Delhi Bill: ‘सोचता हूं कि वो कितने मासूम..’ से ‘कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी..’ तक, राज्यसभा में शायराना बहस

नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज यानी सात अगस्त को राज्यसभा में ‘राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक, 2023’ पेश किया। इससे पहले तीन अगस्त को राजधानी दिल्ली में अधिकारियों की नियुक्ति औैर स्थानांतरण मामले में उपराज्यपाल के फैसले को अंतिम माने जाने वाले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार संशोधन विधेयक लोकसभा से पारित कर दिया गया था। 

विधेयक पर आज चर्चा पूरी होने के बाद शाम को मतदान होना है। इससे पहले चर्चा के दौरान सत्ता और विपक्षी सांसदों में जमकर शेरो-शायरी हुई। कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी, भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी, आप सांसद राघव चड्ढा और राजद सांसद मनोज झा ने एक दूसरे पर जमकर विरोधी शायरी पढ़ीं। आइये जानते हैं किस सांसद ने कौन सी शायरी पढ़ी…

अभिषेक मनु सिंघवी
बहस की शुरूआत करते हुए कांग्रेस सांसद ने दिल्ली सेवा विधेयक का विरोध किया। इस दौरान उन्होंने शायर मुजफ्फर इस्लाम रजमी की मशहूर पंक्तियां पढ़ीं-

‘ये जब्र भी देखा है तारीख की नजरों ने, लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई।’

इसके बाद सिंघवी ने बिल का समर्थन करने वाले दलों खासकर बीजद और वाईएसआर कांग्रेस की ओर इशारा किया और जर्मन पादरी मार्टिन नीमोलर की विख्यात कविता पढ़ी।

‘पहले वे समाजवादियों के लिए आए, और मैंने कुछ नहीं बोला-
      क्योंकि मैं समाजवादी नहीं था।

फिर वे ट्रेड यूनियनवादियों के लिए आए, और मैंने कुछ नहीं बोला-
      क्योंकि मैं ट्रेड यूनियनिस्ट नहीं था।

तब वे यहूदियों के लिये आये, और मैं ने कुछ न कहा।
      क्योंकि मैं यहूदी नहीं था।

फिर वे मेरे लिए आए और मेरे लिए बोलने वाला कोई नहीं बचा था।’

बिल के कथित दुष्प्रभावों पर बात करते हुए कांग्रेस नेता ने शायर तरन्नुम कानपुरी की लाइनें पढ़ीं।

‘ऐ काफिले वालों, तुम इतना भी नहीं समझे 
लूटा तुम्हें रहजन ने, रहबर के इशारे पर।’

केंद्र सरकार की ओर इशारा करते हुए सिंघवी ने कहा कि सत्ता में आज कोई और है कल कोई और होगा। इस दौरान उन्होंने हबीब जालिब का मशहूर शेर पढ़ा।

‘तुम से पहले वो जो इक शख्स यहां तख्त-नशीं था 
उस को भी अपने खुदा होने पे इतना ही यकीं था।’

आगे उन्होंने बशीर बद्र की लाइनें दोहराईं

‘शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है 
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है।’

राज्यसभा सांसद ने विधेयक को संविधान के खिलाफ बताते हुए परवीन शाकिर का शेर पढ़ा।

‘ऐ मिरी गुल-जमीं तुझे चाह थी इक किताब की 
अहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया।’ 

सिंघवी ने अपने संबोधन का अंत मलिकजादा मंजूर अहमद की गजल से की।

‘चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है 
जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है।’

सुधांशु त्रिवेदी 
सुधांशु त्रिवेदी ने भाजपा की ओर से बिल का समर्थन किया। इस दौरान सुधांशु ने आप और कांग्रेस पर जहां जुबानी तीर छोड़े तो वहीं शेरी शायरी के जरिए माहौल को हल्का रखा। शुरूआत में दिल्ली सेवा विधेयक पर आप को समर्थन देने पर उन्होंने कांग्रेस के सिंघवी की चुटकी ली। इस दौरान उन्होंने वसीम बरेलवी की पंक्तियां पढ़ीं।  

‘शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं।’

दिल्ली सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए भाजपा सांसद ने एक लोकोक्ति भी पढ़ी।

‘माले मुफ्त दिले बेरहम।’ आगे जोड़ा, ‘दिल्ली पे सितम करोड़ों हजम’।

दिल्ली के मुख्यमंत्री के सरकारी आवास के रेनोवेशन में कथित अनियमितता का आरोप लगाते हुए भाजपा नेता ने 
वसीम बरेलवी की लाइन पढ़ी।

‘अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएं कैसे 
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएं कैसे।

घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत बअद का है 
पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएं कैसे।।’

कांग्रेस और आप के साथ आने को लेकर भाजपा सांसद ने तंज कसा। इसके साथ ही उन्होंने नुसरत फ़तेह अली खान के मशहूर गाने की पंक्ति पढ़ी।

‘सोचता हूँ कि वो कितने मासूम थे
क्या से क्या हो गए देखते-देखते
मैंने पत्थर से जिनको बनाया सनम
वो खुदा हो गए देखते देखते..!’

सुधांशु त्रिवेदी ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि बिल का आप का समर्थन कर कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव ले आई जिससे उसको लीड मिल गई। इस दौरान उन्होंने लाइनें पढ़ीं।

‘न तुम ही मिले, न मयस्सर तुम्हारी दीद हुई ,
अब तुम ही बताओ, ये मोहर्रम हुई कि ईद हुई !’

राघव चड्ढा 
आप सांसद ने बिल का विरोध किया और अपने संबोधन की शुरूआत महाभारत के अंश से की जिसका जिक्र रामधारी सिंह दिनकर ने रश्मिरथी के तृतीय सर्ग में किया था।’

‘मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान हस्तिनापुर आए,
पांडव का संदेशा लाए।

‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पांच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खाएंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!

दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशिष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बांधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।’

आप सांसद ने बिल का समर्थन करने पर बीजद और वाईएसआर कांग्रेस पर कटाक्ष किया। इस दौरान उन्होंने बशीर बद्र का मशहूर शेर पढ़ा।

‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी
यूं कोई बेवफा नहीं होता।’

आगे आप सांसद ने बीजद और वाईएसआर को चेतावनी देते हुए राहत इंदौरी की मशहूर लाइनें कहीं।

‘अगर खिलाफ है होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में
यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।’

मनोज झा
राजद की ओर से इस बिल पर मनोज झा ने राय रखी।’ संबोधन के शुरूआत में उन्होंने अहमद फराज की लाइनें पढ़ीं।

‘तुम तकल्लुफ को भी इख्लास समझते हो ‘फराज’ 
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला।’

राज्यसभा सांसद ने अंत में मनोज झा ने दुष्यंत कुमार की कविता पढ़ी।

‘उन की अपील है कि उन्हें हम मदद करें 
चाकू की पसलियों से गुजारिश तो देखिए।’