छत्तीसगढ़ः प्रदेश की आबादी में 41% लोग ही OBC, क्वांटिफायबल डाटा आयोग ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट, अभी तक 52% होने का था दावा

रायपुर। सेवानिवृत्त जिला जज छविलाल पटेल की अध्यक्षता में बने क्वांटिफायबल डाटा आयोग ने राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। आयोग ने सर्वेक्षण में पाया है कि प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग-OBC की आबादी 41% है। वहीं सामान्य वर्ग के गरीबों की कुल संख्या आबादी के 3% तक पाई गई है। जनगणना में OBC का अलग से वर्गीकरण नहीं होने से यह संख्या अभी तक अनुमानों पर आधारित थी। माना जाता था कि प्रदेश में OBC वर्ग की आबादी 52% से 54% तक है।

सरकार ने अभी आयोग की रिपोर्ट के तथ्यों को सार्वजनिक नहीं किया है। प्रशासनिक सूत्रों का कहना है, छत्तीसगढ़ की आबादी दो करोड़ 94 लाख अनुमानित है। पिछले दो साल तक ऐप और वेबसाइट के माध्यम से सर्वेक्षण के बाद क्वांटिफायबल डाटा आयोग ने एक करोड़ 20 लाख से कुछ अधिक लोगों का आंकड़ा जुटा लिया है। ये लोग अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों से आते हैं। इस मान से यह आंकड़ा केवल 41% होता है। बताया जा रहा है, दुर्ग जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वाधिक 72% आबादी पिछड़ा वर्ग की है।

दुर्ग के शहरी क्षेत्रों में इस वर्ग की आबादी 40%-41% आ रही है। बेमेतरा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में 62% आबादी पिछड़े वर्गों की है। वहीं रायपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में भी इनकी आबादी 61%-62% बताई जा रही है। प्रदेश के आदिवासी बहुल अधिसूचित क्षेत्रों में पिछड़ा वर्ग की आबादी 30-35% ही बताई जा रही है। सरकार इस रिपोर्ट को 24 नवम्बर को प्रस्तावित राज्य कैबिनेट की बैठक में चर्चा के लिए लाएगी। वहां से मंजूरी मिली तो इसे विधानसभा के पटल पर भी रखा जाएगा।

पिछड़ा वर्ग समाज के संगठनों का दावा है कि उनकी आबादी 52 से 54% तक है, लेकिन सरकारी सर्वेक्षण में यह उससे कम निकला है।

पिछड़ा वर्ग समाज के संगठनों का दावा है कि उनकी आबादी 52 से 54% तक है, लेकिन सरकारी सर्वेक्षण में यह उससे कम निकला है।

एक महीने की कवायद के बाद भी नहीं बढ़ा आंकड़ा

क्वांटिफायबल डाटा आयोग ने अगस्त महीने में ही अपनी रिपोर्ट की एक संक्षेपिका बना ली थी। इसमें बताया गया था कि तब तक के सर्वे के मुताबिक प्रदेश की आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 40-41% हो रही है। इसकी जानकारी राज्य सरकार को भी दी गई थी। उसके बाद सरकार ने आयोग को एक महीने का अतिरिक्त समय दिया। सर्वेक्षण के पोर्टल को फिर से खोला गया। सभी कलेक्टरों, संभाग आयुक्तों, नगरीय निकायों और पंचायत के अफसरों को बचे हुए लोगों का डाटा फीड कराने की जिम्मेदारी दी गई। बार-बार उसकी समीक्षा हुई, लेकिन एक महीने की कवायद के बाद भी जनसंख्या के आंकड़ों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया।

आरक्षण बचाने में होगा आंकड़ों का उपयोग

राज्य सरकार ने 2019 में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया था। वहीं केंद्र सरकार ने कानून बनाकर सामान्य वर्ग के गरीबों को भी 10% आरक्षण दे दिया। इसकी वजह से प्रदेश की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 82% सीटें रिजर्व हो गई थीं। यह आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट से निर्धारित 50% की सीमा के पार था। प्रभावित वर्गों में कुछ लोगों ने उच्च न्यायालय में इसे चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दिया। सरकार से आरक्षण बढ़ाने के आधार पर अधिकृत आंकड़ा मांगा। इसी के बाद राज्य सरकार ने क्वांटिफायबल डाटा आयोग का गठन किया। बताया जा रहा है, सरकार के रणनीतिकारों को रास आया तो इसका उपयोग न्यायालय में भी किया जाएगा।

राज्य सरकार इन आंकड़ों का सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भी उपयोग कर पाएगी।

राज्य सरकार इन आंकड़ों का सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भी उपयोग कर पाएगी।

पिछले साल सितम्बर से शुरू हुआ था सर्वेक्षण

छत्तीसगढ़ सरकार ने क्वांटिफायबल डाटा आयोग का गठन 2019 में किया था। इस आयोग को राज्य की जनसंख्या में अन्य पिछड़ा वर्ग एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के व्यक्तियों का सर्वेक्षण कर क्वांटिफायबल डाटा पेश करने की जिम्मेदारी दी गई। आयोग ने राज्य सरकार की सूचना प्रौद्योगिकी संस्था चिप्स से निर्मित मोबाइल ऐप और वेब पोर्टल के जरिए सर्वे शुरू किया। यह काम एक सितंबर 2021 से शुरू हुआ। सर्वे का काम समय पर पूरा नही होने की वजह से इसका कार्यकाल नौ बार बढ़ाया गया। सितम्बर 2022 में आखिरी बार इसका कार्यकाल बढ़ाकर 31 अक्टूबर किया गया था।