Supreme Court: कैदियों को भी गरिमा के साथ जीने का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

supreme court says Right to live with dignity extends even to incarcerated

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘सम्मान के साथ जीने का अधिकार कैदियों को भी है’ और कैदियों को इससे वंचित करना उपनिवेशवादियों और उपनिवेश-पूर्व तंत्र दर्शाता है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने गुरुवार को दिए गए ऐतिहासिक फैसले में यह टिप्पणी की। पीठ ने कैदियों के प्रति जाति आधारित भेदभाव, जैसे शारीरिक श्रम का विभाजन, बैरकों का विभाजन आदि पर रोक लगा दी। 

कोर्ट ने कई राज्यों के जेल मैनुअल नियमों को बताया असंवैधानिक
पीठ ने उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश सहित 10 राज्यों के कुछ आपत्तिजनक जेल मैनुअल नियमों को असंवैधानिक करार दिया। सीजेआई ने 148 पन्नों का फैसला लिखते हुए संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव का निषेध), 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और 23 (जबरन श्रम के खिलाफ अधिकार) के तहत मौलिक अधिकारों का जिक्र किया।

कैदियों को सम्मान न देना उपनिवेश काल की पहचान
अपने फैसले में पीठ ने कहा कि, ‘सम्मान के साथ जीने का अधिकार कैदियों का भी है। कैदियों को सम्मान न देना उपनिवेशवादियों और पूर्व-औपनिवेशिक तंत्रों का अवशेष है, जहां दमनकारी व्यवस्थाएं राज्य के नियंत्रण में रहने वाले लोगों को अमानवीय और अपमानित करने के लिए डिज़ाइन की गई थीं। संविधान से पहले के युग के सत्तावादी शासन ने जेलों को न केवल कारावास के स्थान के रूप में देखा, बल्कि वर्चस्व के उपकरण के रूप में भी देखा। संविधान द्वारा लाए गए कानूनी ढांचे के आधार पर इस न्यायालय ने माना है कि कैदियों को भी सम्मान का अधिकार है।’ 

फैसले में संविधान के अनुच्छेद 15 का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें जाति, धर्म, भाषा आदि के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। पीठ ने कहा कि अगर सरकार ही नागरिकों से भेदभाव करेगी तो यह सबसे बड़ा भेदभाव है, क्योंकि सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह भेदभाव को खत्म करेगी। 

‘भेदभावपूर्ण कानूनों की पहचान की जानी चाहिए’
पीठ ने कहा कि ‘इतिहास में, ऐसी भावनाओं ने कुछ समुदायों के नरसंहार को जन्म दिया है। भेदभाव से भेदभाव किए जाने वाले व्यक्ति का आत्म-सम्मान भी कम होता है। इससे अवसरों का अनुचित हनन हो सकता है और लोगों के एक समूह के खिलाफ लगातार हिंसा हो सकती है। भेदभाव किसी ऐसे व्यक्ति का लगातार उपहास या अपमान करके भी किया जा सकता है, जो सामाजिक तौर से कमजोर है। यह किसी व्यक्ति को आघात पहुंचा सकता है जिससे वह अपने पूरे जीवन प्रभावित हो सकता है। भेदभाव में हाशिए पर पड़े सामाजिक समूह की पहचान या उसके अस्तित्व को कलंकित करना भी शामिल है।’ सीजेआई ने कहा, ‘भारत के संविधान के लागू होने से पहले बनाए गए भेदभावपूर्ण कानूनों की जांच की जानी चाहिए और उन्हें खत्म किया जाना चाहिए।’ पीठ ने कहा, ‘मानव गरिमा मानवीय अस्तित्व का अभिन्न अंग है और इससे अविभाज्य है। यह जीवन के अधिकार में ही निहित है।’