नई दिल्ली। देश में भाजपा के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना आसान होने वाला नहीं है। विपक्ष तो विरोध कर ही रहा है लेकिन अब तमिलनाडु में भाजपा की प्रमुख सहयोगी अन्नाद्रमुक (AIADMK) ने भाजपा को झटका देते हुए कहा कि एआईएडीएमके ने भारत सरकार से समान नागरिक संहिता के लिए संविधान में कोई संशोधन नहीं लाने का आग्रह किया है। एआईएडीएमके का मानना है कि यह कानून भारत के अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
नेशनल पीपुल्स पार्टी के बाद एआईएडीएमके दूसरी प्रमुख भाजपा सहयोगी पार्टी है जिसने यूसीसी का विरोध किया है। वहीं अब देखना होगा कि भाजपा अपने इन प्रमुख सहयोगियों को कैसे मना पाती है। इससे पहले नगालैंड में भाजपा की एक अन्य सहयोगी नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) ने समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन पर अपनी आपत्ति जताई थी।
आने वाले संसदीय सत्र में पेश हो सकता है यूसीसी
यूसीसी भाजपा के एजेंडे में लंबे समय से था। विधि आयोग ने 14 जून को उस प्रस्ताव के बारे में 30 दिनों के भीतर जनता और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों से विचार मांगकर यूसीसी पर अपनी कवायद फिर से शुरू कर दी थी। यह बिल आने वाले संसदीय सत्र में पेश हो सकता है। इस मुद्दे को हवा जब लगी तब 27 जून को, पीएम मोदी ने भोपाल में यूसीसी के बारे में बात करते हुए कहा कि देश दो कानूनों पर नहीं चल सकता है और समान नागरिक संहिता संविधान का हिस्सा है। भाजपा के 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में, पार्टी ने सत्ता में आने पर यूसीसी को लागू करने का वादा किया था।
समान नागरिक संहिता सभी नागरिकों पर उनके धर्म, लिंग की परवाह किए बिना समान रूप से लागू होगा। यह संहिता संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत आती है, जिसमें कहा गया है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।