अयोध्या। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा व मंदिर के लोकार्पण पर विवाद के बीच श्री गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने कहा कि इसमें कोई दोष नहीं है। प्राण प्रतिष्ठा पूरी तरह दोष रहित है। 22 जनवरी का मुहूर्त सर्वोत्तम है, क्योंकि 2026 तक प्राण प्रतिष्ठा और लोकार्पण का शुभ मुहूर्त नहीं मिल रहा था।
सभा ने कहा कि देशभर से आए सवालों का 25 बिंदुओं में समाधान किया गया है। कोई भी धार्मिक विवाद होने पर इसी सभा का निर्णय अंतिम होता है। शिलान्यास व लोकार्पण का मुहूर्त देने वाले पं. गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ इस सभा के परीक्षाधिकारी मंत्री भी हैं। उनका कहना है कि देवमंदिर की प्रतिष्ठा दो तरह से होती है। एक संपूर्ण मंदिर बनने पर। दूसरा मंदिर में कुछ काम शेष रहने पर भी।
संपूर्ण मंदिर बन जाने पर गर्भगृह में देव प्रतिष्ठा होने के बाद मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा संन्यासी करते हैं। गृहस्थ द्वारा कलश प्रतिष्ठा होने पर वंशक्षय होता है। मंदिर का पूर्ण निर्माण हो जाने पर प्रतिष्ठा के साथ मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा होती है। जहां मंदिर पूर्ण नहीं बना रहता है, वहां देव प्रतिष्ठा के बाद मंदिर का पूर्ण निर्माण होने पर किसी शुभ दिन में उत्तम मुहूर्त में मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा होती है।
दरवाजे लग गए, गर्भगृह शिलाओं से ढक गया इसलिए कोई दोष नहीं
पं. द्राविड़ ने कहा कि कर्मकांड प्रदीप, ईश्वर संहिता और वृहन्नारदीय पुराण के अनुसार जब तक मंदिर ढका नहीं जाता और वास्तुशांति नहीं होती, देवताओं को यथायोग्य पायसबलि नहीं दी जाती, ब्राह्मणभोजन नहीं होने तक देव प्रतिष्ठा नहीं हो सकती। लोकव्यवहार में एक मंजिल भवन बनने पर वास्तुशांति करके लोग गृहप्रवेश करते हैं। देवमंदिर देवगृह है, इसलिए उसमें भी यह नियम लागू होता है। राममंदिर में प्रतिष्ठा के पूर्व वास्तु शांति, बलिदान एवं ब्राह्मणभोज होने वाला है। मंदिर के दरवाजे लग गए हैं। गर्भगृह पूरी तरह से शिलाओं से ढका गया है। इसलिए प्राण प्रतिष्ठा में दोष नहीं है। काम पूर्ण होने पर कलश स्थापित किया जाएगा।
14 लाख दीपों में झिलमिलाए रामलला
अयोध्या में श्रीराम मंदिर और प्रभु श्रीराम की यह अद्भुत आकृति 14 लाख रंग-बिरंगे दीपों से उकेरी गई है। साकेत महाविद्यालय में सजे इन दीपों को शिनवार को प्रज्वलित किया गया तो आस्था जगमगा उठी।