नई दिल्ली। संसद में राहुल गांधी ने बतौर नेता प्रतिपक्ष, जिस तरह से अग्निवीर भर्ती का मुद्दा उठाया, उसके बाद से ही केंद्र सरकार अतिरिक्त सक्रियता दिखा रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान व उससे पहले भी राहुल ने सेना भर्ती की ‘अग्निपथ योजना’ का विरोध किया था। हालांकि तब सरकार की तरफ से उनके बयान पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आती थी। कांग्रेस नेता इस बात को मानते हैं कि राहुल द्वारा अग्निपथ योजना में कमियां गिनाए जाने के बाद केंद्र सरकार बैकफुट पर है। कांग्रेस पार्टी के पूर्व सैनिक विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष कर्नल रोहित चौधरी मानते हैं कि यह राहुल गांधी का ही प्रेशर रहा है कि अग्निवीर के पक्ष में सरकार को एकाएक रक्षा मंत्री, सैन्य अधिकारी और तीन केंद्रीय बलों के आईपीएस डीजी उतारने पड़ गए। राहुल कह चुके हैं कि इंडिया गठबंधन की सरकार में इस योजना को खत्म कर दिया जाएगा। अब राहुल गांधी ने युवाओं से जुड़ा दूसरा मुद्दा भी उठा लिया है। वे आगामी संसद सत्र में ‘बेरोजगारी का एपिसेंटर’ तोड़ते हुए नजर आएंगे। इस मुद्दे पर वे न केवल केंद्र सरकार, बल्कि भाजपा शासित राज्यों की सरकारों को भी घेरते हुए दिखाई पड़ेंगे।
राहुल गांधी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान अग्निवीर सहित कई मुद्दों को प्रमुखता से उठाया था। उन्होंने कहा, अग्निवीर, लैंडमाइन ब्लास्ट में शहीद होता है, तो मैं उसे शहीद कह रहा हूं, मगर भारत सरकार उसे शहीद नहीं कह रही है। एक शहीद को पेंशन मिलेगी और शहीद का दर्जा भी मिलेगा, दूसरे को यह सब नहीं मिलेगा। हालांकि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने राहुल की इस बात पर कहा था कि वे गलत बयानबाजी कर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अग्निवीरों को सेवा के दौरान ग्रेच्युटी के अलावा अन्य लाभ न मिलने और उनके परिवार को पेंशन से वंचित करने की आलोचना की थी। राहुल गांधी ने दावा किया था कि सरकार अग्निवीरों को इस्तेमाल करके उन्हें फेंक देने वाले मजदूर के रूप में देखती है। उन्हें शहीद का दर्जा भी नहीं देती। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में अग्निवीर भर्ती को लेकर राहुल गांधी के दावों का खंडन करते हुए कहा था कि 158 संगठनों से सुझाव लेने के बाद अग्निपथ योजना को लागू किया गया था।
कांग्रेस पार्टी के पूर्व सैनिक विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष कर्नल रोहित चौधरी का कहना है, लोकसभा में राहुल गांधी के ‘प्रेशर’ ने काम किया है। उसके बाद सरकार चेती है। खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को सामने आना पड़ा। अग्निवीर भर्ती हुए 13 शहीदों में से केवल पांच को ही क्षतिपूर्ति राशि का कुछ हिस्सा मिला था। जब राहुल गांधी ने संसद में अग्निवीर से जुड़ा मुद्दा उठाया तो उसके बाद से शहीदों के परिजनों के पास सरकार की तरफ से फोन आ रहे हैं। केंद्र सरकार हरकत में आई है। सभी शहीदों के आश्रितों के हाथ में एक करोड़ मुआवजा राशि दी जाए। बतौर रोहित चौधरी, बाकी तय राशि का भुगतान भी अविलंब किया जाए। कर्तव्य निर्वहन के दौरान शहीद होने वाले ‘अग्निवीरों’ को मुआवजा दिए जाने के विवाद के बीच, कांग्रेस ने चार जुलाई को सशस्त्र बलों के लिए अग्निपथ भर्ती योजना पर एक ‘श्वेत पत्र’ जारी करने की मांग की। चौधरी ने कहा, संसद में रक्षा मंत्री ने देश को अधूरी जानकारी दी थी। वह सिर्फ शहीद अग्निवीर अजय सिंह का मामला नहीं था, बल्कि अब तक शहीद हुए 13 अग्निवीरों का मामला है।
अग्निपथ योजना पर बढ़े विवाद के बीच केंद्र सरकार ने गुरुवार को एक साथ तीन आईपीएस डीजी उतार दिए। सीआरपीएफ, बीएसएफ और सीआईएसएफ के महानिदेशकों ने अपना बयान जारी किया। उन्होंने कहा, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सीएपीएफ में सिपाही के 10 फीसदी पद भूतपूर्व अग्निवीरों के लिए आरक्षित कर दिए हैं। अग्निवीरों को केंद्रीय पुलिस बलों में नौकरी भी मिलेगी। उन्हें फिजिकल टेस्ट में छूट दी जाएगी। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि अग्निवीर की तरह अब राहुल गांधी, बेरोजगारी का मुद्दा उठाएंगे। इसकी बानगी आगामी संसद सत्र में देखने को मिल सकती है। खुद राहुल गांधी ने अपने एक ट्वीट में लिखा, ‘बेरोजगारी की बीमारी’ भारत में महामारी का रूप ले चुकी है। भाजपा शासित राज्य, इस बीमारी का ‘एपिसेंटर’ बन गए हैं। एक आम नौकरी के लिए कतारों में धक्के खाता ‘भारत का भविष्य’ ही नरेंद्र मोदी के ‘अमृतकाल’ की हकीकत है। यह ट्वीट उन्होंने गुजरात में नौकरी की कतार में खड़े युवाओं की स्थिति को देखकर किया था।