नई दिल्ली। नए जनादेश के बाद नई सरकार की तस्वीर साफ हो गई है। दो बार अपनी पार्टी की बदौलत प्रधानमंत्री बनने वाले नरेंद्र मोदी तीसरी और पहली बार भाजपा की अगुवाई वाले राजग के प्रधानमंत्री बन कर हालांकि नया इतिहास रचने जा रहे हैं, मगर उनकी और विपक्षी इंडी गठबंधन की चुनौतियां अलग-अलग हैं। मोदी के सामने पहली बार सहयोगियों के साथ संतुलन बनाए रखने की चुनौती है तो विपक्षी इंडी गठबंधन की अगुआ कांग्रेस के सामने लंबे समय तक सहयोगियों को एकता के सूत्र में बांधे रखने की।
नतीजे आने के बाद रविवार को गठित होने जा रही नई सरकार की बात करें तो इसका आगाज अच्छा है। तमाम कयासों के बावजूद गठबंधन सरकार गठित होने से पहले आम तौर पर मंत्री पद की संख्या और दलों को दिए जाने वाले विभाग पर कोई विवाद नहीं है। सबसी बड़ी सहयोगी तेदेपा, जदयू, शिवसेना और लोजपा ने नई सरकार के गठन को लेकर प्रधानमंत्री पर पूर्ण विश्वास जताया है। ऐसें में उनके सामने चुनौती भविष्य में इस संतुलन को बनाए रखने की है। दूसरी ओर विपक्षी इंडी गठबंधन की चुनौती निकट भविष्य में नई सरकार को झटका देने के लिए सहयोगियों के बीच एकता बनाए रखने की है। हालांकि नतीजे आने के बाद कांग्रेस को सहयोगियों की ओर से बहुत सकारात्मक संदेश नहीं मिल रहे। कांग्रेस की सबसे बड़ी सहयोगी टीएमसी का रुख तल्ख है तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में अपने दम पर विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर कांग्रेस पर हरियाणा की कुरुक्षेत्र सीट पर सहयोग नहीं करने का आरोप लगाया है।
भाजपा की चुनौती
सरकार गठन को लेकर भले ही राजग में सबकुछ ठीकठाक नजर आ रहा है, मगर भविष्य में यही स्थिति जारी रहने की गारंटी नहीं है। सबसे बड़ी सहयोगी तेदेपा ने भाजपा की विचारधारा के इतर आंध्रप्रदेश में आरक्षण में मुस्लिम कोटा बहाल करने की घोषणा की है। सवाल है कि जब भाजपा अपने मूल एजेंडे में शामिल यूसीसी, धर्मांतरण विरोधी कानून की राह में आगे बढ़ेगी तब इन दलों का क्या रुख होगा? जाहिर तौर पर आगाज अच्छा होने के बावजूद भाजपा के सामने इन मुद्दों पर आगे बढ़ कर अपने मूल वोट बैंक को साधे रहने और इसके लिए सहयोगी दलों को राजी करने की चुनौती है। चूंकि सबसे बड़ी सहयोगी तेदेपा राज्य में मुस्लिम वोट बैंक को साधे रखना चाहेगी, ऐसे में भाजपा को अपने मूल एजेंडे पर आगे बढऩे और इसे अमली जामा पहनाने की बड़ी चुनौती है।
तृणमूल के अस्पष्ट रुख से कांग्रेस को समस्या
नतीजे के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडी गठबंधन ने राजग को कड़ी चुनौती दी है। इन गठबंधन में बीते दो चुनाव में हुए विपक्षी वोट बैंक में बिखराव को बहुत हद तक कम किया है। कांग्रेस के सामने चुनौती ऐसे सर्वसम्मत एजेंडा तैयार करने की है, जिससे विपक्षी एकता कायम रहे। हालांकि कांग्रेस के लिए यह आसान नहीं है। नतीजे आने के बाद इंडी गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी टीएमसी का रुख स्पष्ट नहीं है, वहीं आप ने पहले दिल्ली में विधानसभा चुनाव अपने दम पर लडऩे की घोषणा की तो बाद में कांग्रेस पर कुरुक्षेत्र सीट पर मदद नहीं करने का आरोप लगाया। जाहिर तौर पर अगर मतभेदों का निपटारा नहीं हुआ तो भविष्य में यह कलह और तेज होगी।
भाजपा के लिए राहत भी
भले ही भाजपा आम चुनाव में अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई हो, इसके बावजूद भाजपा दबाव में नहीं है। अहम विभाग में विपक्ष की हिस्सेदारी को रोकने के साथ ही भाजपा ने अपने सहयोगियों पर बढ़त बनाई है। फिर सीटवार आंकड़े को देखें तो सरकार की सहयोगी तेदेपा और जदयू अलग-अलग और अपने दम पर सरकार को अस्थिर करने की स्थिति में नहीं है। फिर इन दलों की प्राथमिकता मंत्री पद से ज्यादा केंद्र से अधिक से अधिक आर्थिक मदद हासिल करने की है।
संतुलन साधने के लिए राजग संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद मोदी ने कई अहम संदेश दिए हैं। उन्होंने निर्णयों में सर्वसम्मति बनाने, संविधान का मूल चरित्र कायम रखने की बात कही है। इसका मतलब है कि बीते दो कार्यकाल में पार्टी की विचारधारा के समर्थन में कठोर रुख अपनाती रही भाजपा ने नए कार्यकाल में विकल्पहीनता के कारण सभी दलों को साथ ले कर सामूहिक निर्णय के आधार पर आगे बढ़ने का संदेश दिया है।
नीतीश-नायडू के लिए केंद्र नहीं राज्य अहम
भाजपा के लिए राहत की बात यह भी है कि जदयू और तेदेपा की निगाहें केंद्रीय मंत्रिमंडल में अहम विभाग लेने के बदले अपने अपने राज्यों को विशेष प्राथमिकता दिलाने पर है। दोनों ही दलों का जोर भविष्य में बिहार और आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने और केंद्रीय योजनाओ का अधिक से अधिक लाभ हासिल करने की है