नई दिल्ली। नए मंत्रियो के कार्यभार संभालने के साथ ही केंद्र सरकार की वीआईपी सुरक्षा व्यवस्था में बड़े बदलाव की संभावना है। केंद्रीय गृह मंत्रालय राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की वीआईपी सुरक्षा इकाई की सेवा वापस लेने पर विचार कर रहा है। मंत्रालय एक दर्जन अधिक उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी अर्द्धसैनिक बलों को सौंपने की तैयारी कर रहा है। आधिकारिक सूत्रों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
सूत्रों ने बताया कि गृह मंत्रालय के तहत इस महत्वपूर्ण इकाई की समीक्षा जल्द ही किए जाने की संभावना है और विभिन्न राजनीतिक हस्तियों और उम्मीदवारों, पूर्व मंत्रियों, सेवानिवृत्त नौकरशाहों और कुछ अन्य को दी गई सुरक्षा या तो वापस ले ली जाएगी या कम की जाएगी या अपग्रेड कर दी जाएगी।
उन्होंने बताया कि यह भी फैसला किया गया है कि वीआईपी सुरक्षा से एनएसजी के ‘ब्लैक कैट’ कमांडो को पूरी तरह वापस बुलाने के प्रस्ताव को अब लागू किया जाएगा और जेड प्लस श्रेणी के सभी नौ सुरक्षाकर्मियों को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएप) की वीआईपी सुरक्षा इकाई को सौंपा जाएगा।
उन्होंने बताया कि इसी तरह वीआईपी की सुरक्षा में लगे भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के जवानों को सीआरपीएफ या सीआईएसएफ की वीआई सुरक्षा इकाई में स्थानांतरित किया जा सकता है, जिसे विशेष सुरक्षा समूह (एसएसजी) कहा जाता है।
इन वीआईपी की सुरक्षा में तैनात हैं एनएसजी कमांडो
जिन वीआईपी लोगों को अभी तक एनएसजी कमांडो सुरक्षा दे रहे हैं, उनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बसपा सुप्रीमो मायावती, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, केंद्रीय जहाजरानी मंत्री सर्बानंद सोनोवाल, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद, नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला और तेदेपा प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू को भी एनएसजी कमांडो सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और कुछ अन्य लोगों को आईटीबीपी सुरक्षा प्रदान करती है। एनएसजी को वीआईपी सुरक्षा कार्यों से मुक्त करने की योजना 2012 से ही चल रही है।