रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने मंकी पॉक्स (एम-पॉक्स) को लेकर बुधवार को एडवाइजरी जारी कर दी। इसके साथ ही प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों को अलर्ट मोड पर रखा गया है। हालांकि अभी तक प्रदेश में मंकी पॉक्स का एक भी केस सामने नहीं आया है।
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने बुधवार को गांव-गांव में कैंप लगाकर जांच करने और लोगों को जागरूक करने के लिए निर्देश दिया है। दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 14 अगस्त को मंकी पॉक्स को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (PHEIC) घोषित किया है।
आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में लगेंगे कैंप
स्वास्थ्य मंत्री ने गांव-गांव में शिविर लगाने को कहा है।
स्वास्थ्य मंत्री की ओर से कहा गया है कि कोई केस सामने आने पर स्टेट हेल्थ डिपार्टमेंट इसकी जानकारी लेगा। प्रदेश के आदिवासी और नक्सल इलाके में कैंप लगाकर लोगों की जांच की जाएगी। बीमारी के लक्षणों के बारे में लोगों को बताया जाएगा। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को जिले के सभी विकास खंडों और ग्राम पंचायतों में शिविर लगाकर जांच करने कहा है।
मंकी-पॉक्स सर्वे-लेंस किया जाएगा। जिला स्तरीय रैपिड रिस्पॉन्स टीम इसे लेकर काम करेगी। मंकी-पॉक्स के संभावित प्रकरणों की जांच के लिए निर्धारित प्रक्रिया अनुसार सैंपल संग्रहण कर जांच होगी। मंकी-पॉक्स के हर पॉजिटिव मरीज के सभी संपर्क व्यक्ति की पहचान करने के लिए सभी जिलों में जिला सर्वेलेंस अधिकारी कांट्रैक्ट ट्रेसिंग कराएंगे। 21 दिनों तक मरीज की मॉनिटरिंग होगी।
मंकी-पॉक्स क्या है
यह बीमारी मंकीपॉक्स नाम के वायरस की वजह से होती है। मंकीपॉक्स भी स्मॉलपॉक्स (चेचक) परिवार के वायरसों का ही हिस्सा है। हालांकि, इसके लक्षण स्मॉलपॉक्स की तरह गंभीर नहीं, बल्कि हल्के होते हैं। मंकीपॉक्स बहुत कम मामलों में ही घातक होता है। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि इसका चिकनपॉक्स से लेना-देना नहीं है।
मंकी-पॉक्स एक जेनेटिक बीमारी है, जो मुख्य रूप से मध्य और पश्चिम अफ्रीका के क्षेत्रों में मिली। अब भारत के केरल राज्य में मार्च 2024 में इसके केस मिले हैं। मंकी-पॉक्स से संक्रमित व्यक्ति में सामान्यतः बुखार, चकत्ते और लिंप नोड्स में सूजन पाई जाती है। मंकी-पॉक्स एक स्व-सीमित (सेल्फ-लिमिटेड) संक्रमण है। जिसके लक्षण सामान्यतः 2-4 सप्ताह में समाप्त हो जाते हैं।
ऐसे फैलता है संक्रमण
मरीज के घाव से निकलकर यह वायरस आंख, नाक और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। इसके अलावा बंदर, चूहे, गिलहरी जैसे जानवरों के काटने से या उनके खून और बॉडी फ्लूइड्स को छूने से भी मंकीपॉक्स फैल सकता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ठीक से मांस पका कर न खाने या संक्रमित जानवर का मांस खाने से भी आप इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।
- मंकी-पॉक्स संक्रमण के गंभीर प्रकरण सामान्यतः बच्चों में पाए जाते हैं। मृत्यु दर 1 से 10 प्रतिशत है।
- मंकी-पॉक्स संक्रमण होने और लक्षण मिलने के बाद इन्क्यूबस पीरियड 6-13 दिन का होता है, लेकिन यह 5 से 25 दिन तक हो सकता है।
- मंकी-पॉक्स का संक्रमण त्वचा में चकत्ते आने के 1-2 दिन से लेकर चकत्तों से पपड़ी के गिरने/समाप्त होने तक मरीज के संपर्क में आने वाले व्यक्तियों में फैल सकता है।
- मंकी-पॉक्स वायरस का संक्रमण पशु से मनुष्य में और इंसान से इंसान में फैल सकता है।
- मनुष्य से मनुष्य में संक्रमण मुख्य रूप से लार्ज रेस्पिरेटर सिस्टम के माध्यम से लम्बे समय तक संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क में रहने से होता है।
- वायरस का संक्रमण शरीर के तरल पदार्थ घाव के सीधे संपर्क में आने से या अप्रत्यक्ष संपर्क जैसे दूषित कपड़ों और लिनेन के उपयोग से फैल सकता है।
- पशुओं से मनुष्यों में संक्रमण का प्रसार गांव के सीधे संपर्क में आने से हो सकता है।
मंकी-पॉक्स से कैसे करें बचाव
• बुखार या फ्लू के लक्षण वाले व्यक्ति के संपर्क में न आएं। • अगर परिवार में किसी व्यक्ति को फ्लू जैसे लक्षण दिख रहे हैं तो उसको तुरंत डॉक्टरों के पास लेकर जाएं। • घर में साफ सफाई का ध्यान रखें। • बीमारी जानवर के संपर्क में न आए। • हाथ धोकर भोजन करें। • विदेश से आए किसी व्यक्ति के संपर्क में आए हैं। • मंकी पॉक्स का कोई भी लक्षण दिखने पर उसे छुपाएं नहीं बल्कि स्वास्थ्य विभाग को जानकारी दें।
21 दिनों तक ब्लड, ऑर्गन, टिशू, सीमन डोनेशन नहीं
मंकी पॉक्स से संक्रमित व्यक्ति और उसके संपर्क में आने वाले लोग 21 दिनों तक ब्लड, ऑर्गन, टिशू, सीमन डोनेट नहीं कर सकेंगे। बिना सुरक्षा उपकरणों के मंकी पॉक्स रोगी या उसके द्वारा इस्तेमाल की गई वस्तुओं के संपर्क में आने वाले चिकित्सा कर्मियों पर भी 21 दिनों तक निगरानी रखी जाएगी।