नई दिल्ली। तेल निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) अपने हर दिन के क्रूड ऑयल के उत्पादन में 2 मिलियन (20 लाख) बैरल की कटौती करने पर विचार कर रहा है। यह समूह जल्दी ही इस कटौती पर चर्चा करने जा रहा है। अगर ऐसा होता है तो भारत समेत दुनिया के कई देशों में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में तेजी आ सकती है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कई देश अपनी क्षमता से कम ईंधन का इस्तेमाल कर रहे हैं इसलिए इस फैसले का असर उतना व्यापक नहीं होगा। लेकिन भारत के बाजार में इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। क्योंकि भारत अपनी जरूरत का 70 फीसदी कच्चा तेल ओपेक देशों से ही मंगाता है। इसलिए त्योहार के बाद भारत में ईंधन की कीमतों में एक बार फिर बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि उत्पादन में कटौती से नवंबर से तेल की वैश्विक आपूर्ति दो प्रतिशत कम हो जाएगी। इसके कारण आगे चलकर तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। सरकार ने पिछले कुछ समय से ईंधन के खुदरा दाम में बढ़ोतरी नहीं की है। खासकर उस समय जब भारत में खुदरा दाम अंतरराष्ट्रीय मूल्य की तुलना में 12 से 14 फीसदी कम थे। इसकी वजह से वित्त वर्ष 2023 की पहली तिमाही में ज्यातर तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को राजस्व का नुकसान हुआ है। ओएमसी आगे कीमतें कम करने के पहले अपने नुकसान की भरपाई करेंगी। अगस्त से महंगाई दर के आधार का विपरीत असर शुरू हुआ है, इसकी वजह से भी सरकार कीमत बढ़ा सकती है।
सरकार के भी हाथ बंधे हैं
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी सहित सरकार ने कई बार जोर देकर कहा है कि ओएमसी को नुकसान की भरपाई के लिए और वक्त की जरूरत है, जो नुकसान वैश्विक दाम ज्यादा रहने पर उन्होंने उठाया है। ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि पेट्रोल पंप पर कीमतें बढ़ेंगी। पिछले महीने पुरी ने कहा था कि ज्यादातर विकसित देशों में तेल की कीमत में बढ़ोतरी हुई है। बहरहाल भारत में सरकार के समर्थन के कारण इसमें दो फीसदी की कमी आई। उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक कीमत में लगातार तेजी से सरकार के हाथ भी बंधेंगे।
चुनाव को देख फैसला लेगी सरकार
विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादा कीमत होने से स्वाभाविक रूप से तेल की कीमतें बढ़ेंगी, सरकार इसे लागू करने में थोड़ा वक्त लेगी। ओपेक के उत्पादन में बदलाव और उसके असर में सामान्यतया 3 महीने का वक्त है। कीमतों की चाल में सरकार का हस्तक्षेप जारी रहेगा और कीमत में बढ़ोतरी के पहले सरकार राज्य विधानसभा चुनावों सहित कई अन्य गतिविधियों पर नजर रखेगी। हालांकि दो राज्यों के चुनाव ज्यादा असर नहीं डालेंगे। तेल उत्पादन करने वाले सभी 13 प्रमुख देशों के संगठन, जिसमें सऊदी अरब, ईरान, इराक, और वेनेजुएला के साथ अन्य शामिल हैं। इसके सदस्य देश वैश्विक तेल उत्पादन का 44 फीसदी उत्पादन करते हैं। 2018 तक के आंकड़ों के मुताबिक मिले तेल भंडारों में 81.5 फीसदी इनके पास हैं। सितंबर में इस समूह ने कच्चे तेल के उत्पादन में अक्तूबर से 1,00,000 बैरल प्रति दिन की कटौती करने की घोषणा की थी।