीं होता। लोकल मशीनरी और पुलिस, 

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CAPF – फोटो : ANI

सीआरपीएफ के साथ ही कैंप साइट पर पहुंचती है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले जंगल के कुछ हिस्से को साफ कर कैंप के लिए उपयुक्त जगह तैयार की जाती है। कैंप तक पहुंचने वाले रूट को कई किलोमीटर तक सेनेटाइज कर दिया जाता है। इसके बाद ही जेसीबी अपना काम शुरु करती है। कैंप के चारों तरफ कई फुट चौड़ी खाई खोदी जाती है। उसके बाद कंटीली तार लगाते हैं। अगर मौसम खराब है तो भी जवान इस काम को तय समय सीमा में ही पूरा करते हैं। दूसरा चरण टैंट लगाने का होता है। कुछ दिनों बाद पोटा केबिन बनते हैं। नक्सलियों के चलते आसपास की सड़कें पहले से ही क्षतिग्रस्त रहती हैं, ऐसे में जरुरत का सामान भी सीआरपीएफ व दूसरे सुरक्षा बलों के जवान ही कैंप तक ले जाते हैं। 

बरसात में राशन, डीजल या गैस सिलेंडर, कई फुट पानी और दलदल में मैस तक यह सप्लाई जवानों द्वारा ही की जाती है। ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ तैयार होने के दौरान, सीआरपीएफ अधिकारी और जवान, ग्रामीणों का हाल जानने के लिए उनके पास पहुंचते हैं। उन्हें जरुरत का सामान मुहैया कराते हैं। एक अधिकारी के मुताबिक, नक्सलियों द्वारा इन इलाकों में ग्रामीणों को डरा धमका कर रख जाता है। गांव के लोगों तक केंद्र एवं राज्य सरकार की योजनाएं नहीं पहुंचने दी जाती। नक्सलियों के भय के चलते लोकल प्रशासन भी उन तक नहीं पहुंच पाता। सीआरपीएफ जवान, ग्रामीणों का इलाज करते हैं, उन्हें निशुल्क दवाएं मुहैया कराते हैं। बच्चों को कापी किताबें देते हैं। कई जगहों पर टैंटों या गांव के स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम भी सीआरपीएफ करती है। 

सीआरपीएफ द्वारा स्थापित किए जा रहे नए कैंपों में ग्रामीणों की सुविधा के लिए चिकित्सा मदद डेस्क स्थापित किए गए हैं। प्रत्येक कैंप में आपातकालीन स्थिति के दौरान नाइट लैंडिंग फेसीलिटी की सुविधा रहती है। इसका मकसद, नक्सली हमले के दौरान घायलों को त्वरित उपचार एवं राहत मुहैया कराना है। आठ नाइट लैंडिंग का काम पूरा हो चुका है, जबकि पांच साइट का कार्य प्रगति पर है। मोबाइल टावर भी कैंप के आसपास लगाए जाते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि सीआरपीएफ सुरक्षा में नक्सली, इन टावरों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते।