बेंगलूरू। भारत का तीसरा चंद्र मिशन चंद्रयान-3 तेजी से अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ रहा है। इस बीच भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने एक बार फिर चंद्रयान-3 के कैमरे से ली हुई चंद्रमा की तस्वीरें जारी की हैं। इसरो ने ट्विटर पर बताया कि एक तस्वीर पृथ्वी की है जिसे लैंडर कैमरे ने लॉन्च के एक दिन के बाद लिया था। वहीं दूसरी तस्वीर चंद्रयान अंतरिक्ष यान के चांद की कक्षा में प्रवेश करने के एक दिन बाद की है, यह तस्वीर छह अगस्त को ली गई थी।
इसरो में ताजा छवियों में ओशनस प्रोसेलरम (महासागरीय तूफान) के साथ-साथ चंद्र सतह पर बड़े, अंधेरे मैदानों में से एक, एडिंगटन, एरिस्टार्चस और पाइथागोरस क्रेटर को चिह्नित किया है। ओशनस प्रोसेलरम “समुद्रों” में सबसे बड़ा है, जो चंद्रमा के उत्तर-दक्षिण अक्ष पर 2,500 किमी से अधिक तक फैला है और लगभग 4,000,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है।
23 अगस्त को चंद्रमा पर उतरने की उम्मीद
चंद्रयान-3 शनिवार 5 अगस्त को सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया था। चंद्रयान-3 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था। इसके 23 अगस्त को चंद्रमा पर उतरने की उम्मीद है। चंद्रयान-3 को नौ अगस्त को दोपहर दो बजे के आसपास चंद्रमा की तीसरी कक्षा में प्रविष्ट कराया जाएगा। इसके बाद 14 अगस्त और 16 अगस्त को इसे चौथी और पांचवीं कक्षा में पहुंचाने की कोशिश की जाएगी।
कैसा रहा चंद्रयान-3 का सफर?
15 जुलाई को चंद्रयान-3 ने सफलतापूर्वक पृथ्वी की पहली कक्षा में प्रवेश किया था। इसके बाद चंद्रयान ने 17 जुलाई को पृथ्वी की दूसरी और 18 जुलाई को पृथ्वी की तीसरी कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया। इसके बाद 20 जुलाई को चंद्रयान ने पृथ्वी की चौथी और 25 जुलाई को पृथ्वी की पांचवीं कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक अगस्त को भारत के बहुप्रतीक्षित अभियान चंद्रयान-3 अंतरिक्षयान को पृथ्वी की कक्षा से निकालकर सफलतापूर्वक चांद की कक्षा की तरफ रवाना किया था। पांच अगस्त को चंद्रयान सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में स्थापित हो गया था।
क्यों खास है चंद्रयान-3 की यात्रा?
फिलहाल मिशन चंद्रमा की अपनी यात्रा पर है, जो बेहद खास है। इससे पहले चंद्रयान-3 को इसरो के ‘बाहुबली’ रॉकेट एलवीएम3 से भेजा गया। दरअसल, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलने के लिए बूस्टर या कहें शक्तिशाली रॉकेट यान के साथ उड़ते हैं। अगर आप सीधे चांद पर जाना चाहते हैं, तो आपको बड़े और शक्तिशाली रॉकेट की जरूरत होगी। इसमें ईंधन की भी अधिक आवश्यकता होती है, जिसका सीधा असर प्रोजेक्ट के बजट पर पड़ता है। यानी अगर हम चंद्रमा की दूरी सीधे पृथ्वी से तय करेंगे तो हमें ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। नासा भी ऐसा ही करता है लेकिन इसरो का चंद्र मिशन सस्ता है क्योंकि वह चंद्रयान को सीधे चंद्रमा पर नहीं भेज रहा है।