‘स्थानीय नियमों पर बनी इमारत में संचालित हों नर्सरी और प्राथमिक विद्यालय’, CBSE को सुप्रीम कोर्ट का आदेश

sc updates 'Nursery and primary schools should operate in buildings built as per local rules', orders CBSE

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि देश में नर्सरी और प्राथमिक विद्यालयों का संचालन स्थानीय भवन निर्माण नियमों के अनुसार बने भवनों में किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की याचिका पर सुनवाई के दौरान आदेश पारित किया। 

याचिका में सीबीएसई ने शीर्ष अदालत के 13 अप्रैल 2009 के फैसले में दिए गए निर्देशों को लेकर जानकारी मांगी है। कोर्ट ने कहा कि नर्सरी और प्राथमिक विद्यालयों को ऐसे भवनों में स्थापित किया जाना चाहिए, जिनका निर्माण स्थानीय भवन निर्माण नियमों के अनुरूप किया गया हो। 

अपने 2009 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देश दिया था। इसके मुताबिक नर्सरी और प्राथमिक विद्यालयों को एक मंजिला इमारत वाले भवन में संचालित किया जाए। साथ ही भवन में भूतल समेत तीन से ज्यादा मंजिल नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा कोर्ट ने स्कूल की सीढ़ियों लेकर भी निर्देश जारी किए थे। 

कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीबीएसई की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट ने 2009 में आग के खतरों के मद्देनजर यह निर्देश जारी किए थे। अब देश में कई राज्य ऐसे हैं जिनके भवन निर्माण नियमों में आग से बचाव के इंतजामों के साथ चार मंजिला और पांच मंजिला इमारतें तक बनाने की अनुमति है। उन्होंने कहा कि सीबीएसई के मानदंड सुप्रीम कोर्ट के 2009 के फैसले के अनुरूप हैं। 

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2009 के फैसले के बाद राष्ट्रीय भवन संहिता 2016 आई। इसके चलते कई राज्यों के अपने नियमों में बदलाव कर लिया। अब दिक्कत तब आती है जब सीबीएसई के पास मान्यता के लिए आवेदन आता है तो हम सुप्रीम कोर्ट के 2009 के निर्देशों के अनुसार काम करते हैं। 

वकील ने कहा कि राज्यों के भवन निर्माण संबंधी नियम भी आग के सुरक्षा इंतजामों के साथ बहुमंजिला इमारतों के निर्माण पर जोर देते हैं। इसलिए सीबीएसई की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के निर्देशों में ढील दी जाए। ताकि राज्यों के भवन निर्माण नियमों के मुताबिक मान्यता पर अनुमति दी जा सके। इस पर पीठ ने कहा कि 2009 के दो खंडों में बदलाव की जरूरत है।