![Supreme Court: 'आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं, राज्य मनमानी नहीं कर सकते'; सरकारी नौकरियों पर अदालत की अहम टिप्पणी Supreme Court's comment on government jobs said- Reservation is not a fundamental right News In Hindi](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2024/11/14/rajasathana_078408660369c5c5c85145efda23b1cd.jpeg?w=414&dpr=1.0&q=65)
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया से जुड़े मामले में कहा कि आरक्षण का दावा करना भले ही मौलिक अधिकार नहीं है, पर इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य को मनमाने या मनमौजी तरीके से कार्य करने की अनुमति है। अगर कोई राज्य आरक्षण नहीं देने का निर्णय करता है, तो यह तथ्यों व वैध तर्क पर आधारित होना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। शीर्ष कोर्ट ने कहा, सरकारी नौकरियों में मनमानी से समानता के मौलिक अधिकार की जड़ों पर असर होता है। सरकारी नौकरी की प्रक्रिया हमेशा निष्पक्ष, पारदर्शी और संविधानसम्मत होनी चाहिए।
इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने दिया उल्लघंन करार
जस्टिस पंकज मिथल व जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने झारखंड के पलामू में चतुर्थ श्रेणी के पदों की भर्ती के लिए 29 जुलाई, 2010 को जारी विज्ञापन को स्थापित कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करार दिया। पीठ ने कहा, विज्ञापन में कुल पदों की संख्या, आरक्षित व सामान्य कोटे के पदों की संख्या का उल्लेख नहीं था।
साथ ही कोर्ट ने कहा कि किसी भर्ती विज्ञापन में सामान्य, आरक्षित और अनारक्षित सीटों की कुल संख्या का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है, तो वह पारदर्शिता की कमी के कारण अमान्य व अवैध है। शीर्ष कोर्ट ने कहा, चूंकि अपीलकर्ता कर्मचारी का चयन और नियुक्ति ही कानून की दृष्टि में अमान्य थी, इसलिए हाईकोर्ट ने चयनित उम्मीदवारों का नया पैनल बनाने का निर्देश देकर कोई गलती नहीं की। कोर्ट ने अपीलकर्ता कर्मचारी अमृत यादव की याचिका खारिज कर दी।
एक नजर याचिका पर
याचिका में दावा किया गया था कि उसकी सेवा को प्रभावित करने वाले निर्देश जारी करने से पहले न तो उसे पक्षकार बनाया गया और न ही उसकी बात सुनी गई। कोर्ट ने कहा कि एक बार जब नियुक्ति प्रक्रिया को अमान्य घोषित किया जाता है, तो ऐसी नियुक्ति प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए की गई हर कार्रवाई भी अवैध है।
समानता के अधिकार का उल्लंघन न्यायिक जांच के लिए उत्तरदायी
सरकारी रोजगार संविधान की ओर से राज्य को सौंपा गया एक कर्तव्य है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है, सार्वजनिक रोजगार से जुड़े मामले में राज्य अनुच्छेद-14 और 16 की मूल भावना को नजरअंदाज न करें। सरकारी रोजगार में मनमानी समानता के मौलिक अधिकार की जड़ तक जाती है।
राज्य आम जनता के साथ-साथ भारत के संविधान के प्रति भी जवाबदेह है, जो हर व्यक्ति के साथ समान व निष्पक्ष व्यवहार की गारंटी देता है। इसलिए सार्वजनिक रोजगार प्रक्रिया हमेशा निष्पक्ष, पारदर्शी व संविधान की सीमाओं में होनी चाहिए। हर नागरिक का मौलिक अधिकार है कि निष्पक्ष व्यवहार हो, जो अनुच्छेद-14 के तहत समानता के अधिकार का अंग है। इसका उल्लंघन न्यायिक जांच के साथ आलोचना के लिए भी उत्तरदायी है।
भर्ती विज्ञापन में आरक्षित व अनारक्षित सीटों की संख्या का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। अगर राज्य कोटा देना नहीं चाहता, तो उस निर्णय का विज्ञापन में पर्याप्त के साथ उल्लेख हो।