
चिरमिरी । जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में अनंतनाग निवासी कपड़ा व्यापारी नजाकत अहमद शाह (28) ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के 11 लोगों की जान बचाई। हमले के दौरान नजाकत ने चिरमिरी के चार दंपतियों सुभाष जैन, हैप्पी बढ़वान, लकी पाराशर, और टीटू अग्रवाल तथा उनके तीन बच्चों को सुरक्षित निकाला। इस घटना में उनके सगे मामा आदिल हुसैन शाह की गोली लगने से मौत हो गई, लेकिन नजाकत ने हिम्मत नहीं हारी और सभी को श्रीनगर एयरपोर्ट तक सुरक्षित पहुंचाया।

घटना पहलगाम से सात किलोमीटर दूर बेसरन घाटी, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ भी कहा जाता है, में घटी। चिरमिरी के ये परिवार 18 अप्रैल को गर्मी की छुट्टियां मनाने जम्मू-कश्मीर गए थे। 22 अप्रैल को घोड़े पर सवार होकर बेसरन घाटी घूमने गए थे, तभी आतंकियों ने अचानक फायरिंग शुरू कर दी। बच्चे रोने लगे, लेकिन नजाकत ने सूझबूझ दिखाते हुए एक बच्चे को पीठ पर और एक को गोद में लेकर चारों दंपतियों को पार्किंग स्थल तक सुरक्षित पहुंचाया।
बलरामपुर-रामानुजगंज और चिरमिरी में गर्म कपड़े बेचने आते
नजाकत पिछले 15 वर्षों से सरगुजा संभाग के विभिन्न जिलों, विशेष रूप से बलरामपुर-रामानुजगंज और चिरमिरी, में सर्दियों में गर्म कपड़े बेचने आते हैं। उनके पिता भी करीब 30 वर्षों तक यही काम करते थे। इस दौरान सरगुजा के कई परिवारों से उनके पारिवारिक रिश्ते बन गए। पिछले साल बलरामपुर में नजाकत ने कई लोगों को गर्म कपड़े बेचे थे और उनकी ईमानदारी की क्षेत्र में सराहना होती है।
नजाकत अपने मामा आदिल हुसैन शाह के जनाजे में शामिल नहीं हो सके
हमले के बाद नजाकत अपने मामा आदिल हुसैन शाह के जनाजे में शामिल नहीं हो सके, क्योंकि उनकी प्राथमिकता परिचित परिवारों को सुरक्षित श्रीनगर एयरपोर्ट पहुंचाना थी। आदिल हुसैन शाह भी 2010 से सरगुजा संभाग में गर्म कपड़े बेचने आ रहे थे। नजाकत की बहादुरी की सरगुजा और कश्मीर दोनों जगह प्रशंसा हो रही है। स्थानीय प्रशासन और छत्तीसगढ़ के लोगों ने नजाकत के साहस को सलाम किया है। कुलदीप स्थापक के मामा राकेश परासर ने बताया, ‘नजाकत की सूझबूझ ने हमारे परिवारों को बचा लिया। वह हमारे लिए फरिश्ता बनकर आए।’ नजाकत की इस मानवीयता ने सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश की है।