पटना। खेला होबे… पश्चिम बंगाल का यह बहु-प्रचलित टर्म अभी बिहार में खूब चल रहा है- खेला होगा। 28 जनवरी को शपथ लेने वाली नई सरकार का 12 फरवरी को फ्लोर टेस्ट है। इससे पहले, हर तरफ इसकी बात है। है क्या यह खेला और कौन हैं खिलाड़ी?
जनादेश के बाद विधायकों की खरीद-फरोख्त को हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है। इसी अपमानजनक शब्द को बिहार की राजनीति में इन दिनों ‘खेला होगा…खेल होगा’ जैसे शब्दों के रूप में सम्मान से बोला जा रहा है। सीधे शब्दों में बोला जाए तो बाकायदा बिहार में विधायक बिक रहे हैं। बस, 12 फरवरी को दो ही बातें पता चलेंगी- 1. इन्हें किसने खरीदा? और, 2. बिका तो कीमत क्या मिली?
आज और कल का दिन-रात भारी
सोमवार को बिहार विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से पहले शनिवार-रविवार का दिन-रात भारी है। खरीद-बिक्री हुई या नहीं, 12 फरवरी को विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के बहुमत परीक्षण के साथ यह पता चल जाएगा। अगर राजग के पास भारतीय जनता पार्टी के 78, जनता दल यूनाईटेड के 45, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा-सेक्युलर के चार और एक निर्दलीय मिलाकर 128 विधायक पूरे हुए तो कांग्रेस का यह दावा खारिज हो जाएगा कि भाजपा उसके विधायकों को खरीदने का प्रयास कर रही थी। अगर जदयू के 45 विधायक सदन में सत्ता का समर्थन करते नजर आए तो लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की मौज खत्म हो जाएगी, क्योंकि वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के टूट को लेकर मूंछ पर ताव दिखा रही है। इसके साथ ही जदयू की चिंता भी दूर होगी। इस मामले में सबसे ज्यादा मौज में भाजपा ही लग रही है, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में परिणाम का अंदाजा लगाने वाला कोई विधायक शायद ही फिलहाल उसका साथ छोड़ने का जोखिम उठाएगा।
खेला की लौ जलाने वाले ही शांत
खेला होगा- विपक्षी खेमे में इसकी उम्मीद जगाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को संदेश मिल गया है और अब वह अपने ही जलाए दिए की लौ को बंद करने में जुटे हैं। उन्हें अंदाजा है कि शून्य विधायक वाले नेता उन्हें मुख्यमंत्री बना नहीं सकते हैं और विधानसभा में 79 सदस्यों वाली पार्टी अपना सपना तोड़कर चार एमएलए वाले उनके दल को सीएम का प्रस्ताव देगी नहीं। डबल इंजन से उन्हें क्या गति मिलेगी, वह संदेश पहुंच चुका है। वैसे, मांझी के बहाने ही राजद ने खेला की चर्चा गरम की। उस गर्म कड़ाही में कांग्रेस ने घी डाल दिया ऑफर देकर। वैसे, यह घी अब ठंडक में जम गया दिखता है।
पटना-गया से हैदराबाद तक चर्चा
खेला होगा- सत्ता खेमे में इसकी कहीं-न-कहीं सुगबुगाहट जरूर है। तैयारी भी है। तैयारी भी राजद-कांग्रेस को देखकर ही है। राजद ने बिहार विधानसभा के अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी के सहारे गेम पलटने की तैयारी रखी है। उधर कांग्रेस ने भाजपा के हाथों अपने विधायकों के बिकने का डर दिखाते हुए उन्हें हैदराबाद में रख छोड़ा है। फ्लोर टेस्ट से पहले, दो दिनों में भाजपा विधायकों को गया में जुटाकर हो रही वर्चुअल ट्रेनिंग और जदयू की अपने मंत्रियों के घर पार्टी-बैठक को भी खरीद-फरोख्त से बचाने की जुगत ही कहा जा रहा है। राजद तो पहले से ही बार-बार बिकवाली रोकने के लिए परेड की ही बात कर रहा है। मतलब, बिहार से हैदराबाद तक विधायकों की बिकवाली की चर्चा है।