दशहरा पर्व पर नीलकंठ का दर्शन होता है शुभ।
रायपुर। असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक विजयादशमी पर्व पर अब नीलकंठ का दर्शन दुर्लभ हो गया है। छत्तीसगढ़ में बेरोकटोक शिकार के साथ ही मोबाइल टॉवर और कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल की वजह से यह पक्षी विलुप्त होने के कगार पर है।
दशहरा के दिन नीलकंठ के दर्शन करने की प्राचीन परंपरा रही है। यह किसानों के लिए मित्र पक्षी भी है। ऐसा इसलिए क्योंकि, वह फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाता। बल्कि, फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़े को वह खा जाता है।
वन विभाग के पास पक्षी का आधिकारिक आंकड़ा नहीं है
पिछले दो दशक में नीलकंठ पक्षी की संख्या काफी तेजी से घटी है। शहर के साथ-साथ अब गांव में भी इसका दर्शन दुर्लभ हो गया है। इंटरनेशनल यूनियन ऑफ नेचर कंजर्वेशन ने भी इसे विलुप्तप्राय पक्षी की श्रेणी में रखा है। वन विभाग के अफसरों के पास नीलकंठ की संख्या का अधिकारिक आंकड़ा नहीं है और न ही इसकी गणना को लेकर वन विभाग ने कभी काम किया है। वहीं, पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले दो दशक में इसकी संख्या बहुत कम हो गई है। हालांकि, कोटा के मोहनभाठा और आसपास के जंगल के साथ ही अचानकमार अभयारण्य और सोंठी में यह पक्षी कभी कभार नजर आते हैं। धर्मशास्त्र के मुताबिक विजयादशमी पर्व पर नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना शुभ माना जाता है।
इन चार राज्यों में नीलकंठ को मिला है राज्य पक्षी का दर्जा
अपने खूबसूरत नीले पंखों के कारण यह पक्षी पर्यावरण और पक्षी प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसे बिहार, ओडिशा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में राज्य पक्षी का दर्जा दिया गया है। इन चार राज्यों में नीलकंठ के शिकार पर बैन लगा है। बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ में इसके बेरोकटोक शिकार होता रहा है, जिसकी वजह से अब यह विलुप्त होने की स्थिति में है।
पेड़ों की कटाई भी है विलुप्त होने के प्रमुख कारण
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि नीलकंठ पीपल, बरगद जैसे पुराने और विशालकाय पेड़ों में अपनी जगह बनाते रहे हैं। बड़े पेड़ों की खोदर नीलकंठ के प्रजनन के लिए उपयुक्त माना जाता है। आधुनिकता के इस दौर में बेतरतीब निर्माण कार्य एवं आधारभूत संरचना के लिए पुराने पेड़ों की कटाई होने के कारण भी नीलकंठ का प्राकृतिक जगह छीन रहा है।
रेडिएशन से कम हो रही प्रजनन क्षमता
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि मोबाइल टॉवर से निकलने वाले रेडिएशन से नीलकंठ की प्रजनन क्षमता कम हो रही है। यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों में भी इसकी संख्या में भारी कमी आई है। इनकी विलुप्ति का कारण प्रजनन क्षमता में कमी भी मुख्य कारण है।
कीटनाशक का प्रयोग बन रहा काल
नीलकंठ एक कीड़ा भक्षी चिड़िया है, जो छोटे सांप, गिरगिट छोटे मेंढक, कीड़े-मकोड़े, छिपकली और छोटे चूहों को मारकर खा जाता है। इसे किसानों का मित्र पक्षी भी कहा जाता है। कीट भक्षी नीलकंठ फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़े का भक्षण करता है। इस पक्षी की संख्या कम होने से खेती के लिए नुकसानदायक कीड़ों से उत्पादन पर भी असर हो रहा है। वहीं, खेती कार्य के लिए कीटनाशक का धड़ल्ले से प्रयोग किए जाने से भी इसकी संख्या कम हो रही है।
भगवान शिव का अवतार है नीलकंठ, श्रीराम ने दर्शन के बाद किया था रावण वध
ज्योतिषाचार्य और पुराणों के जानकारों और मान्यता के मुताबिक कि श्रीराम ने नीलकंठ का दर्शन करने के बाद ही रावण का वध किया था। इसे भगवान शिव का रूप माना जाता है। भोलेनाथ को नीलकंठ के नाम से भी पुकारा जाता है। शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन ने दौरान जब विष से भरा कलश निकला तो भगवान शिव ने विश्व को बचाने के लिए उसे पी लिया जिसके बाद उनका गला नीला पड़ गया। इस कारण से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। नीला रंग होने के साथ-साथ इस पक्षी के कंठ में गाढ़ा नीला रंग बना रहता है, जिसके कारण इस पक्षी को भी भगवान शिव का ही रूप माना जाता है और इसे नीलकंठ के नाम से जाना जाता है।