छत्तीसगढ़ः राजभवन में फंसे दोनों आरक्षण विधेयक , राज्यपाल ने नहीं किए हस्ताक्षर, करेंगी कानूनी चुनौतियों पर अफसरों से बात

रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा से पारित आरक्षण संबंधी दोनों नये विधेयक राजभवन में फंस गये हैं। राज्यपाल अनुसूईया उइके ने इनपर हस्ताक्षर ही नहीं किये। इसकी वजह से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्गों और गरीबों के लिए बनाए आरक्षण के नये प्रावधान अभी लागू नहीं हो पाएंगे। बताया जा रहा है कि राज्यपाल इन विधेयकों की कानूनी चुनौतियों को लेकर अफसरों से बात करना चाहती हैं।

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में फैसला सुनाते ही छत्तीसगढ़ में चल रहे 58% आरक्षण को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया था। उसके बाद से छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई आरक्षण रोस्टर नहीं बचा। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए सरकार ने एक-दो दिसम्बर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण संबंधी दो संशोधन विधेयक पारित कराये। इसमें आरक्षण को बढ़ाकर 76% कर दिया गया था।

शुक्रवार को विधेयक पारित होने के बाद संसदीय कार्य मंत्री रविन्द्र चौबे, विधि मंत्री मोहम्मद अकबर, आबकारी मंत्री कवासी लखमा, खाद्य मंत्री अमरजीत भगत और नगरीय प्रशासन मंत्री शिव डहरिया रात को ही उसे लेकर राजभवन पहुंचे थे। वहां उन्होंने राज्यपाल अनुसूईया उइके से मुलाकात कर विधानसभा में पारित दोनों विधेयकों की प्रतियां सौंपकर हस्ताक्षर का आग्रह किया। उस समय राज्यपाल ने नियमानुसार कार्रवाई की बात कही थी।

कहा था-सोमवार को करूंगी हस्ताक्षर

अगले दिन मीडिया से बातचीत में राज्यपाल ने सोमवार तक हस्ताक्षर कर देने की बात कही थी। सोमवार को दिन भर राजभवन के कानूनी सलाहकारों और अफसरों की टीम विधेयक की समीक्षा में लगी रही। मंगलवार को भी यही क्रम चला। उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि राज्यपाल इस मामले में वरिष्ठ अफसरों से चर्चा करना चाहती हैं। वे यह देखना चाहती हैं कि इस कानून को कोई अदालतों में चुनौती दे तो उससे निपटने के लिए सरकार के पास क्या इंतजाम हैं।

मंत्री रविंद्र चौबे ने मंगलवार को कहा, तीन दिन तक लीगल ओपिनियन के लिए विधेयक रुकना चिंता की बात है।

मंत्री रविंद्र चौबे ने मंगलवार को कहा, तीन दिन तक लीगल ओपिनियन के लिए विधेयक रुकना चिंता की बात है।

राजभवन में देरी से सरकार की चिंता बढ़ी

संसदीय कार्य मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा, यह विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ था। महामहिम ने स्वयं कहा था कि विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण के पक्ष में कानून बनना चाहिए। उन्होंने स्टेटमेंट भी दिया था कि जैसे ही बिल उनके पास आएगा वे तत्काल अनुमति जारी कर देंगी। इस आधार पर हम पांच मंत्रियों और प्रशासनिक अधिकारियों ने उसी दिन राजभवन जाकर विधानसभा की कार्रवाई से उन्हें अवगत कराया था। आज तीसरा दिन हो गया। मुझे लगता है कि महामहिम को भी इसमें शीघ्रता करना चाहिए। छत्तीसगढ़ के हजारों-हजार लोगों की नियुक्तियों, भविष्य और अवसर का सवाल है। उम्मीद है कि आज हस्ताक्षर हो जाएगा। लेकिन महामहिम के दफ्तर में केवल लीगल ओपिनियन में तीन-तीन दिन लग जाना हम लोगों को चिंतित करता है।

विधेयकों में आरक्षण का बिल्कुल नया अनुपात

विधानसभा में विपक्ष की ओर से संशोधन प्रस्ताव लाने के बाद भी छत्तीसगढ़ लोक सेवाओं में (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक-2022 और शैक्षणिक संस्थानों में (आरक्षण) संशोधन विधेयक-2022 उसी रूप में पारित हुआ जैसा सरकार चाहती थी। इसमें अनुसूचित जाति के लिए 13%, अनुसूचित जनजाति के लिए 32%, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% आरक्षण की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा जिला कैडर में तृतीय और चतुर्थ वर्ग की भर्तियों में संबंधित जिलों में अनुसूचित जाति और जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण तय होने की व्यवस्था बनी है। पिछड़ा वर्ग के लिए यह 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% ही रहने वाली है।

19 सितम्बर तक 58% था आरक्षण

छत्तीसगढ़ की सरकारी नौकरियों और शिक्षा में अभी 19 सितम्बर तक 58% आरक्षण था। इनमें से अनुसूचित जाति को 12%, अनुसूचित जनजाति को 32% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण लागू था। कुछ हद तक सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 10% आरक्षण की व्यवस्था थी। 19 सितम्बर को आए बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खत्म हो गया। उसके बाद सरकार ने नया विधेयक लाकर आरक्षण बहाल करने का फैसला किया था। 24 नवम्बर को कैबिनेट ने नये विधेयक को मंजूरी दी। दो अक्टूबर को इसे विधानसभा से पारित करा लिया गया।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई फैसलों में आरक्षण के लिए एक सीमा का निर्धारण किया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई फैसलों में आरक्षण के लिए एक सीमा का निर्धारण किया है।

लागू होने के बाद कानूनी पचड़े में फंसने की संभावना प्रबल

संविधानिक मामलों के विशेषज्ञ बी.के. मनीष का कहना है, राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा। राजपत्र में प्रकाशित होने के साथ ही सरकार इसे लागू करने की स्थिति में होगी। इस कानून में कुछ तकनीकी अड़चने हैं जो इसे लंबी कानूनी लड़ाई में फंसा सकती हैं। ऐसा हुआ तो आरक्षित वर्गों का नुकसान होगा। सबसे पहली बात यह कि अधिनियमों में सिर्फ जनसंख्या के आधार पर आरक्षण तय किया गया है। यह 1992 में आए मंडल फैसले और 2022 में ही आए पीएमके (तमिलनाडु) बनाम माईलेरुमपेरुमाल फैसले का उल्लंघन है।

OBC को 27% आरक्षण देने का फ़ैसला 42 साल पुरानी मंडल आयोग की केंद्र शासन अधीन सेवाओं पर दी गई सिफारिश पर आधारित है। यह भी 2021 में आए मराठा आरक्षण फैसले का उल्लंघन है। कुल आरक्षण का 50% की सीमा से बहुत अधिक होना भी एक बड़ी पेचीदगी है। अनुसूचित क्षेत्र को इस बार विशिष्ट परिस्थिति के तौर पर पेश किया गया लेकिन वर्ग एक और दो की नौकरियों में अनुसूचित क्षेत्रों की कोई अलग हिस्सेदारी ही नहीं है। यह 1992 के मंडल फैसले का उल्लंघन है। प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आंकड़े विभाग-श्रेणीवार जमा किए गए हैं न कि कॉडरवार। यह भी मंडल फैसले और 2022 के जरनैल सिंह फैसले का उल्लंघन है।