नईदिल्ली I जम्मू कश्मीर कठुआ गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी शुभम सांगरा पर नाबालिग नहीं बल्कि बालिग के तौर पर मुकदमा चलाने का आदेश दिया है. कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें इसको जुवेनाइल बताया गया था. जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि किसी आरोपी की उम्र तय करने के लिए अगर कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं तो ऐसी स्थिति में ‘ मेडिकल ओपिनियन ‘ को ही सही तरीका माना जायेगा. जस्टिस अजय रस्तोगी व जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन की अपील पर फैसला सुनाया है.
जस्टिस पारदीवाला ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि मेडिकल साक्ष्य पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं, यह साक्ष्य के मूल्य पर निर्भर करता है. ऐसे में सीजेएम कठुआ द्वारा पारित आदेश को रद्द किया जाता है और ऐसी स्थिति में आरोपी को अपराध के समय किशोर नहीं माना जाता है. अभियुक्त की आयु सीमा निर्धारित करने के लिए किसी अन्य निर्णायक सबूत के अभाव में उम्र के संबंध में चिकित्सा राय पर विचार किया जाता है, जो स्पष्ट है. आरोपी के खिलाफ बालिग के तौर पर मुकदमा चलाया जाए.
जम्मू कश्मीर प्रशासन ने दायर की थी याचिका
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने याचिका दायर की थी. इसमें कहा गया कि 2018 में अपराध के वक्त आरोपी बालिग था और हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश की पुष्टि कर गलती की है. 11 अक्तूबर 2018 को हाईकोर्ट ने 27 मार्च, 2018 के निचली अदालत ने इस मसले पर आदेश दिया था. याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट ने यह परीक्षण भी नहीं किया कि आरोपी की जन्मतिथि के बारे में निगम और स्कूल के रिकॉर्ड में विरोधाभास है.
10 जनवरी, 2018 की वो मनहूस तारीख
इसी साल छह जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को नोटिस जारी किया था. याचिका में कहा गया कि आरोपी वारदात के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक था. 21 फरवरी, 2018 को हाईकोर्ट के आदेश पर गठित मेडिकल बोर्ड ने भी घटना के समय आरोपी की आयु 19 से 23 साल के बीच मानी थी. 10 जनवरी, 2018 का दिन शायद ही कोई भूल पाया हो. एक मासूम बच्ची का अपहरण कर कई दिनों तक उसके साथ गैंगरेप किया गया था. इसके बाद उसकी हत्या कर दी गई थी.
अब तक क्या हुआ केस में?
सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई 2018 को इस मामले को कठुआ से पंजाब के पठानकोट में ट्रांसफर कर दिया था और रोजाना सुनवाई के आदेश दिए थे. पठानकोट की विशेष अदालत ने 10 जून, 2018 को एक मंदिर के पुजारी सांजीराम समेत तीन मुख्य आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी जबकि मामले में सुबूत मिटाने के लिए तीन पुलिसवालों को पांच वर्ष जेल की सजा और 50-50 हजार जुर्माने की सजा सुनाई थी. वहीं, सांजीराम के बेटे विशाल को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया था.