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मुम्बई : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के तीन महीने बाद ही उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) को लगातार झटके लगने शुरू हो गए हैं। हाल के दिनों में पार्टी के कई दिग्गज नेता एकनाथ शिंदे के खेमे में शामिल हो रहे हैं। हाल ही में, तीन बार के विधायक और ठाकरे परिवार के कट्टर समर्थक राजन साल्वी ने अपने समर्थकों के साथ शिंदे गुट का दामन थाम लिया। इसके अलावा, कोंकण क्षेत्र के एक अन्य पूर्व विधायक और शिवसेना (यूबीटी) के कई पदाधिकारी भी शिंदे की पार्टी में शामिल हो चुके हैं। पार्टी छोड़ने वालों में महिला शाखा की प्रमुख नेता राजुल पटेल भी शामिल हैं, जिससे ठाकरे गुट की स्थिति और कमजोर होती दिख रही है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बमुश्किल तीन महीने बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को कई नेताओं के पार्टी छोड़ने से झटका लगा है। कई पार्टी पदाधिकारी और यहां तक कि पूर्व विधायक भी पार्टी छोड़ चुके हैं। पार्टी छोड़ने वाले बड़े नामों में राजन साल्वी का नाम भी शामिल हैं, जो तटीय कोंकण क्षेत्र के रत्नागिरी जिले की राजापुर विधानसभा सीट से तीन बार विधायक रहे हैं।
ठाकरे परिवार के कट्टर समर्थक साल्वी इस महीने की शुरुआत में अपने समर्थकों के साथ उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना में शामिल हो गए। कुछ दिनों बाद कोंकण के एक और पूर्व विधायक कई शिवसेना (यूबीटी) पदाधिकारियों के साथ शिंदे की पार्टी में शामिल हो गए। पिछले सप्ताह, पूर्व पार्षद, शिवसेना (यूबीटी) की महिला शाखा की नेता और ठाकरे की कट्टर वफादार राजुल पटेल ने पार्टी छोड़ दी।
पार्टी कार्यकर्ताओं से बोले ठाकरे- हमारे साथ विश्वासघात हुआ
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, ठाकरे परिवार के लिए पटेल और साल्वी जैसे नेताओं का जाना संगठनात्मक झटके से कहीं अधिक है, क्योंकि उन्हें पहले परिवार पर काफी हद तक भरोसा था। हाल ही में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए ठाकरे ने दलबदल का जिक्र किया और खुद को विश्वासघात का शिकार बताया। खुद को नीचा दिखाने के अंदाज में उन्होंने अपनी स्थिति की तुलना जापानियों से की और कहा कि जब भूकंप के झटके नहीं आते तो वे ज्यादा हैरान होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनके अपने लोगों का इस्तेमाल उन्हें निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है।
2022 में उद्धव ठाकरे को लगा अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा झटका
2022 में, बाल ठाकरे की ओर से स्थापित शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे को अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा झटका लगा, जब शिंदे ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया और 39 विधायक और 13 सांसद विद्रोह में शामिल हो गए। शिंदे, जिन्होंने भाजपा के साथ मिलकर मुख्यमंत्री पद संभाला था, को बाद में पार्टी का नाम और उसका ‘धनुष-बाण’ चिन्ह मिल गया। ठाकरे के नेतृत्व वाला गुट शिवसेना (यूबीटी) बन गया, जो विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) में भागीदार है। मुख्यमंत्री के रूप में शिंदे का प्रभाव बढ़ने के साथ ही बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के कुछ पार्षद भी उनके साथ आ गए, लेकिन शिवसेना (यूबीटी) कैडर बड़े पैमाने पर ठाकरे के साथ रहा। हालांकि, 2024 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी की हार के बाद से, कैडर अब शिंदे के नेतृत्व वाली सेना में जा रहे हैं। राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से, शिवसेना (यूबीटी) ने 97 पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 20 पर जीत हासिल की। इसके विपरीत, भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति के घटक शिंदे की पार्टी ने 87 सीटों पर चुनाव लड़कर 57 पर कब्जा कर लिया।
शिवसेना (यूबीटी) से नेताओं के चले जाने के बीच उत्साहित शिंदे ने हाल ही में अपनी पार्टी के नेताओं से आग्रह किया कि वे “नगरीय निकाय चुनावों में (ठाकरे की पार्टी को) एक और झटका दें।” सभी महत्वपूर्ण बृहन्मुंबई नगर निगम सहित चुनावों का कार्यक्रम अभी घोषित होना बाकी है।
सेना (यूबीटी) के नेताओं का दावा है कि उनके लोगों को पैसे और केंद्रीय तथा राज्य एजेंसियों के दबाव की मदद से पाला बदलने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इस महीने की शुरुआत में सेना (यूबीटी) के आठ सांसदों ने एकजुट मोर्चा पेश करते हुए कहा कि वे ठाकरे की पार्टी के साथ मजबूती से खड़े हैं। हालांकि, कुछ पार्टी नेता शिवसेना (यूबीटी) से बड़े पैमाने पर दलबदल के पीछे आंतरिक कारणों की ओर भी इशारा किया।
पार्टी छोड़ने वाले नेता बोले- अनुभव व क्षमता के बावजूद नहीं मिल रहा उचित सम्मान
पिछले हफ्ते कोंकण से पार्टी के एकमात्र विधायक भास्कर जाधव ने इस बात पर अफसोस जताया कि उनके अनुभव और बोलने की क्षमता के बावजूद उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला। इस पर शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने स्पष्ट किया कि जाधव की शिकायतों का समाधान किया जाएगा। शिवसेना (यूबीटी) के एक विधायक ने कहा कि कार्यकर्ताओं के साथ बेहतर संवाद स्थापित करने के लिए पार्टी नेतृत्व को अधिक सुलभ होने की जरूरत है। नाम न बताने की शर्त पर एक शिवसेना (यूबीटी) विधायक ने कहा, “शिंदे की सबसे बड़ी खूबी उनकी सुलभता है। इसके विपरीत, उद्धव जी तक पहुंचना बहुत मुश्किल है।”
विधायक ने कहा, “पहुंच एक मुद्दा है और पार्टी नेतृत्व को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। वे जितना अधिक पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं की शिकायतों को सुनेंगे, उतनी ही अधिक प्रत्यक्ष जानकारी उन्हें मिलेगी, जिसे अब उनके सहयोगियों के माध्यम से पहुंचाया जा रहा है।” विधायक ने यह भी कहा कि पार्टी छोड़ने वालों को पता है कि उन्हें अगले पांच साल तक कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं मिलेगा।
शिवसेना मिशन के तहत उद्धव की पार्टी के नेताओं को शामिल कर रही
ठाकरे की पार्टी के एक अन्य विधायक ने कहा कि उनकी पार्टी के नेता कार्यकर्ताओं को नौकरी छोड़ने से रोकने के लिए प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “लेकिन जब वित्तीय पहलू शामिल होते हैं तो ऐसे प्रयासों से बहुत कम परिणाम मिलते हैं।” शिंदे के नेतृत्व वाली सेना ने भी एक मिशन शुरू किया है, जिसे कुछ लोग ‘ऑपरेशन टाइगर’ कहते हैं, ताकि अधिक से अधिक सेना (यूबीटी) नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल किया जा सके। अधिक संख्या में शिवसेना (यूबीटी) कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल करने से असली शिवसेना के रूप में इसकी स्थिति और मजबूत होगी तथा प्रतिद्वंद्वी खेमा कमजोर होगा। राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश अकोलकर ने कहा कि अब सवाल वफादारी का नहीं बल्कि लाभ का है।
अविभाजित शिवसेना के इतिहास पर किताब लिखने वाले अकोलकर ने दावा किया, “ठाकरे के पास अगले पांच सालों के लिए देने के लिए कुछ नहीं है। जो लोग अल्पकालिक लाभ चाहते हैं, वे शिंदे के नेतृत्व वाली सेना में शामिल हो रहे हैं और जो दीर्घकालिक लाभ चाहते हैं, वे भाजपा में शामिल हो रहे हैं।”