छत्तीसगढ़: नक्सली हमले का क्या है ‘2024’कनेक्शन? माओवादियों को क्यों है डीआरजी भर्ती पर एतराज

Chhattisgarh: What is 2024 connection to Naxal attack? Why Maoists object to the recruitment of DRG?

दंतेवाड़ा। दंतेवाड़ा के अरनपुर गांव के निकट 26 अप्रैल को हुए नक्सली हमले में डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के दस जवान शहीद हो गए थे। यह हमला इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) के जरिए किया गया था। सड़क किनारे दबाई गई ‘आईईडी’ के ऊपर से जैसे ही गाड़ी गुजरी, वह ब्लास्ट की चपेट में आ गई। इस हमले के बाद भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), दरभा डिविजन कमेटी के सचिव साइनाथ की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, माओवादी पार्टी को 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले ही उन्मूलन करने के मकसद से इन इलाकों में ऑपरेशन करा रहे हैं। बस्तर में अलग-अलग तरह के सैनिक, अर्धसैनिक बल, एनएसजी, डीआरजी और कोबरा जैसे कमांडो बलों को उताकर कर इसे एक छावनी बना दिया गया है। माओवादियों ने अपने पत्र में डीआरजी जैसी बहादुर फोर्स को ‘गुंडा’ बताया है। डीआरजी में भर्ती के लिए योग्यताएं व मापदंड बदल दिए गए हैं। केवल शिकार करने में माहिर लोगों को डीआरजी में भर्ती किया जा रहा है।

बस्तर क्षेत्र में ड्रोन और हेलीकॉप्टरों से हमला

माओवादियों ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है कि बस्तर क्षेत्र में ड्रोन और हेलीकॉप्टरों से हवाई हमला किया जा रहा है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पिछले साल भी हवाई हमले की बात सामने आई थी, लेकिन सुरक्षा बलों ने ऐसा कुछ होने से इनकार किया था। अरनपुर में हुए हमले को लेकर नक्सलियों का कहना है कि डीआरजी के लोग गांवों में सर्चिंग के नाम पर हमला कर लौट रहे थे। पीएलजीए ने लौटते वक्त इस हमले को अंजाम दिया है। नक्सलियों को ‘डीआरजी’ से कितनी शत्रुता है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी विज्ञप्ति में लिखा है, बस्तर इलाके में पुलिस नौकरियों में भर्ती के लिए योग्यताओं व मापदंडों को बदल दिया गया है। अनपढ़ और शारीरिक तौर से अनफिट लोगों को भर्ती किया जा रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि वे लोग ‘शिकार’ करने में माहिर हैं। गद्दार हैं, इसलिए उन्हें भर्ती में पहली प्राथमिकता मिल रही है।

आगे भी डीआरजी पर हमले जारी रखेंगे

नक्सलियों ने अपने संदेश में अदाणी और उनकी संपत्ति का भी जिक्र किया है। सरकारें, पुलिस विभाग को छोड़कर, बाकी जगहों पर नियुक्तियां बंद कर रही है। पुलिस के लिए जारी संदेश में उन्होंने कहा, वे जानते हैं कि मजबूरी में स्थानीय लोगों को पुलिस की नौकरी करनी पड़ रही है। पुलिस को चेतावनी देते हुए नक्सलियों ने कहा, वे जनता पर होने वाले हमलों से दूर रहें। उन्हें जनता का साथ देना चाहिए। पुलिस, हवाई हमले जैसी कार्रवाई से दूर रहे। अपनी विज्ञप्ति में नक्सलियों ने दो बार हवाई हमलों का जिक्र किया है। उनके संदेश की भाषा बताती है कि वे भविष्य में भी डीआरजी पर हमले जारी रखेंगे। वे उन्हें भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

डीआरजी को क्यों सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं नक्सली

छत्तीसगढ़ में डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड को माओवादी, अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं। साल 2008 में सबसे पहले बस्तर में ही डीआरजी की भर्ती हुई थी। कांकेर व नारायणपुर में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन में डीआरजी को उतारा गया। उसके बाद छत्तीसगढ़ के कई दूसरे इलाकों में भी डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड की भर्ती शुरू हुई। सुरक्षा बलों के एक अधिकारी के मुताबिक, डीआरजी को इसलिए ये लोग अपना बड़ा दुश्मन मानते हैं, क्योंकि अधिकांश जवान पूर्व में नक्सलियों के समूह में शामिल रहे हैं। उन्हें नक्सलियों के छिपने के ठिकाने, जंगल से बाहर आने का रास्ता, सप्लाई चेन और सुरक्षा बलों पर हमला करने की रणनीति, मालूम होती हैं। इन जवानों को सीआरपीएफ के साथ विभिन्न ऑपरेशनों में भेजा गया है। आत्मसमर्पण करने के बाद एक तय अवधि पूरी होने पर ही उन्हें डीआरजी में भर्ती किया जाता है। इसके बाद भी लंबे समय तक उन पर नजर रखी जाती है। जब भरोसा पूरी तरह से पुख्ता हो जाता है, तो ही उन्हें स्वतंत्र तरीके से ऑपरेशन की कमान सौंपते हैं। इस बीच उनसे इंटेलिजेंस का काम भी कराया जाता है। डीआरजी को कुछ हद तक गुरिल्ला युद्ध पद्धति की भी ट्रेनिंग देते हैं।

जाको राखे साईंया मार सके ना कोय

छत्तीसगढ़ के अरनपुर में नक्सलियों ने डीआरजी पर जो हमला किया है, उसमें ‘जाको राखे साईंया मार सके ना कोय’ कहावत सही साबित होती है। हमले में बाल-बाल बचे ड्राइवर युवराज सिंह बताते हैं, जब डीआरजी के जवान ऑपरेशन के लिए जा रहे थे, तो उस वक्त काफिले में करीब दो दर्जन वाहन थे। नक्सलियों ने तभी हमले की प्लानिंग की होगी। उन्हें लगा होगा कि आते समय भी इतने ही वाहन होंगे। हालांकि अधिकांश गाड़ियां तो वहीं पर रह गई थीं। हमारे काफिले में तीन वाहन थे। आईईडी ब्लास्ट में वाहन उड़ने से डीआरजी के 10 जवान शहीद हुए हैं, वह तूफान गाड़ी नंबर तीन थी। नंबर दो वाली ब्लैक स्कॉरपियो, जिसे युवराज सिंह चला रहे थे, उसके नीचे लकड़ी फंस गई थी। वह उसे निकालने के लिए ठहरा। उसके बाद जैसे ही काफिला आगे बढ़ा तो ड्राइवर ने तीसरे नंबर वाली गाड़ी को स्कॉर्पियो से आगे निकाल दिया। हालांकि वह ड्राइवर कभी ओवरटेक नहीं करता था। काफिले में जिस भी नंबर पर जो गाड़ी होती है, वह आखिरी प्वाइंट पर पहुंचने तक उसी क्रम में रहती है। अरनपुर में उस ड्राइवर ने ओवरटेक कर दिया। कुछ ही सेकेंड बाद वही गाड़ी आईईडी ब्लास्ट हो गई। बतौर युवराज सिंह, अगर तीसरे नंबर की गाड़ी ओवरटेक नहीं करती, तो ब्लास्ट की चपेट में उसकी गाड़ी आनी थी। युवराज की गाड़ी में एक एएसआई सहित आठ जवान सवार थे।