प्रयागराज। मौनी अमावस्या पर करोड़ों श्रद्धालुओं ने पुण्य की डुबकी लगाई। भीड़ बढ़ने के दौरान कई लोग अपने परिजनों से बिछड़ गए। खोया पाया केंद्र पर लोग माइक में अपनों को पुकारते रहे। वहीं, माइक से सुशीला नाम की महिला ने अपने जानने वाले गब्बर और महेंद्र यादव को आवाज लगाई। बोली-टावर के पास हूं आकर मुझे ले चलो। मैं मेले में खो गई हूं। इसके बाद परिजन उसे ले गए। मेले में एक सरकारी और दो गैर सरकारी संस्था बिछड़े लोगों को अपनों से मिलाने का काम रही है। इनमें सरकारी खोया-पाया केंद्र भी शामिल है। जबकि गैर सरकारी में भूले-भटके शिविर और हेमवती नंदन बहुगुणा सेवा समिति बनाई गई है।
भूले-भटके शिविर के संचालक उमेश तिवारी बताते हैं कि मौनी अमावस्या के दिन सुबह से शाम छह बजे तक मेला में भटकने वालों में से करीब 600 पुरुष और 400 महिलाओं को अपनों से मिलाया गया। वहीं, खोया-पाया केंद्र व हेमवती नंदन बहुगुणा सेवा समिति ने भी दो हजार लोगों को परिजनों से मिलवाया।
बांधे एक-दूसरे का हाथ ताकि न छूटे साथ
संगम की रेती पर साथ आए लोग बिछड़ न हो जाएं, इसलिए दूरदराज के गांवों से आए श्रद्धालु भीड़ के बीच छड़ी, पेड़ की टहनी, लकड़ी में बोतल बांधकर या लाल कपड़े के निशान लहराते हुए चल रहे थे। इसके अलावा साथ बनाए रखने के लिए किसी ने एक-दूसरे का हाथ रस्सी से बांध लिया था तो कोई कपड़ों में गांठ बांध कर चल रहा था।
महाकुंभ में दुपट्टे को रस्सी बनाकर उसे पकड़कर जाते श्रद्धालु
मौनी अमावस्या पर राजस्थान से आई सीता देवी एक लकड़ी के डंडे में बोतल बांध के चल रही थीं। उन्होंने बताया, गांव से 18 लोग के एक साथ आए हैं। इसमें महिलाएं और बुजुर्ग भी हैं। दिल्ली से आई मुस्कान यादव और सुनीता यादव ने रस्सी से एक-दूसरे का हाथ बांधा था। बताया कि पिछली बार मेले में बिछड़ गई थी। काफी देर के बाद खोया-पाया केंद्र पर मिली थी। इस बार तय किया कि एक-दूसरे का हाथ नहीं छोड़ेंगे। खचाखच भरे रास्तों पर चलने वालों में ऐसे नजारे आम थे।
महाकुंभ में श्रद्धालुओं की भीड़
अमृतमयी त्रिवेणी में पूरी दुनिया ने मौन डुबकी लगाकर वसुधैव कुटुंबकम का दिया संदेश
तीर्थों के राजा प्रयागराज में 114 साल बाद समुद्र मंथन सरीखे योग में लगे महाकुंभ की महिमा का गान संत तुलसीदास की इन चौपाइयों में इसी तरह किया गया है। कड़ाके की सर्दी में न मीलों पैदल चलने का गम और न ही थकने की चिंता। देश ही नहीं, दुनिया के हर कोने से पहुंचे श्रद्धालु संगम में मौन की डुबकी लगा वसुधैव कुटुंबकम का संदेश देते रहे।
7.64 करोड़ श्रद्धालुओं ने लगाई संगम में मौन डुबकी
हर चेहरे पर अमृतमयी त्रिवेणी को मथकर, स्पर्श कर जीवन को धन्य बनाने की चाह थी। संगम के 12 किमी लंबे क्षेत्रफल में बने 42 घाटों पर बुधवार को मौन डुबकी में आस्था-भक्ति-विश्वास का अनंत समागम इन्हीं भावों को लेकर होता रहा। मेला प्रशासन के मुताबिक शाम तक साढ़े सात करोड़ श्रद्धालुओं ने डुबकी लगा ली थी। रात से संगम जाने वाले मार्गों पर जयकारों के साथ उमड़ा रेला दोपहर बाद तक जारी रहा।
अमृतकाल में मौनी अमावस्या लगने के साथ ही शाम छह बजे मेला क्षेत्र के सेंट्रल माइक से स्नान का अमृत योग आरंभ होने की घोषणा की गई। श्रद्धालुओं से आग्रह हुआ कि मौनी अमावस्या की डुबकी लगाना आरंभ करें, ताकि उमड़े जन सागर को थामा जा सके। इसके बावजूद लाखों की तादात में आस्थावान मुहूर्त के इंतजार में मेला क्षेत्र की पार्किंग, सड़कों की पटरियों और पुलों के नीचे घड़ियां गिनते रहे।
मौनी अमावस्या के अवसर पर श्री पंच दशनाम जूना (भैरव) अखाड़ा के साधु-संत अमृत स्नान करते हुए
आधी रात त्रिवेणी के सुरम्य तट पर हर कोई गोस्वामी तुलसी दास की चौपाई-सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी…के भावों को आत्मसात करने की ललक लिए डुबकी मारने लगा। संगम जाने वाले रास्तों पर भीड़ इस कदर थी कि कोई हिलने या टस से मस होने की स्थिति में नहीं था। पौ फटते ही पूरब की लाली से फूटीं किरणें संगम की लहरों पर उतर कर हर तन-मन में शक्ति और उल्लास का संचार करने लगीं।
मौनी अमावस्या के अवसर पर श्री पंच दशनाम जूना (भैरव) अखाड़ा के साधु-संत अमृत स्नान करते हुए ।
कहीं ढोल-हारमोनियम-झांझ बजातीं कीर्तन मंडलियां श्रद्धालुओं का स्वागत कर रही थीं तो कहीं महिलाओं के समूह गंगा गान कर मनोरथ पूरे कर रहे थे। अलग-अलग भाषा, पहनावा और संस्कृतियों के रंग आपस में इस तरह धकियाते, मिलते संगम की ओर बढ़ रहे थे, जैसे बाढ़ में हर तरफ से नदियां समुद्र में मिलने के लिए आतुर हुई हों।
मौनी अमावस्या के अवसर पर पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के साधु-संत अमृत स्नान करते हुए
अमेरिका का बाथम अपनी गर्लफ्रेंड डेनिएला का हाथ थामे भीड़ के बीच से खिसकते हुए संगम पहुंचे तो रूस के साथ युद्ध में तहस-नहस हुए यूक्रेन के कोटेन्को और उनकी बेटी कोरीना भी डुबकी लगाकर धन्य हुईं। स्विटजरलैंड के विटोरी और जीन भी मौन डुबकी का नजारा लेने भोर से ही डटे हुए थे।
मौनी अमावस्या के अवसर पर श्री पंच दशनाम जूना (भैरव) अखाड़ा के साधु-संत अमृत स्नान करते हुए
संगम पर जले सौभाग्य के दीये, गंगा का दुग्धाभिषेक
संगम पर लोक मंगल और सौभाग्य के दीये भी जलते रहे। सूर्य भगवान से लेकर ईष्टदेवों को अर्घ्य व मां गंगा का दुग्धाभिषेक भी होता रहा। स्नानार्थियों के माथे-माथे तिलक-त्रिपुंड लगाने वाले पुरोहितों की टोलियां भी अड्डा जमाए थीं।