राजस्थान: कम वोटिंग से किसे होगा नुकसान?, तीन चुनाव में मतदान घटा तो कांग्रेस को फायदा, बढ़ा तो भाजपा सभी 25 सीटें जीती

जयपुर। राजस्थान में पहले चरण की सभी 12 सीटों पर वोटिंग हो गई। मतदान 57.87 फीसदी हुआ। इनमें 57.26% EVM और 0.61% पोस्टल बैलट से मतदान हुआ। चुनाव आयोग के मुताबिक वोटिंग फिगर का फाइनल आंकड़ा शनिवार को आएगा। इन 12 सीटों की तुलना 2009, 2014 और 2019 से करें तो रोचक तस्वीर सामने आ रही है।

2009 में इन 12 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत 48.12 रहा। 2014 में मतदान 13 फीसदी से अधिक बढ़कर 61.66 प्रतिशत पहुंच गया। साल 2019 में ये आंकड़ा थोड़ा और बढ़ कर 63.71 फीसदी तक चला गया।

इस बार ये आंकड़ा 57.87 फीसदी ही रह गया, यानी 2019 के मुकाबले करीब 5.84 फीसदी कम।

पहले चरण में कम वोटिंग प्रतिशत किसकी चिंता बढ़ाएगा?
आमतौर पर राजस्थान में परसेप्शन है कि विधानसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़े तो राज्य सरकार को टेंशन हो जाती है। वहीं लोकसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो भाजपा को फायदा मिलता है। ऐसे में इस बार पहले चरण की सीटों पर कम वोटिंग ने भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

वोट शेयर में कितना अंतर रहेगा?
सवाल ये भी है कि पहले चरण में कम वोटिंग होने से भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर में क्या अंतर रहेगा। सीट जीत-हार का असल खेल वोट शेयर के आंकड़ों में छिपा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में करीब 24 फीसदी का अंतर रहा। इस कारण कांग्रेस पिछले दो बार से ‘जीरो’ पर अटकी है। इस बार कम वोटिंग से कांग्रेस में कुछ आस जगी है।

इस मतदान प्रतिशत का निष्कर्ष क्या है?
इस सवाल का जवाब 26 अप्रैल को दूसरे चरण की बची 13 सीटों के मतदान के बाद ही मिल सकेगा।