छत्‍तीसगढ़: यहां मिट्टी के बने रावण का होता है वध, 250 वर्षों पुरानी है यह परंपरा, जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी

छुईखदान। आज विजयादशमी पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। छत्तीसगढ़ के 14 रियासतों में से एक छुईखदान रियासत में मनाया जाने वाला दशहरा पर्व रियासत कालीन मान्यताओं एवं परंपराओं से भिन्न है। इस रियासत में स्थानीय कुंभकारों द्वारा निर्मित मिट्टी के रावण का पुतला बनाया जाता है। रावण का पुतला बनाने का स्थल आज तक अपरिवर्तित है। ग्राम नवागांव मार्ग पर रावण का पुतला बनाने का कार्य दशहरा पर्व के पूर्व से ही आरंभ किया जाता है। मिट्टी के पुतले का वृहद स्वरूप दशहरा के दिन ही पूर्ण कर लिया जाता है तथा पुतले के संहार तक उसकी सुरक्षा की जाती है।

ढाई सौ वर्षों से चली आ रही परंपरा

वैष्णव धर्म लंबी रियासत की नगरी छुईखदान में प्रथम राजा महंत रूप दास प्रथम महंत रियासत वर्ष 1750 से 1780 तक। इसके बाद क्रमश: महंत तुलसीदास जमीदार कोडका 1780 महंत बालमुकुंद लगभग 1845 तक, महंत लक्ष्मण दास 1845 से 1887 तक, महंत श्याम किशोर दास 1887 से 1896 तक, राधावल्लभ किशोर दास 1896 से 1898 तक, महंत दिग्विजय युगल किशोर दास 1898 से 1903 तक महंत भुधर किशोर दास 1930 से 1940 एवं अंतिम राजा ऋतु किशोर दास 1940 द्वारा प्रतिवर्ष विजयदशमी के दिन रावणभाठा में मिट्टी से बने रावण के पुतले का संहार करने की निरंतर परिपाटी का निर्वहन किया गया है। अब उसी परंपरा का निर्वहन राजा गिरिराज किशोर दास द्वारा किया जा रहा है।

रावण वध करने का अधिकार राजा को ही

छुईखदान रियासत के अंतिम महंत रितुपर्णा किशोर दास जी के स्वर्ग गमन पश्चात उनके एकमात्र पुत्र घनश्याम किशोर दास जो राजपरिवार का उत्तराधिकारी हुआ। उसने रियासत की परंपरा को आगे बढ़ाया एवं उनके भी निधन पश्चात वर्तमान पांच वर्षों से राज परिवार का उत्तराधिकार प्रतिनिधि राजा गिरिराज किशोर दास द्वारा अपनाई जा रही है। दिवंगत राजा के जेष्ठ पुत्र राजा गिरीराज किशोर दास अपने अनुज देव राज किशोर दास अपने पुरोहित के साथ शाही सवारी में विराजमान होकर आगे आगे ब्राह्मणों द्वारा निशान धारित किए हुए एवं भजन मंडली द्वारा भजन गायन करते हुए काफिला रावण वध के लिए रावण भाटा के लिए प्रस्थान किया जाता है। 

मिट्टी से बने रावण के पुतले का शिरोछेदन

रावण भाटा पहुंचकर जहां मंत्रोच्चार के साथ भगवान राम की पूजा अर्चना के बाद रियासत के राजा प्रमुख द्वारा मिट्टी से बने विशालकाय रावण के पुतले का शिरोछेदन किया जाता है। शास्त्र के अनुसार भगवान श्रीराम ने रावण को जलाया नहीं था बल्कि उसके नाभि में स्थित अमृत कुंभ को निशाना बनाकर रावण वध किया था। उसी शास्त्रोक्त परंपरा के अनुसार छुईखदान रियासत के प्रमुख भगवान श्रीराम के प्रतिनिधि के रुप में मिट्टी के रावण का शिरो छेदन करते हैं और रावण की मिट्टी अपनी तलवार की नोंक से निकालकर उसे अमृत मान कर अपने पास सुरक्षित रख लेते हैं। साथ ही हनुमान का निशान वैष्णव संप्रदाय के निंबार्क मत का प्रतीक है। 

पहले लगता था दरबार

विजयदशमी के दूसरे दिन राजमहल में राजा का दरबार सजता था। इस दरबार में दूरदराज से लोगों की भीड़ सजती थी। क्षेत्र के मालगुजार, गोटिया और ग्राम प्रमुख अपनी ओर से राजा का तिलक कर उन्हें भेंट एवं उपहार देते थे। बदले में राजा उपहार देने वालों का सम्मान करते हुए पान का बीड़ा देकर उपहार देने वालों का सम्मान करते थे। राज दरबार के दिन राजमहल को आम लोगों के लिए खोल दी जाती थी, लेकिन यह परंपरा समय के साथ विलीन हो गया।