रायपुर। प्रभु श्रीराम के ननिहाल और माता कौशल्या के मायका चंदखुरी में वैद्यराज सुषेण का गांव है। जी हां आप सही पढ़ रहे हैं। ये वहीं वैद्यराज हैं, जिन्होंने त्रेतायुग में लक्ष्मण के प्राण बचाए थे। भगवान श्रीराम का चिंताहरण किया था। रामायण काल के दौरान लक्ष्मण-मेघनाथ युद्ध में जब मेघनाथ ने ब्रम्हास्त्र लक्ष्मण पर छोड़े थे। इससे लक्ष्मण मुर्छित हो गए थे। मुर्छित अवस्था में उन्हें उठाकर हनुमान प्रभु श्रीराम के पास ले गए। लखनलाल को मुर्छित देख भगवान राम व्याकुल हो गए थे। वे सोचने लगे कि जिसे मैं अपने साथ लेकर वनवास आया, वापस अयोध्या जाकर माता सुमित्रा और उर्मिला से क्या कहूंगा। उन्हें क्या जवाब दूंगा। इसे लेकर जग की चिंता को दूर करने वाले मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम खुद ही चिंतित हो उठे।
उस समय विभिषण ने भगवान राम से उपाय सुझाते हुए कहा था कि यदि लंका से वैद्यराज सुषेण को बुलाया जाए तो लक्ष्मण के प्राण बच सकते हैं। उनकी चेतना वापस आ सकती है। विभिषण की सलाह पर प्रभु राम ने हनुमान जी को लंका भेजा था, तब वीर बजरंग बली वैद्य सुषेण को उनके भवन समेत उठा लाये थे। सुषेण ने लक्ष्मण जी की प्राण बचाने के लिए एक औषधि लाने को कहा था।
उन्होंने कहा कि हजारों योजन दूर द्रोणगिरि पर्वत पर संजीवनी बूटी है। आपकी सेना में कोई ऐसा वीर हो, जो रातभर में सूर्य निकलने से पहले आ जाए, तो लक्ष्मण को पुनः जीवित किया जा सकता है। संकटमोचन हनुमान तमाम परेशानियों को दूर करते हुए सूर्य उगने से पहले ही पर्वत समेत संजीवनी बूटी उठा लाते हैं। वैद्यराज मृत संजीवनी विद्या के जानकार थे। उन्होंने संजीवनी विद्या के प्रयोग से लक्ष्मण जी की चेतना वापस लाई थी।
पुराणों के अनुसार, लंकापति रावण ने राक्षस जाति के संरक्षण और उत्थान के लिए कौशल राज्य (वर्तमान छत्तीसगढ़) से वैद्यराज सुषेण का अपहरण कर लंका ले गया था। वहीं पर एक भवन में सुषेण का निवास था। जब भगवान राम ने दशानन का वध किया था। उस समय वैधराज सुषेन ने उनसे भेंट की और स्वयं को उनकी शरण में लेने का अनुरोध किया था। इस पर राम ने उन्हें अपने साथ अयोध्या ले आए और उन्हें अपने अधिनस्थ राज्य कौशल के चंदखुरी में भेज दिया। इसके बाद सुषेण वैद्य ने अपना बाकी जीवन यहीं पर बिताया। चंदखुरी को वैद्य चंदखुरी के नाम से भी जाना जाता है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 27 किलोमीटर दूर चंदखुरी में माता कौशल्या के मंदिर के पास ही वैद्यराज सुषेन का आश्रम था। वर्तमान में यहां अलग से मंदिर बना है। मंदिर में एक बड़ा पत्थर विद्यमान है। मंदिर के पुजारी के अनुसार, जब वैद्य का स्वर्गवास हो गया तो उनकी पार्थिव देह शिलालेख के रूप में परिवर्तित हो गई। यानी पत्थर बन गया। यही उनकी समाधि मानी जाती है। मान्यता है कि वैद्य के मंदिर की मिट्टी या भभूत लगाने से लोगों की बीमारियां ठीक हो जाती हैं।