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नईदिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों को लेकर सख्ती जताई है। कोर्ट ने ऐसे विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए सरकार को तंत्र बनाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाए, जिसके जरिये भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों के खिलाफ आम नागरिक शिकायत दर्ज करा सके। शीर्ष अदालत ने औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम के महत्व पर भी बल दिया और कहा कि इसका कार्यान्वयन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने मामले की सुनवाई की और वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत (न्याय मित्र) से अगली तारीख तक अधिनियम के कार्यान्वयन पर एक नोट पेश करने को कहा। यह अधिनियम भारत में दवाओं के विज्ञापन को नियंत्रित करता है। यह उन दवाओ और उपचारों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है जो जादुई गुणों का दावा करते हैं और ऐसा करना एक संज्ञेय अपराध बनाता है।
जस्टिस ओका ने मौखिक रूप से फरासत से कहा कि उक्त अधिनियम के तहत सबसे पहले तंत्र स्थापित करना होगा। यह सबसे महत्वपूर्ण अधिनियमों में से एक है। अपना नोट रिकॉर्ड पर रखें। हम विशेष रूप से व्यापक निर्देश पारित करेंगे। हम पूरा तंत्र स्थापित करने का निर्देश देंगे। अभियोजन अवश्य चलाया जाना चाहिए। शिकायत निवारण तंत्र तो होना ही चाहिए। अगर कोई नागरिक शिकायत करना चाहता है, तो वह कैसे शिकायत करेगा? हम कुछ समर्पित फोन लाइन या कुछ और बनाने का निर्देश देंगे ताकि लोग शिकायत दर्ज कर सकें। यह काम पहले ही किया जाना चाहिए था।
जस्टिस ओका ने फरासत से अधिनियम के प्रावधनों, इसके तहत आवश्यक अनुपालन और राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में इसे लागू करने के लिए अपेक्षित तंत्र मौजूद है या नहीं, इस पर भी कोर्ट को जानकारी देने को कहा। पिछले साल 7 मई को अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे अपने लाइसेंसिंग प्राधिकारियों से औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 का उल्लंघन करने वाले भ्रामक विज्ञापनों के संबंध में 2018 से की गई कार्रवाई के बारे में हलफनामा दाखिल करें। यह भी कहा था कि वे कानूनों के अनुपालन के लिए दंड और निवारक उपाय लगाने में अपनी निष्क्रियता के बारे में भी स्पष्टीकरण दें।