रायपुर। छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के सवेक्षण के लिए बने क्वांटिफायबल डाटा आयोग एक साल भी पर्याप्त आंकड़े नहीं जुटा पाया है। बताया जा रहा है कि अभी तक के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में OBC की कुल आबादी 41% हो रही है। यह अनुमान से बेहद कम है। अब सरकार ने आयोग का कार्यकाल एक बार फिर से बढ़ा दिया है। शुक्रवार से सर्वे का पोर्टल फिर से खोल दिया गया ताकि नए आंकड़े जुटाए जा सके।
सामान्य प्रशासन विभाग ने शुक्रवार को विस्तार में निर्देश जारी कर दिए। सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह ने सभी कलेक्टरों को उनके जिले में अन्य पिछड़ा वर्ग के व्यक्तियों के डाटा की जानकारी आवश्यक रूप से क्वांटिफायबल डाटा आयोग के पोर्टल में दर्ज कराने के निर्देश जारी किए हैं। कलेक्टरों को भेजे गए पत्र में उन्होंने बताया है, अन्य पिछड़ा वर्ग एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के सर्वे के लिए इन वर्गों के जिन व्यक्तियों ने आयोग के पोर्टल में अब तक पंजीयन नहीं कराया है या जो छूट गए हैं, उनके लिए पंजीयन का यह अंतिम अवसर है। राज्य में कुछ स्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग की अनुमानित जनसंख्या के अनुरूप डाटा प्राप्त नहीं हुए हैं। इसमें अपेक्षित प्रगति हेतु कलेक्टरों को जिले में अन्य पिछड़ा वर्ग के व्यक्तियों के डाटा की जानकारी आयोग के पोर्टल में आवश्यक रूप से दर्ज कराने कहा गया है।
दरअसल छत्तीसगढ़ में OBC की आबादी सामान्य रूप से 52% मानी जाती है। बताया जा रहा है, अभी तक पूरी आबादी में एक करोड़ 20 लाख लाख के आसपास ही का डेटा जुटाया जा सका है। जो आंकड़े जुटाए गए हैं उसके मुताबिक यह आबादी वास्तविक रूप से केवल 41% हो रही है। वहीं आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग की आबादी 2 से 3% के बीच है। दुर्ग जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वाधिक 72% आबादी OBC की है। दुर्ग के शहरी क्षेत्रों में OBC की आबादी 40% आ रही है। बेमेतरा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में 62% आबादी OBC की है। वहीं रायपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में भी OBC की आबादी 61% आ रही है। प्रदेश के अनुसूचित क्षेत्रों में OBC की आबादी 30-35% ही बताई जा रही है।
प्रदेश में सबसे बड़ी आबादी पिछड़ा वर्ग की ही मानी जाती है।
आरक्षण बचाने की कवायद में शुरू हुआ था सर्वेक्षण
राज्य सरकार ने 2019 में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया था। वहीं केंद्र सरकार के कानून के मुताबिक आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को भी 10% आरक्षण दे दिया था। इसकी वजह से कुल आरक्षण निर्धारित सीमा 50% से अधिक हो गया। प्रभावित वर्गों में कुछ लोगों ने उच्च न्यायालय में इसे चुनौती दी।उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दिया। सरकार से आरक्षण बढ़ाने के आधार पर अधिकृत आंकड़ा मांगा। इसी के बाद राज्य सरकार ने क्वांटिफायबल डाटा आयोग का गठन किया।
इस तरह के एप के जरिए लोगों से अपना विवरण देने को कहा गया था।
आयोग ने पोर्टल और एप से डेटा मंगाया
क्वांटिफायबइल डाटा आयोग का गठन 2019 में हुआ। काफी समय तक आयोग काम शुरू नहीं कर पाया। उसके बाद सिविल लाइंस के सागौन बंगला परिसर में आयोग को कार्यालय मिला। काम शुरू हुआ तो खाद्य विभाग के डेटा से शुरुआती आंकड़े लिए गए। उसके बाद छत्तीसगढ़ इंफोटेक सोसायटी (चिप्स) ने सर्वेक्षण के लिए एक एप्लिकेशन बनाया। इसके जरिए सर्वेक्षण का काम शुरू हुआ। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपना व्यक्तिगत विवरण डालकर सर्वेक्षण की शुरुआत की। इस बीच आयोग का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा। आखिरी बार 31 अगस्त तक के लिए आयोग का कार्यकाल बढ़ाया गया था। अब इसे बढ़ाकर 31 अक्टूबर कर दिया गया है।
एप में आए विवरण का गांवों-शहरों में सत्यापन कराया है
बताया जा रहा है, सर्वेक्षण की कवायद में आयोग ने 5 हजार 549 सुपरवाइजर नियुक्त किए। शहरी क्षेत्रों में इनकी संख्या 1 हजार 103 तथा ग्रामीण क्षेत्र के लिए 4 हजार 446 थी। इनके जरिए एप में दर्ज हर विवरण का सत्यापन कराया गया। जिला प्रशासन के साथ सामाजिक संगठनों को भी इसमें जोड़ा। जो सूची बनी उसपर दावा आपत्ति मंगाया। उसको ग्राम सभा और नगरीय निकायों की सामान्य सभा में पेश कर अनुमोदन कराया गया ताकि फर्जीवाड़े की संभावना न रह जाए।