
देहरादून। पूरा देश 11 दिनों से टनल में फंसे 41 मजदूरों की जिंदगी की दुआ मांग रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि ये सभी आज बाहर आ पाएंगे। शासन प्रशासन के भरसक प्रयासों से सभी श्रमिक जल्द ही अपने परिवार के बीच होंगे। लेकिन, टनल से बाहर आने के बाद भी इन मजदूरों का जीवन कुछ दिनों तक असामान्य रह सकता है।
उन्हें कई तरह के भय और बीमारी के होने का भी खतरा हो सकता है। यह मानना है मनोवैज्ञानिकों का। टनल से बाहर आने के बाद मजदूरों को सामान्य जीवन बीताने में उनके परिवार और जिम्मेदार लोगों की अहम भूमिका होगी। दरअसल, सुरंग की खोदाई में लगे मजदूरों का जीवन आम मजदूरों से अलग होता है।
यही कारण है कि अभी तक कम प्राण वायु और तंग माहौल में भी मजदूरों का हौसला बना हुआ है। उन्हें बचाने के लिए तमाम प्रयास भी किए जा रहे हैं।

देश का सबसे उन्नत आपदा मोचन बल एनडीआरएफ और एसडीआरएफ अत्याधुनिक मशीन से मजदूरों तक पहुंचने के प्रयास में जुटा है। लेकिन, सवाल है कि क्या मजदूर पहली जैसी जिंदगी जीएंगे या उसमें कुछ वक्त लगेगा।

इस बारे में मनोवैज्ञानिक डॉ. वीणा कृष्णन ने बात की। उन्होंने बताया कि टनल में काम करने वाले मजदूर तंग माहौल में जीने के आदी होते हैं। लेकिन, यह स्थिति उससे भी अलग है।

यह वह तंग माहौल नहीं है जिसमें वह दिन रात काम करते हैं। अब उन्हें जीवन बचाने के लिए केवल समय बीताना है। ऐसे में क्लोज स्पेस फोबिया उन्हें आगे के जीवन में घेर सकता है।

यानी उन्हें ऐसे माहौल या छोटे कमरों से भी डर लग सकता है। हालांकि, यह व्यक्ति के शरीर पर भी निर्भर करता है।

इसी तरह उन्हें पोस्ट ट्रॉमा चेस्ट डिसऑर्डर भी हो सकता है। इसमें व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है। यह डर के कारण ही होता है।

डॉ. कृष्णन ने बताया कि यह इस तरह की समस्या में पसीना आना या फिर नींद की कमी भी उन्हें घेर सकती है।

उन्होंने इस बारे में साफ किया कि ऐसा व्यक्ति विशेष के शरीर भी बहुत हद तक निर्भर करता है।

इसके लिए जरूरी है कि जब वह अपने घर आएं तो इस डर को निकालने के लिए भी जरूरी प्रबंध किए जाएं।

यह उनके परिवार से संभव न हो तो शासन प्रशासन उन्हें सामान्य जीवन जीने में मदद करे। उनकी सबसे पहले काउंसिलिंग और शुरुआती इलाज बेहद जरुरी है।