‘दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप…’, बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा पर याचिका खारिज

Can't comment on internal affairs of another country: SC refuses the PIL on protection of Hindus in Bangladesh

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह मामला विदेशी मामलों से जुड़ा है और भारत की न्यायपालिका किसी दूसरे देश के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी नहीं कर सकती। मामले में सीजेआई संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली और मामला खत्म कर दिया गया।  

यह याचिका लुधियाना के व्यवसायी और समाजसेवी राजेश धांडा ने दायर की थी, जो भगवान जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव समिति, लुधियाना के अध्यक्ष और इस्कॉन मंदिर संचालन बोर्ड के उपाध्यक्ष भी हैं। इस याचिका में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा को रोकने और भारत में शरण लेने वाले हिंदुओं को नागरिकता के लिए आवेदन करने की समय सीमा बढ़ाने की मांग की गई थी।  

सरकार को क्या निर्देश देने की मांग की गई थी?
इस याचिका में केंद्र सरकार से यह मांग की गई थी कि – बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत तुरंत कूटनीतिक या अन्य कदम उठाए जाएं। वहीं विदेश मंत्रालय (एमईए) और गृह मंत्रालय (एमएचए) को निर्देश दिया जाए कि वे बांग्लादेश में भारतीय उच्चायोग को पीड़ित हिंदू अल्पसंख्यकों को सहायता देने के लिए कहें। इसके साथ ही केंद्र सरकार संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) जैसे मंचों का उपयोग कर बांग्लादेश में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों का मुद्दा उठाए।

याचिका में क्या दलील दी गई थी?
बता दें कि, याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं, सिखों, जैनियों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति बेहद खराब है। हाल ही में बांग्लादेश में लोकतांत्रिक सरकार के पतन के बाद धार्मिक कट्टरपंथियों ने अल्पसंख्यकों पर हमले तेज कर दिए हैं। वहां हत्या, अपहरण, संपत्तियों की जब्ती और अन्य आपराधिक की घटनाएं बढ़ रही हैं। भारत सरकार को इस मामले में राजनीतिक दबाव बनाना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत जरूरी कदम उठाने चाहिए।

नागरिकता कानून (सीएए) में बदलाव की मांग
इस याचिका में कहा गया कि नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 (सीएए) के तहत शरणार्थियों के लिए 31 दिसंबर 2014 की कट-ऑफ तारीख तय की गई है। लेकिन बांग्लादेश में हाल ही में हिंदुओं पर हुए हमलों को देखते हुए यह तारीख बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि नए पीड़ितों को भी भारत की नागरिकता मिल सके।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला भारत के विदेश नीति से जुड़ा है और न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। कोर्ट ने आगे कहा कि भारत किसी दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं दे सकता।