
राजिम: पवित्र त्रिवेणी संगम तट पर चल रहे राजिम कुंभ कल्प में संत समागम के शुभारंभ अवसर 21 फ़रवरी से साधु-संतों का आगमन तेज हो गया है. देश के कोने-कोने से पहुंचे तपस्वी संतों की वाणी से जहां वातावरण भक्तिमय हो गया है, वहीं श्रद्धालु भी उनकी दिव्य उपस्थिति से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त कर रहे हैं.
इसी बीच लोमष ऋषि आश्रम में पहुंचे एक विशेष संत श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. ये हैं महंत चंदन भारती, जो जुना अखाड़ा से संबंध रखते हैं और उनके गुरु सुशील भारती हैं. विशेष बात यह है कि उनकी छह फीट लंबी जटा और दाढ़ी ने लोगों का ध्यान खींच लिया है. श्रद्धालु उनके दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए उमड़ पड़े हैं.
16 वर्षों से राजिम कुंभ का हिस्सा
महंत चंदन भारती ने बताया कि वे साल 2006 से लगातार हर साल राजिम कुंभ कल्प में शामिल होते आ रहे हैं. इस बार वे प्रयागराज कुंभ से सीधे यहां पहुंचे हैं. वे अपने तपस्वी जीवन को शिव भक्ति में समर्पित कर चुके हैं और सालभर अलग-अलग स्थानों पर साधना करते हैं.
साधुओं की जटाओं का धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व
साधुओं के जटा धारण करने के पीछे गहरी धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताएं जुड़ी हैं. महंत चंदन भारती के अनुसार, जटा सिर्फ एक पहचान नहीं, बल्कि त्याग, तपस्या और साधना का प्रतीक होती है. वे बताते हैं कि शिव भक्ति में लीन साधु-संत सुख और सुविधाओं का त्याग करते हैं. जंगलों, पहाड़ों, आश्रमों या जहां मन लगे, वहीं साधना करते हैं.
उन्होंने बताया कि सन्यास धारण करने के बाद ही व्यक्ति साधु बनता है और सांसारिक मोह-माया से दूर हो जाता है. उसकी साधना और अनुष्ठान ही उसे आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक ले जाते हैं. शिव भक्तों में जटा धारण करने की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है, जिसका धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व है.
श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति चरम पर
राजिम कुंभ कल्प में देशभर से संत-महात्माओं के आगमन ने इस मेले को और भी भव्य बना दिया है. त्रिवेणी संगम क्षेत्र में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु संतों का दर्शन करने पहुंच रहे हैं. यहां का सात्विक वातावरण, धार्मिक अनुष्ठान और आध्यात्मिक संवाद लोगों को भक्ति और ध्यान की ओर प्रेरित कर रहा है.
राजिम कुंभ कल्प न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि भारतीय संत परंपरा, संस्कृति और आस्था का जीवंत संगम भी है. जैसे-जैसे संत समागम आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे श्रद्धालुओं की संख्या धार्मिक आस्था को लेकर उमड़ने लगा है.