बेंगलुरु I कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में स्थित मुरुगा मठ की ओर से संचालित एक स्कूल की लड़कियों ने वहां के पूर्व मुख्य पुजारी शिवमूर्ति मुरुगा शरणारू पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. अब पुलिस ने इस मामले में दावा किया है कि शरणारू पर कम से कम 4 लड़कियों का यौन शोषण का आरोप है. पुलिस ने कहा है कि शरणारू सेब में ड्रग्स डालकर लड़कियों को खिलाता था, इसके बाद उनका नाबालिगों का रेप करता था.
चित्रदुर्ग जिले के मुरुगा मठ के एक स्कूल में पढ़ने वाली दो लड़कियों ने मठ के मुख्य पुजारी शिवमूर्ति मुरुगा शरणारू द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने की शिकायत की थी. इसके बाद आरोपी को एक सितंबर को गिरफ्तार किया गया था. उसके खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज करने के बाद यह कार्रवाई की गई थी. यह केस 27 अगस्त को दर्ज किया गया था. इसके अलावा शरणारू के खिलाफ दो अन्य लड़कियों की शिकायत पर एक और पॉक्सो एक्ट का केस दर्ज किया गया था.
चित्रदुर्ग पुलिस ने मुरुघा मठ के प्रमुख संत शिवमूर्ति मुरुघा शरणारू के खिलाफ जिला अदालत में 694 पन्नों का आरोप पत्र दायर किया था. शरणारू पर नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है. पुलिस ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र अदालत में लिंगायत संत, छात्रावास के वार्डन और एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया था.
छह लोगों को आरोपी बनाया
आश्रम के छात्रावास में रह रही लड़कियों ने आरोप लगाया था कि शरणारू ने उनका यौन उत्पीड़न किया है. शरणारू के खिलाफ अब तक तीन प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी हैं. तीसरी प्राथमिकी में शरणारू और छात्रावास के वार्डन समेत छह लोगों को आरोपी बनाया गया है. वहीं कर्नाटक हाईकोर्ट ने अक्टूबर के आखिर में मुरुगा मठ बलात्कार मामले की कथित पीड़िताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को वकालतनामा की वैधता के संदर्भ में आरोपी पुजारी शिवमूर्ति मुरुगा शरणारू के दावों पर अपनी आपत्तियां दर्ज कराने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था.
वकालतनामा की वैधता पर सवाल
मुख्य पुजारी शिवमूर्ति मुरुगा शरणारू ने पीड़िताओं की ओर से दायर वकालतनामा की वैधता को लेकर सवाल खड़े किए हैं. पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामले में मठ का पुजारी एक सितम्बर से हिरासत में है. पुजारी के वकील स्वामीनी गणेश मोहनंबल ने दलील दी कि मणि नामक व्यक्ति ने दोनों लड़कियों का अभिभावक होने का दावा करते हुए वकालतनामा दाखिल किया है, लेकिन यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है कि कथित पीड़िताओं ने वकालतनामे की सहमति दी है.